हलधरदास

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हलधरदास (जन्म-1525 ई.: मृत्यु-1626 ई.) बिहार के प्रसिद्ध कवियों में से एक थे। सूरदास के बाद ये कृष्ण की भक्ति-परंपरा के दूसरे प्रसिद्ध कवि थे। सूरदास और हलधरदास में जीवन और भक्ति को लेकर बहुत कुछ साम्य भी था।

जन्म तथा शिक्षा

हलधरदास का जन्म बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर ज़िले के अंतर्गत पदमौल नामक ग्राम में सन 1525 ई. के आसपास हुआ था। शैशव में ही इनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। अपने रज की छत्रछाया में ये पले। शीतला से पीड़ित होकर इन्होंने दोनों आँखें खो दीं। ये फ़ारसी और संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे तथा पुराण, शास्त्र और व्याकरण का भी इन्होंने अध्ययन किया था।

रचनाएँ

हलधरदास जी की निम्न तीन पुस्तकों का पता चला है-

  1. 'सुदामाचरित्र'
  2. 'श्रीमद्भागवत भाषा'
  3. 'शिवस्तोत्र'

उनकी अंतिम पुस्तक संस्कृत में है। 'सुदामाचरित्र' उनकी सर्वप्रसिद्ध पुस्तक है, जिसकी रचना सन 1565 ई. में हुई थी। यह सुदामाचरित्र परंपरा के अद्यावधि ज्ञात काव्यों में ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वप्रथम और काव्य की दृष्टि से उत्कृष्टतम है।

कृष्णभक्त कवियों में विशिष्ट स्थान

सूरदास तथा हलधरदास दोनों नेत्रहीन हो गए थे। दोनों ने कृष्ण की सख्यभाव से उपासना की। दोनों में एक बड़ा अंतर भी है। सूर के कृष्ण प्रधानत: लीलाशाली हैं, जबकि हलधर के कृष्ण ऐश्वर्यशाली। सूर एवं अन्य कृष्णभक्त कवियों की प्रतिभा मुक्तक के क्षेत्र में विकसित हुई थी, उनका भी काव्य प्रतिभा का मानदंड प्रबंध है। 'सुदामाचरित्र' एक उत्तम खंडकाव्य है। इस तरह हलधरदास कृष्णभक्त कवियों में एक विशिष्ट स्थान के अधिकारी हैं।

निधन

हलधरदास जी का निधन 1626 ई. के आसपास हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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