श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 43 श्लोक 27-40

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दशम स्कन्ध: त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः (43) (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: त्रिचत्वारिंशोऽध्यायः श्लोक 27-40 का हिन्दी अनुवाद

इन्होनें सात दिनों तक एक ही हाथ पर गिरिराज गोवर्धन को उठाये रखा और उसके द्वारा आँधी-पानी तथा वज्रपात से गोकुल को बचा लिया । गोपियाँ इनकी मन्द-मन्द मुसकान, मधुर चितवन और सर्वदा एकरस प्रसन्न रहने वाले मुखारविन्द के दर्शन से आनन्दित रहती थीं और अनायास ही सब प्रकार के तापों से मुक्त हो जाती थीं । कहते हैं कि ये यदुवंश की रक्षा करेंगे। यह विख्यात वंश इनके द्वारा महान् समृद्धि, यश और गौरव प्राप्त करेगा । ये दूसरे इन्हीं श्यामसुन्दर के बड़े भाई कमलनयन श्रीबलरामजी हैं। हमने किसी-किसी के मुँह से ऐसा सुना है कि इन्होने ही प्रलम्बासुर, वत्सासुर और बकासुर आदि को मारा है’ ।

जिस समय दर्शकों में यह चर्चा हो रही थी और अखाड़े में तुरही आदि बाजे बज रहे थे, उस समय चाणूर ने भगवान श्रीकृष्ण और बलराम को को सम्बोधन करके यह बात कही— ‘नन्दनन्दन श्रीकृष्ण और बलरामजी! तुम दोनों वीरों के आदरणीय हो। हमारे महाराज ने यह सुनकर कि तुम लोग कुश्ती लड़ने में बड़े निपुण हो, तुम्हारा कौशल देखने के लिये तुम्हें यहाँ बुलवाया है । देखो भाई! जो प्रजा मन, वचन और कर्म से राजा का प्रिय कार्य करती है, उसका भला होता है और जो राजा की इच्छा के विपरीत काम करती है, उसे हानि उठानी पड़ती है । यह सभी जानते हैं कि गाय और बछड़े चराने वाले ग्वालिये प्रतिदिन आनन्द से जंगलों में कुश्ती लड़-लड़कर खेलते रहते हैं और गायें चराते रहते हैं । इसलिये आओ, हम और तुम मिलकर महाराज को प्रसन्न करने के लिये कुश्ती लड़े। ऐसा करने से हम पर सभी प्राणी प्रसन्न होंगे, क्योंकि राजा सारी प्रजा का प्रतीक है’ ।

परीक्षित! भगवान श्रीकृष्ण तो चाहते ही थे कि इनसे दो-दो हाथ करें। इसलिये उन्होंने चाणूर की बात सुनकर उसका अनुमोदन किया और देश-काल के अनुसार यह बात कही— ‘चाणूर! हम भी इन भोजराज कंस की वनवासी प्रजा हैं। हमें इनको प्रसन्न करने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिये। इसी में हमारा कल्याण है । किन्तु चाणूर! हम लोग अभी बालक हैं। इसलिये हम अपने समान बलवाले बालकों के साथ ही लड़ने का खेल करेंगे। कुश्ती समान बलवालों के साथ ही होनी चाहिये, जिससे देखने वाले सभासदों को अन्याय के समर्थक होने का पाप न लगे’।

चाणूर ने कहा—अजी! तुम और बलराम न बालक हो और न तो किशोर। तुम दोनों बलवानों में श्रेष्ठ हो, तुमने अभी-अभी हजार हाथियों का बल रखने वाले कुवलयापीड को खेल-ही-खेल में मार डाला । इसलिये तुम दोनों को हम-जैसे बलवानों के साथ ही लड़ना चाहिये। इसमें अन्याय की कोई बात नहीं है। इसलिये कृष्ण! तुम मुझ पर अपना जोर आजमाओ और बलराम के साथ मुष्टिक लड़ेगा ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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