आबिद सुरती
आबिद सुरती
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पूरा नाम | आबिद सुरती |
अन्य नाम | सुरती, सुरती साहब |
जन्म | 5 मई, 1935 |
जन्म भूमि | राजुला, गुजरात |
पति/पत्नी | मासूमा बेगम |
संतान | दो पुत्र |
मुख्य रचनाएँ | तीसरी अाँख, द ब्लैक बुक (काली किताब), इन नेम ऑफ़ राम |
भाषा | हिन्दी, गुजराती |
शिक्षा | डिप्लोमा इन अार्टस |
पुरस्कार-उपाधि | राष्ट्रीय पुरस्कार 1993, हिन्दी साहित्य संस्था अवार्ड, गुजरात गौरव |
प्रसिद्धि | चित्रकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | पानी-बचाओ मुहिम में 'ड्रॉप डेड' नामक एक एनजीओ चलाते हैं जिसकी टैगलाइन सेव एवरी ड्रॉप और ड्रॉप डेड है। |
अद्यतन | 17:41, 24 मई 2015 (IST)
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आबिद सुरती (अंग्रेज़ी: Abid Surti जन्म: 5 मई, 1935) एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हिन्दी-गुजराती साहित्यकार और कार्टून पात्र 'ढब्बू जी' के सर्जक हैं। आबिद सुरती चित्रकार, कार्टूनिस्ट, व्यंग्यकार, उपन्यासकार और कहानीकार भी हैं। विभिन्न कलाविधाएँ उनके लिए कला और ज़िन्दगी के ढर्रे को तोड़ने का माध्यम हैं। उनकी ये कोशिशें उनके चित्रों में नज़र आती हैं। स्वभाव से यथार्थवादी होते हुए भी वे अपनी कहानियों में मानव-मन की उड़ानों को शब्दांकित करते हैं। जीवन का सच्चाई से वे सीधे साक्षात्कार न करके फंतासी और काल्पनिकता का सहारा लेते हैं। व्यंग्य का पैनापन इसी से आता है, क्योंकि यथार्थ से फंतासी की टकराहट से जो तल्ख़ी पैदा होती है, उसका प्रभाव सपाट सच्चाई के प्रभाव से कहीं ज्यादा तीखा होता है। एक सचेत-सजग कलाकार की तरह आबिद अपनी कहानियों में सदियों से चली आ रही जड़-रूढ़ियों, परंपराओं और ज़िंदगी की कीमतों पर लगातार प्रश्नचिह्न लगाते हैं और उन्हें तोड़ने के लिए भरपूर वार भी करते हैं। यह बात उन्हें कलाकारों की पंक्ति में ला खड़ा करती है, जो कला को महज़ कला नहीं, ज़िन्दगी की बेहतरी के माध्यम के रूप में जानते हैं। विचार और रोचकता का ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण बहुत कम रचनाकारों में नजर आता है, वे प्रथम पंक्ति के रचनाकार हैं।[1]78 साल की उम्र में भी बेहद सक्रिय और महाराष्ट्र में पानी की एक-एक बूँद बचाते हुये लोगों को जल संरक्षण के लिये सजग भी कर रहे हैं।
पानी-बचाओ मुहिम में योगदान
मुंबई के मीरा रोड इलाके में हर रविवार आबिद एक प्लंबर को लेकर लोगों के दरवाजे पर जाते हैं और उनके घर में लीक कर रहे वॉटर टैप को मुफ्त में ठीक करते हैं। वह इन टैपों में लगे रबर गैस्केट रिंग को बदलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि पानी लीक होकर बर्बाद न हो। इस मकसद से बनाए गए अपने एनजीओ को उन्होंने नाम दिया है 'ड्रॉप डेड', जिसकी टैगलाइन है: सेव एवरी ड्रॉप अॉर ड्रॉप डेड "Save Every Drop or Drop Dead."