श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 55 श्लोक 1-13
दशम स्कन्ध: पञ्चपञ्चाशत्तमोऽध्यायः (55) (उत्तरार्धः)
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! कामदेव भगवान वासुदेव के ही अंश हैं। वे पहले रूद्र भगवान की क्रोधाग्नि से भस्म हो गये थे। अब फिर शरीर-प्राप्ति के लिये उन्होंने अपने अंशी भगवान वासुदेव का ही आश्रय लिया । वे ही काम अबकी बार भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा रुक्मिणीजी के गर्भ से उत्पन्न हुए और प्रद्दुम नाम से जगत् में प्रसिद्ध हुए। सौन्दर्य, वीर्य, सौशील्य और सद्गुणों में भगवान श्रीकृष्ण से वे किसी प्रकार कम न थे । बालक प्रद्दुम अभी दस दिन एक भी ण हुए थे कि काम रूपी शम्बरासुर वेष बदलकर सूतिकागृह से उन्हें हर ले गया और समुद्र में फेंकर अपने घर लौट गया। उसे मालूम हो गया था कि यह मेरा भावी शत्रु है । समुद्र में बालक प्रद्दुम को एक बड़ा भारी मच्छ निगल गया। तदनन्तर मछुओं ने अपने बहुत बड़े जाल में फँसाकर दूसरी मछलियों के साथ उस मच्छ को भी पकड़ लिया । और उन्होंने उसे ले जाकर शम्बरासुर को भेंट के रूप में दे दिया। शम्बरासुर के रसोइये उस अद्भुत मच्छ को उठाकर रसोई घर में ले आये और कुल्हाड़ियों से उसे काटने लगे । रसोइयें ने मत्स्य के पेट में बालक देखकर उसे शम्बरासुर की दासी मायावती को समर्पित किया। उसके मन में बड़ी शंका हुई। तब नारदजी ने आकर बालक का कामदेव होना, श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी गर्भ से जन्म लेना, मच्छ पेट में जाना सब कुछ कह सुनाया । परीक्षित्! वह मायावती कामदेव की यशस्विनी पत्नी रति ही थी। जिस दिन शंकरजी ने क्रोध से कामदेव का शरीर भस्म हो गया था, उसी दिन से वह उसकी देह के पुनः उत्पन्न होने की प्रतीक्षा कर रही थी । उसी रति को शम्बरासुर ने अपने यहाँ दाल-भात बनाने के काम में नियुक्त कर रखा था। जब उसे मालूम कि इस शिशु के रूप में मेरे पति कामदेव ही हैं, तब वह उसके प्रति बहुत प्रेम करने लगी । श्रीकृष्ण कुमार भगवान प्रद्दुम बहुत थोड़े दिनों में जवान हो गये। उनका रूप-लावण्य इतना अद्भुत था कि जो स्त्रियाँ उनकी ओर देखतीं, उनके मन में श्रृंगार-रस का उद्दीपन हो जाता ।
कमलदल के समान कोमल एवं विशाल नेत्र, घुटनों तक लंबी-लंबी बाँहें और मनुष्य लोक में सबसे सुन्दर शरीर! रति सलज्ज हास्य के साथ भौंह मटका-कर उनकी ओर देखती और प्रेम से भरकर स्त्री-पुरुष सम्बन्धी भाव व्यक्त करती हुई उनकी सेवा-शुश्रूषा में लगी रहती । श्रीकृष्णनन्दन भगवान प्रद्दुम्न ने उसके भावों में परिवर्तन देखकर कहा—‘देवि! तुम तो मेरी माँ के समान हो। तुम्हारी बुद्धि उलटी कैसे हो गयी ? मैं देखता हूँ कि तुम माता का भाव छोड़कर कामिनी के समान हाव-भाव दिखा रही हो’ ।
रति ने कहा—‘प्रभो! आप स्वयं भगवान नारायण के पुत्र हैं। शरम्बरासुर आपको सूतिकागृह से चुरा लाया था। आप मेरे पति स्वयं कामदेव हैं और मैं आपकी सदा ही धर्म-पत्नी रति हूँ । मेरे स्वामी! जब आप दस दिन के भी न थे, तब इस शरम्बरासुर ने आपको हरकर समुद्र में डाल दिया था। वहाँ एक मच्छ आपको निगल गया और उसी के पेट से आप यहाँ मुझे प्राप्त हुए हैं ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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