ऐंग्लो इंडियन

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ऐंग्लो इंडियन (अंग्रेज़ी: Anglo-Indian) एक विशेष शब्द है जो जाति और भाषा के संबंध में प्रयोग किया जाता है। भारत में निवासी ऐसा व्यक्ति जो यूरोपीय वंश के पुरुष की भारत क्षेत्र में जन्मी संतान हो अथवा किसी ऐसे क्षेत्र में जन्मी हो जहाँ पर कि वह अस्थायी तौर पर न रहता रहा हो, ऐंग्लो इंडियन कहलाता है। 15 अगस्त 1947 को नए राष्ट्र के उदय के साथ ही ऐंग्लो इंडियन का संसार लुप्त हो गया। जहाँ एक तरफ, भारत ने 300 साल पुराने उपनिवेशवाद का खात्मा किया और भारत के स्वतंत्र नागरिक अपने भविष्य के सपने बुनने लग गए थे वहीं दूसरी तरफ़, ब्रिटिश अपने बिस्तर गोल कर रहे थे, अपनी गोल्फ़ की छड़ियाँ, अपनी फ़ौजी पोशाक तथा अपनी स्मृतियों को समेटकर अपने घर लौट रहे थे। जहाँ अन्य भारतवासी उनके जाने पर खुश हो रहे थे वहीं देश में एक ऐसा तबका भी था जो खुश होने के बजाय दुखी था। ये कौन लोग थे? ये वे लोग थे जो यूरोपीय मूल के अंग्रेज़, डच, फ़्रांसीसी और पुर्तग़ाली अफ़सरों, हुक़्मरान और व्यापारियों की वर्ण संकर संतानें थीं तथा अंग्रेज़, डच, फ़्रांसीसी और पुर्तग़ाली की संतानें होने पर गर्वित थीं। ऐसे अंग्रेज़ पिता जब भारत छोड़कर जाने लगे तो अपनी अनचाही ऐंग्लो इंडियन औलादों को यहीं छोड़ गए। उन औलादों को उम्मीद थी कि वे भी उनके साथ लंदन जाएंगे जबकि अंग्रेज़ उन्हें छोड़ गए और अपनी जीवन शैली, समाज के आम आदमी से दूरी बनाए रखने की परंपरा और अंग्रेज़ी भाषा का तुर्रा दे गए। ये उन परंपराओं और खोखली तहज़ीब के बल पर कब तक यहाँ रह सकते थे? अतः इन लोगों ने भी कुछ दिनों बाद यहाँ से पलायन शुरू किया और धीरे धीरे, यहाँ से कनाडा, अमरीका, दक्षिण अफ़्रीका, यूरोप की राह पकड़ी।[1]

जाति के संबंध में ऐंग्लो इंडियन

जाति के संबंध में यह शब्द उन अंग्रेज़ों की ओर संकेत करता है जो भारत में बस गए हैं या व्यवसाय अथवा पदाधिकार से यहाँ प्रवास करते हैं। इनकी संख्या तो आज भारत में विशेष नहीं है और मात्र प्रवासी होने के कारण उनको देश के राजनीतिक अधिकार भी प्राप्त नहीं, परंतु एक दूसरा वर्ग उनसे संबंधित इस देश का है और उसे देश के नागरिकों के सारे हक भी हासिल हैं। यह वर्ग भारत के अंग्रेज़ प्रवासियों और भारतीय स्त्रियों के संपर्क से उत्पन्न हुआ है जो ऐंग्लो इंडियन कहलाता है। इनकी संख्या काफ़ी है और लोकसभा में इनके विशेष प्रतिनिधि के लिए संवैधानिक अधिकार भी सुरक्षित हैं। इस समुदाय के समझदार व्यक्ति अपने को सर्वथा भारतीय और भारत के सुख-दु:ख में शरीक मानते हैं, परंतु अधिकतर ये स्थानीय जनता से घना संपर्क नहीं बना पाते और इंग्लैंड की सहायता की अपेक्षा करते हैं। इनका अंग्रेज़ों से रक्तसंबंध होना, अंग्रेज़ी का इनकी जन्मजात और साधारण बोलचाल की भाषा होना और उनका धर्म से ईसाई होना भी उन्हें अपना विदेशी रूप बनाए रखने में सहायक होते हैं। उनकी समूची संस्कृति अंग्रेजी विचारधारा और रहन-सहन से प्रभावित तथा अनुप्रमाणित है। तथापि अब वे धीरे-धीरे देश की नित्य बदलती परिस्थितियों के अनुकूल होते जा रहे हैं।

भाषा के संबंध में ऐंग्लो इंडियन

ऐंग्लो इंडियन शब्द का व्यवहार प्रवासी अंग्रेजों की भारतीय माताओं से प्रसूत संततियों अथवा उनसे प्रजनित संतानों से भिन्न भाषा के अर्थ में भी होता है। ऐंग्लो इंडियन भाषा के अनेक रूप हैं। कभी तो इसका प्रयोग भारतीयों द्वारा लिखी शुद्ध अंग्रेज़ी के अर्थ में हुआ है और कभी उन अंग्रेज़ों की भाषा के संबंध में भी जिन्होंने भारत में रहकर लिखा है, यद्यपि भाषाशास्त्र की दृष्टि से दोनों में स्थानीय प्रभावों के अतिरिक्त कोई विशेष भेद नहीं है। फिर ऐंग्लो इंडियन से तात्पर्य उस संकर हिंदी भाषा से भी है जो भारत के ऐंग्लों इंडियन अपने से भिन्न भारतीयों से बोलते हैं। इस शब्द का व्यवहार अनेक बार उस हिंदी भाषा के संबंध में भी हुआ है जिसे हिंदुस्तानी कहते हैं। परंतु इस अर्थ में इसका उपयोग अकारण और अनुचित दोनों हैं।

'ऐंग्लो इंडियन' की आबादी वाले महत्त्वपूर्ण क्षेत्र
देश आबादी (लगभग)
भारत 300,000 – 1,000,000
संयुक्त राष्ट्र (यू.के.) 80,000
ऑस्ट्रेलिया 22,000
कनाडा 22,000
संयुक्त राज्य (यू.एस.) 20,000
म्यांमार (वर्मा) 19,200


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐंग्लो इंडियन और अंग्रेज़ी का शूल (हिंदी) राजभाषा विकास परिषद। अभिगमन तिथि: 12 मई, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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