[2]। आबिद की टीम में फिलहाल एक प्लंबर के अलावा एक वॉलनटियर भी है, जिसका काम घरों में जाकर पानी की बर्बादी रोकने के लिए जानकारियों का प्रचार-प्रसार करना है। एक आकलन के मुताबिक, आबिद ने अभी तक अपनी मुहिम से करीब 55 लाख लीटर पानी बर्बाद होने से बचाया है। आबिद के मुताबिक, उनका बचपन पानी की किल्लत के बीच गुजरा। साल 2007 में वह अपने दोस्त के घर बैठे थे कि उनकी नजर अचानक से एक लीक करते पानी के टैप पर पड़ी। जब उन्होंने इस ओर अपने दोस्त का ध्यान दिलाया, तो आम लोगों की तरह ही उसने इस बात को कोई खास तवज्जो नहीं दी। इस बीच आबिद ने कोई आर्टिकल पढ़ा, जिसके मुताबिक, अगर एक बूंद पानी हर सेकंड बर्बाद होता है, तो हर महीने क़रीब 1 हजार लीटर पानी बर्बाद हो जाता है। यहीं से शुरुआत हुई एक नई क्रान्ति की। पहली दिक्कत आई प्रॉजेक्ट को शुरू करने के लिए पैसों की, लेकिन इसी दौरान उन्हें हिंदी-साहित्य संस्थान उत्तर प्रदेश की ओर से 1 लाख रुपए का पुरस्कार मिला। मार्च 2008 में वॉटर कंसरवेशन पर फिल्म बना रहे फिल्ममेकर शेखर कपूर ने अपनी वेबसाइट पर आबिद की दिल खोल कर तारीफ की। मीडिया में आबिद के काम का जिक्र शुरू हो चुका था, फिल्म स्टार शाहरुख खान ने भी उनके बारे में पढ़ा और आबिद के काम के मुरीद हो गए। एक खबरिया चैनल ने उन्हें 'बी द चेंज' अवॉर्ड से भी नवाजा। किसी किस्म की लाइमलाइट में रहना कम पसंद करने वाले आबिद कहते हैं, 'वॉटर कंसरवेशन की जंग कोई भी अपने इलाके में लड़ सकता है।' सत्तर के दशक में जब आबिद ने फेमस कार्टून कैरक्टर 'बहादुर' को जन्म दिया, तब शायद ही उन्होंने सोचा होगा कि यह एक दिन उन्हीं के काम का पर्याय बन जाएगा।[3]
सम्मान
बहुमुखी सर्जक आबिद सुरती का वर्ष 2010 में मुंबई में उनके 75 वें जन्मदिन पर सम्मान हुआ। इस अवसर पर हिन्दुस्तानी प्रचार सभा के सभागार में साहित्यिक पत्रिका 'शब्दयोग' के आबिद सुरती केन्द्रित अंक (जून 2010) का लोकार्पण हुआ एवं एक संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया। इस अवसर पर आबिद सुरती का सम्मान करते हुए समाजसेवी संस्था 'योगदान' के सचिव आर. के. पालीवाल ने आबिद सुरती की पानी-बचाओ मुहिम के लिए दस हजार रूपए का चेक भेंट किया। सम्मान स्वरुप उन्हें शाल और श्रीफल के बजाय उनके व्यक्तित्व के अनुरूप कैपरीन यानि बरमूडा और रंगीन टी-शर्ट भेंट किया गया। कार्यक्रम की शुरूआत में आर.के.पालीवाल की आबिद सुरती पर लिखी लम्बी कविता 'आबिद और मैं' का पाठ फिल्म अभिनेत्री एडीना वाडीवाला ने किया। सुप्रसिद्ध व्यंगकार शरद जोशी की एक चर्चित रचना 'मैं आबिद और ब्लैक आउट' का पाठ उनकी सुपुत्री व सुपरिचित अभिनेत्री नेहा शरद ने अपने पिता के ही अन्दाज में प्रस्तुत किया। समाजसेवी संस्था 'योगदान' की त्रैमासिक पत्रिका 'शब्दयोग' के इस विशेषांक का परिचय कराते हुए इस अंक के संयोजक प्रतिष्ठित कथाकार आर.के. पालीवाल ने कहा कि आबिद सुरती एक ऐसे विरल कथाकार व कलाकार हैं, जिन्होंने अपनी कलम से हिन्दी और गुजराती साहित्य को पिछले दशकों से निरंतर समृद्ध किया है। कथाकार व व्यंगकार होने के साथ ही उन्होंने कार्टून विधा में महारत हासिल की है, फिल्म लेखन किया है और ग़ज़ल विधा में भी हाथ आजमाए हैं।[4]
धर्मयुग पत्रिका में कार्टून कोना 'ढब्बू जी' वाले सुरती
