श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 62 श्लोक 27-35
दशम स्कन्ध: द्विषष्टितमोऽध्यायः(62) (उत्तरार्ध)
परीक्षित्! यदुकुमार अनिरुद्धजी के सहवास से उषा का कुआँरपन नष्ट हो चुका था। उसके शरीर पर ऐसे चिन्ह प्रकट हो गये, जो स्पष्ट इस बात की सूचना दे रहे थे और जिन्हें किसी प्रकार छिपाया नहीं जा सकता था। उषा बहुत प्रसन्न भी रहने लगी। पहरेदारों ने समझ लिया कि इसका किसी-न-किसी पुरुष से सम्बन्ध अवश्य हो गया है। उन्होंने जाकर बाणासुर से निवेदन किया—‘राजन्! हम लोग आपकी अविवाहिता राजकुमारी का जैसा रंग-ढंग देख रहे हैं, वह आपके कुलपर बट्टा लगाने वाला है । प्रभो! इसमें सन्देह नहीं कि हम लोग बिना क्रम टूटे, रात-दिन महल का पहरा देते रहते हैं। आपकी कन्या को बाहर के मनुष्य देख भी सकते। फिर भी वह कलंकित कैसे हो गयी ? इसका कारण हमारी समझ में नहीं आ रहा है’।
परीक्षित्! पहरेदरों से यह समाचार जानकार कि कन्या का चरित्र दूषित हो गया है, बाणासुर के ह्रदय में बड़ी पीड़ा हुई। वह झटपट उषा के महल में जा धमका और देखा कि अनिरुद्धजी वहाँ बैठे हुए हैं । प्रिय परीक्षित्! अनिरुद्धजी स्वयं कामावतार प्रद्दुम्नजी के पुत्र थे। त्रिभुवन में उनके जैसा सुन्दर और कोई न था। साँवला-सलोना शरीर और उस पर पीताम्बर फहराता हुआ, कमलदल के समान बड़ी-बड़ी कोमल आँखें, लम्बी-लम्बी भुजाएँ, कपोलों पर घुँघराली अलकें और कुण्डलों की झिलमिलाती हुई ज्योति, होठों पर मन्द-मन्द मुसकान और प्रेमभरी चितवन से मुख की शोभा अनूठी हो रही थी । अनिरुद्धजी उस समय अपनी सब ओर से सज-धजकर बैठी हुई प्रियतमा उषा के साथ पासे खेल रहे थे। उनके गले में बसंती बेला के बहुत सुन्दर पुष्पों का हार सुशोभित हो रहा था और उस हार में उषा के अंग का सम्पर्क होने से उसके वक्षःस्थल की केशर लगी हुई थी। उन्हें उषा के सामने ही बैठा देखकर बाणासुर विस्मित—चकित हो गया । जब अनिरुद्धजी ने देखा कि बाणासुर बहुत-से आक्रमणकारी शस्त्रास्त्र से सुसज्जित वीर सैनिकों के साथ महलों में घुस आया है, तब वे उन्हें धराशायी कर देने के लिये लोहे का एक भयंकर परिघ लेकर डट गये, मानो स्वयं कालदण्ड लेकर मृत्यु (यम) खड़ा हो । बाणासुर के साथ आये हुए सैनिक उनको पकड़ने के लिये ज्यों-ज्यों उनकी ओर झपटते, त्यों-त्यों वे उन्हें मार-मारकर गिराते जाते—ठीक वैसे ही, जैसे सूअरों के दल का नायक कुत्तों को मार डाले! अनिरुद्धजी की चोट से उन सैनिकों के सिर, भुजा, जंघा आदि अंग टूट-फूट गये और वे महलों से निकल भागे । जब बली बाणासुर ने देखा कि यह तो मेरी सारी सेना का संहार कर रहा है, तब वह क्रोध से तिलमिला उठा और उसने नागपाश से उन्हें बाँध लिया। उषा ने जब सुना कि उसके प्रियतम को बाँध लिया गया है, तब वह अत्यन्त शोक और विषाद से विह्वल हो गयी; उसके नेत्रों से आँसू की धारा बहने लगी, वह रोने लगी ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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