आबिद सुरती
आबिद सुरती (अंग्रेज़ी: Abid Surti जन्म: 5 मई, 1935) एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हिन्दी-गुजराती साहित्यकार और कार्टून पात्र 'ढब्बू जी' के सर्जक हैं। आबिद सुरती चित्रकार, कार्टूनिस्ट, व्यंग्यकार, उपन्यासकार और कहानीकार भी हैं। विभिन्न कलाविधाएँ उनके लिए कला और ज़िन्दगी के ढर्रे को तोड़ने के माध्यम हैं। उनकी ये कोशिशें जितनी उनके चित्रों में नज़र आती हैं। स्वभाव से यथार्थवादी होते हुए भी वे अपनी कहानियों में मानव-मन की उड़ानों को शब्दांकित करते हैं। जीवन का सच्चाई से वे सीधे साक्षात्कार न करके फंतासी और काल्पनिकता का सहारा लेते हैं। व्यंग्य का पैनापन इसी से आता है, क्योंकि यथार्थ से फंतासी की टकराहट से जो तल्ख़ी पैदा होती है, उसका प्रभाव सपाट सच्चाई के प्रभाव से कहीं ज्यादा तीखा होता है। एक सचेत-सजग कलाकार की तरह आबिद अपनी कहानियों में सदियों से चली आ रही जड़-रूढ़ियों, परंपराओं और ज़िंदगी की कीमतों पर लगातार प्रश्नचिह्न लगाते हैं और उन्हें तोड़ने के लिए भरपूर वार भी करते हैं। यह बात उन्हें कलाकारों की पंक्ति में ला खड़ा करती है, जो कला को महज़ कला नहीं, ज़िन्दगी की बेहतरी के माध्यम के रूप में जानते हैं। विचार और रोचकता का ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण बहुत कम रचनाकारों में नजर आता है, वे प्रथम पंक्ति के रचनाकार हैं।[1]78 साल की उम्र में भी बेहद सक्रिय और महाराष्ट्र में पानी की एक-एक बूँद बचाते हुये लोगों को जल संरक्षण के लिये सजग भी कर रहे हैं।
पानी बचाने में योगदान
मुंबई के मीरा रोड इलाके में हर रविवार आबिद एक प्लंबर को लेकर लोगों के दरवाजे पर जाते हैं और उनके घर में लीक कर रहे वॉटर टैप को मुफ्त में ठीक करते हैं। वह इन टैपों में लगे रबर गैस्केट रिंग को बदलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि पानी लीक होकर बर्बाद न हो। इस मकसद से बनाए गए अपने एनजीओ को उन्होंने नाम दिया है 'ड्रॉप डेड', जिसकी टैगलाइन है: सेव एवरी ड्रॉप और ड्रॉप डेड। आबिद की टीम में फिलहाल एक प्लंबर के अलावा एक वॉलनटियर भी है, जिसका काम घरों में जाकर पानी की बर्बादी रोकने के लिए जानकारियों का प्रचार-प्रसार करना है। एक आकलन के मुताबिक, आबिद ने अभी तक अपनी मुहिम से करीब 55 लाख लीटर पानी बर्बाद होने से बचाया है। आबिद के मुताबिक, उनका बचपन पानी की किल्लत के बीच गुजरा। साल 2007 में वह अपने दोस्त के घर बैठे थे कि उनकी नजर अचानक से एक लीक करते पानी के टैप पर पड़ी। जब उन्होंने इस ओर अपने दोस्त का ध्यान दिलाया, तो आम लोगों की तरह ही उसने इस बात को कोई खास तवज्जो नहीं दी। इस बीच आबिद ने कोई आर्टिकल पढ़ा, जिसके मुताबिक, अगर एक बूंद पानी हर सेकंड बर्बाद होता है, तो हर महीने क़रीब 1 हजार लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। यहीं से शुरुआत हुई एक नई क्रान्ति की। पहली दिक्कत आई प्रॉजेक्ट को शुरू करने के लिए पैसों की, लेकिन इसी दौरान उन्हें हिंदी-साहित्य संस्थान यूपी की ओर से 1 लाख रुपए का पुरस्कार मिला। मार्च 2008 में वॉटर कंसरवेशन पर फिल्म बना रहे फिल्ममेकर शेखर कपूर ने अपनी वेबसाइट पर आबिद की दिल खोल कर तारीफ की। मीडिया में आबिद के काम का जिक्र शुरू हो चुका था, फिल्म स्टार शाहरुख खान ने भी उनके बारे में पढ़ा और आबिद के काम के मुरीद हो गए। एक खबरिया चैनल ने उन्हें 'बी द चेंज' अवॉर्ड से भी नवाजा। किसी किस्म की लाइमलाइट में रहना कम पसंद करने वाले आबिद कहते हैं, 'वॉटर कंसरवेशन की जंग कोई भी अपने इलाके में लड़ सकता है।' सत्तर के दशक में जब आबिद ने फेमस कार्टून कैरक्टर 'बहादुर' को जन्म दिया, तब शायद ही उन्होंने सोचा होगा कि यह एक दिन उन्हीं के काम का पर्याय बन जाएगा।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10 प्रतिनिधि कहानियाँ (आबिद सुरती) (हिन्दी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 22 मई, 2015।
- ↑ आबिद सुरती: रहिमन 'पानी' राखिए, बिन पानी सब सून (हिन्दी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 24 मई, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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