नरेंद्र शर्मा
पंडित नरेंद्र शर्मा (अंग्रेज़ी: Narendra Sharma, जन्म: 28 फ़रवरी, 1913 - मृत्यु: 11 फ़रवरी 1989) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि, लेखक एवं सम्पादक थे। नरेंद्र शर्मा का जन्म 28 फ़रवरी, 1913 में खुर्जा के जहाँगीरपुर नामक स्थान पर हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षाशास्त्र और अंग्रेज़ी में एम.ए. किया। 1934 में प्रयाग में अभ्युदय पत्रिका का संपादन किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी स्वराज्य भवन में हिंदी अधिकारी रहे और फिर बॉम्बे टाकीज़ बम्बई में गीत लिखे। उन्होंने फिल्मों में गीत लिखे, आकाशवाणी से भी संबंधित रहे और स्वतंत्र लेखन भी किया। उनके 17 कविता संग्रह, एक कहानी संग्रह, एक जीवनी और अनेक रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।[1]
जीवन परिचय
अल्पायु से ही साहित्यिक रचनायें करते हुए पंडित नरेन्द्र शर्मा ने 21 वर्ष की आयु में पण्डित मदन मोहन मालवीय द्वारा प्रयाग में स्थापित साप्ताहिक "अभ्युदय" से अपनी सम्पादकीय यात्रा आरम्भ की। काशी विद्यापीठ में हिन्दी व अंग्रेज़ी काव्य के प्राध्यापक पद पर रहते हुए 1940 में वे ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रशासन विरोधी गतिविधियों के लिये गिरफ़्तार कर लिये गये और 1943 में मुक्त होने तक वाराणसी, आगरा और देवली में विभिन्न कारागारों में शचीन्द्रनाथ सान्याल, सोहनसिंह जोश, जयप्रकाश नारायण और सम्पूर्णानन्द जैसे ख्यातिनामों के साथ नज़रबन्द रहे और 19 दिन तक अनशन भी किया। जेल से छूटने पर उन्होंने अनेक फ़िल्मों में गीत लिखे और फिर 1953 से आकाशवाणी से जुड़ गये। इस बीच उनका लेखनकार्य निर्बाध चलता रहा। 11 मई, 1947 को मुम्बई में उनका विवाह सुशीलाजी से हुआ और परिवार में तीन पुत्रियों व एक पुत्र का जन्म हुआ।[2]
साहित्यिक परिचय
1931 ई. में पंडित नरेंद्र शर्मा की पहली कविता 'चांद' में छपी। शीघ्र ही जागरूक, अध्ययनशील और भावुक कवि नरेन्द्र ने उदीयमान नए कवियों में अपना प्रमुख स्थान बना लिया। लोकप्रियता में इनका मुकाबला हरिवंशराय बच्चन से ही हो सकता था। 1933 ई. में इनकी पहली कहानी प्रयाग के 'दैनिक भारत' में प्रकाशित हुई। 1934 ई. में इन्होंने मैथिलीशरण गुप्त की काव्यकृति 'यशोधरा' की समीक्षा भी लिखी। सन् 1938 ई. में कविवर सुमित्रानंदन पंत ने कुंवर सुरेश सिंह के आर्थिक सहयोग से नए सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक स्पंदनों से युक्त 'रूपाभ' नामक पत्र के संपादन करने का निर्णय लिया। इसके संपादन में सहयोग दिया नरेन्द्र शर्मा ने। भारतीय संस्कृति के प्रमुख ग्रंथ 'रामायण' और 'महाभारत' इनके प्रिय ग्रंथ थे। महाभारत में रुचि होने के कारण ये 'महाभारत' धारावाहिक के निर्माता बी. आर. चोपड़ा के अंतरंग बन गए। इसलिए जब उन्होंने 'महाभारत' धारावाहिक का निर्माण प्रारंभ किया तो नरेन्द्रजी उनके परामर्शदाता बने। उनके जीवन की अंतिम रचना भी 'महाभारत' का यह दोहा ही है- "शंखनाद ने कर दिया, समारोह का अंत, अंत यही ले जाएगा, कुरुक्षेत्र पर्यन्त"।[3]
प्रमुख कृतियाँ
नरेन्द्र शर्मा जी ने हिन्दी साहित्य की 23 पुस्तकें लिखकर श्रीवृद्धि की है। जिनमें प्रमुख हैं:-
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लगभग 55 फ़िल्मों में 650 गीत एवं 'महाभारत' का पटकथा-लेखन और गीत-रचना।
निधन
11 फ़रवरी, 1989 ई. को हृदय-गति रुक जाने से पंडित नरेन्द्र शर्मा का निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नरेन्द्र शर्मा (हिन्दी) अनुभूति। अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2015।
- ↑ सादर श्रद्धांजलि - पण्डित नरेन्द्र शर्मा (हिन्दी) पिट ऑडियो। अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2015।
- ↑ झरोखा: पंडित नरेन्द्र शर्मा (हिन्दी) अपनी माटी। अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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