ठाकुर गदाधर सिंह

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ठाकुर गदाधर सिंह (जन्म- 1869 ई., निधन- 1918 ई.) भारत के प्रमुख लेखक तथा साहित्यकारों में से एक थे। इन्होंने अपने जीवन की शुरुआत एक सफल सैनिक के रूप में की, किंतु बाद में यात्रा वृत्तांत लेखन की ओर आकृष्ट हुए। बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशक में ठाकुर गदाधर सिंह हिन्दी गद्य के विशिष्ट लेखकों में जाने जाते थे। इनकी हास्य व्यंग्यपूर्ण लेखन शैली पाठकों के मन को मोह लेती थी।

जीवन परिचय

ठाकुर गदाधर सिंह का जन्म सन् 1869 ई. में एक मध्यमवर्गीय राजपूत परिवार में हुआ था। आरंभ में इन्होंने एक सफल सैनिक का जीवन व्यतीत किया। बाद में यात्रा वृत्तांत लेखन की ओर प्रवृत्त हुए।[1]

विदेश यात्राएँ

सन 1900 में इन्होंने एक सैनिक अधिकारी के रूप में चीन की यात्रा की। उसी समय चीन में 'बाक्सर विद्रोह' हुआ था। ब्रिटिश सरकार ने 'बाक्सर विद्रोह' का दमन करने के लिए राजपूत सेना की एक टुकड़ी चीन भेजी थी। ठाकुर साहब उसके विशिष्ट सदस्य थे। सम्राट एडवर्ड के तिलकोत्सव के समारोह में आपको इंग्लैण्ड जाने का अवसर प्राप्त हुआ।

लेखन कार्य

इंग्लैण्ड जाकर ठाकुर साहब ने जो कुछ देखा, उसे अपनी लेखनी द्वारा व्यक्त किया। ठाकुर साहब से पहले शायद ही किसी ने यात्रा संस्मरण लिखे हों। इनके यात्रा संस्मरण की दो कृतियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं-

  1. 'चीन में तेरह मास'
  2. 'एडवर्ड तिलक-यात्रा'

'चीन में तेरह मास' नामक ग्रंथ 319 पृष्ठों में है और 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' के आर्यभाषा पुस्तकालय में इसकी एक प्रति सुरक्षित है। लेखक ने इस पुस्तक में अपनी चीन यात्रा का मनोहर वृत्तांत एवं अपने सैनिक जीवन की साहसपूर्ण कहानी जिस रोचक ढंग से लिखी है, वह अत्यंत मनमोहक तथा सुरुचिपूर्ण सामग्री कही जा सकती है। पुस्तक में जहाँ चीन के साधारण जीवन की कहानी है, वहाँ उनके सैनिक जीवन का साहसपूर्ण ब्यौरा भी है। उससे उस समय की चीनी जनता की मनोदशा, रहन-सहन और आचार-व्यवहार पर पूरा प्रकाश पड़ता है। 'एडवर्ड-तिलक-यात्रा' नामक कृति में लेखक ने इंग्लैंड यात्रा का रोचक वर्णन किया है। इन पुस्तकों में यात्रा विवरण के साथ-साथ उनके संस्मरण भी हैं।[1]

भाषा-शैली

बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशक में ठाकुर गदाधर सिंह हिन्दी गद्य के विशिष्ट लेखकों में माने जाते थे। यह द्रष्टव्य है कि उस समय तक हिन्दी गद्य का कोई स्वरूप निश्चित नहीं हो पाया था। भाषा के परिष्कार और उसकी व्यंजना शक्ति को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा था। गदाधर सिंह की कृतियों ने हिन्दी गद्य के निर्माण युग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनकी भाषा का स्वरूप सरल, सहज, स्वाभाविक था। इनकी हास्य व्यंग्यपूर्ण शैली पाठकों के मन को मोह लेती थी। यही कारण है कि गदाधर सिंह उस समय में यात्रा संस्मरण लिखकर ही प्रसिद्ध हो गए।

निधन

ठाकुर गदाधर सिंह जी का निधन सन 1918 ई. में 49 वर्ष की अल्पायु में हुआ।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 ठाकुर गदाधर सिंह (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 05 जून, 2015।

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