श्रीमद्भागवत महापुराण एकादश स्कन्ध अध्याय 11 श्लोक 47-49
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
एकादश स्कन्ध: एकादशोमोऽध्यायः (11)
श्रीमद्भागवत महापुराण: एकादश स्कन्ध: एकादशोमोऽध्यायः श्लोक 47-49 का हिन्दी अनुवाद
इस प्रकार जो मनुष्य एकाग्र चित्त से यज्ञ-यागादि इष्ट और कुआँ-बावली बनवाना आदि पुर्तकर्मों के द्वारा मेरी पूजा करता है, उसे मेरी श्रेष्ठ भक्ति प्राप्त होती है तथा संत-पुरुषों की सेवा करने से मेरे स्वरुप का ज्ञान भी हो जाता है । प्यारे उद्धव! मेरा ऐसा निश्चय है कि सत्संग और भक्तियोग—इन दो साधनों का एक साथ ही अनुष्ठान करते रहना चाहिये। प्रायः इन दोनों के अतिरिक्त संसार सागर से पार होने का और कोई उपाय नहीं है, क्योंकि संत पुरुष मुझे अपना आश्रय मानते हैं और मैं सदा-सर्वदा उनके पास बना रहता हूँ । प्यारे उद्धव! अब मैं तुम्हें एक अत्यन्त गोपनीय परम रहस्य की बात बतलाऊँगा; क्योंकि तुम मेरे प्रिय सेवक, हितैषी, सुहृद् और प्रेमी सखा हो; साथ ही सुनने के भी इच्छुक हो ।
« पीछे | आगे » |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
-