मणिमान

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शंकराचार्य एवं मध्वाचार्य के शिष्यों में परस्पर घोर प्रतिस्पर्धा रहती थी।

  • मध्व अपने को वायु देव का अवतार कहते थे तथा शंकर को महाभारत में उदधृत एक अस्पष्ट व्यक्त मणिमान का अवतार मानते थे।
  • मध्व ने महाभारत की व्याख्या में शंकर की उत्पत्ति सम्बन्धी धारणा का उल्लेख किया है।
  • मध्व के पश्चात उनके एक प्रशिष्य पंडित नारायण ने मणिमंजरी एवं मध्वविजय नामक संस्कृत ग्रन्थों में मध्व वर्णित दोनों अवतार (मध्व के वायु अवतार एवं शंकर के मणिमान अवतार) के सिद्धान्त की स्थापना गम्भीरता से की है।
  • उपर्युक्त माध्व ग्रन्थों के विरोध में ही 'शंकरदिग्विजय' नामक ग्रन्थ की रचना हुई जान पड़ती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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