भागवत धर्म सार -विनोबा भाग-9

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3. भक्त लक्षण

1. सर्व-भूतेषु यः पश्येत् भगवद्भावमात्मनः।
भूतानि भगवत्यात्मन्येष भागवतोत्तमः।।
अर्थः
सब भूतों में परमेश्वर स्वरूप अपनी ही आत्मा को और परमेश्वर स्वरूप अपनी आत्मा में सब भूतों को जो देखता है, वह ‘भागवतोत्तम’ ( उत्तम कोटि का भगवद्भक्त ) है।
 
2. ईश्वरे तदधीनेषु बालिशेषु द्विषत्सु च।
प्रेम मैत्री कृपोपेक्षा यः करोति स मध्यमः।।
अर्थः
जो भक्त ईश्वर में प्रेम, उनके भक्तों से मित्रता, मूढ़जनों पर कृपा और शत्रु की उपेक्षा करता है, वह मध्यम कोटि का भक्त है।
 
3. अर्चायामेव हरये पूजां यः श्रद्धयेहते।
न तद्भक्तेषु चान्येषु स भक्तः प्राकृतः स्मृतः।।
अर्थः
जो श्रद्धा से केवल भगवान् के विग्रह को पूजना चाहता है, लेकिन उनके भक्तों और दूसरे लोगों को जो श्रद्धा से पूजना नहीं चाहता, वह प्राकृत यानी कनिष्ठ भक्त हैं।
 
4. गृहीत्वाऽपींद्रियैरर्थान् यो न द्वेष्टि न हृष्यति।
विष्णोर् मायां इदं पश्यन् स वै भागवतोत्तमः।।
अर्थः
यह समस्त विश्व सर्वव्यापी ईश्वर की माया है, यह ज्ञान होने के कारण, इंद्रियों से विषयों का ग्रहण करते हुए भी जिसे हर्ष या विषाद नहीं होता, वह उत्तम भक्त है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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