'धर्मयुग' जैसी पत्रिका में 30 साल तक लगातार 'कार्टून कोना ढब्बूजी' पेश करके उन्होंने एक रिकार्ड ही बनाया है। धर्मयुग पत्रिका के लिए आबिद सुरती ने आम आदमी को चित्रित करती हुयी एक कार्टून स्ट्रिप बनायीं थी, जो प्रसिद्ध पत्रिका का एक लोकप्रिय अंग बन गया था- ढब्बू जी। छोटी कद-काठी के और ऊपर से लेकर नीचे तक काले लबादे में ढंके ढब्बू जी ने अपने व्यंग और कटाक्ष से पाठकों का दिल जीत लिया था। "ढब्बू जी की वेशभूषा आबिद सुरती साहब ने अपने वकील पिता से ली थी और ढब्बू जी का आगमन एक गुजरती अख़बार/पत्रिका से हुआ था। ढब्बू जी धर्मयुग में कैसे आये इसके पीछे भी एक रोचक वाकया है, दरअसल, धर्मयुग के संपादक धर्मवीर भारती उस समय एक जाने-माने कार्टूनिस्ट की रचना अपनी पत्रिका में प्रकाशित करने की सोच रहे थे जिसमे कुछ हफ़्तों की देरी थी जिसे भरने के लिए उन्होंने आबिद साहब को उन कुछ हफ़्तों के लिए कुछ बनाने को कहा। इस एकदम से मिली पेशकश के चलते आबिद साहब को कुछ और नहीं सूझा तो उन्होंने अपने पुराने चरित्र को एक नया नाम ढब्बू जी देकर 'धर्मयुग' में छपवाना शुरू कर दिया और जो चरित्र सिर्फ कुछ हफ़्तों के लिए फ़िलर की तरह इस्तेमाल होना उसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी की वो पत्रिका का एक नियमित फीचर बन गया।"[5]
आबिद सुरती की काली किताब
काली किताब 'आबिद सुरती' की प्रसिद्ध पुस्तक है। इस पुस्तक पर धर्मवीर भारती की प्रस्तावना इस प्रकार है- “संसार की पुरानी पवित्र किताबें इतिहास के ऐसे दौर में लिखी गयीं जब मानव समाज को व्यवस्थित और संगठित करने के लिए कतिपय मूल्य मर्यादाओं को निर्धारित करने की जरूरत थी। आबिद सुरती की यह महत्वपूर्ण ‘काली किताब’ इतिहास के ऐसे दौर में लिखी गयी है, जब स्थापित मूल्य-मर्यादाएँ झूठी पड़ने लगी है और नए सिरे से एक विद्रोही चिंतन की आवश्यकता है ताकि जो मर्यादाओं का छद्म समाज को और व्यक्ति की अंतरात्मा को अंदर से विघटित कर रहा है, उसके पुनर्गठन का आधार खोजा जा सके। महाकाल का तांडव नृत्य निर्मम होता है, बहुत कुछ ध्वस्त करता है ताकि नयी मानव रचना का आधार बन सके। वही निर्ममता इस कृति के व्यंग्य में भी है...”[6]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 10 प्रतिनिधि कहानियाँ (आबिद सुरती) (हिन्दी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 22 मई, 2015।
- ↑ Aabid Surti: Helping to Fix Mumbai's Water Supply (english) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 24 मई, 2015।
- ↑ आबिद सुरती: रहिमन 'पानी' राखिए, बिन पानी सब सून (हिन्दी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 24 मई, 2015।
- ↑ कार्टूनिस्ट व लेखक आबिद सुरती का सम्मान एवं गाँव जोकहरा का एक अदूभुत पुस्तकालय (हिन्दी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 24 मई, 2015।
- ↑ ढब्बू जी - आबिद सुरती (धर्मयुग/डायमंड कॉमिक्स) (हिन्दी) theiceproject (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 24 मई, 2015।
- ↑ आबिद सुरती की काली किताब (हिन्दी) रचनाकार (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 24 मई, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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