इंदिरा गाँधी और देश का विकास

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पाकिस्तान से युद्ध के बाद इंदिरा गाँधी ने अपना सारा ध्यान देश के विकास की ओर केंद्रित कर दिया। संसद में उन्हें बहुमत प्राप्त था और निर्णय लेने में स्वतंत्रता थी। उन्होंने ऐसे उद्योगों को रेखांकित किया जिनका कुशल उपयोग नहीं हो रहा था। उनमें से एक बीमा उद्योग था और दूसरा कोयला उद्योग। बीमा कंपनियाँ भारी मुनाफा अर्जित कर रही थीं। लेकिन उनकी पूँजी से देश का विकास नहीं हो रहा था। वह पूँजी निजी हाथों में जा रही थी। बीमा कंपनियों के नियमों में पारदर्शिता का अभाव होने के कारण जनता को वैसे लाभ नहीं प्राप्त हो रहे थे, जैसे होने चाहिए थे। लिहाज़ा अगस्त, 1972 में बीमा कारोबार का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। इसी प्रकार कोयला उद्योग में भी श्रमिकों का शोषण किया जा रहा था। उस समय कोयला एक परंपरागत ऊर्जा का स्रोत था और उसकी बर्बादी की जा रही थी। कोयला खानों की खुदाई वैज्ञानिकतापूर्ण नहीं थी। इस कारण खान दुर्घटनाओं में सैकड़ों श्रमिक एक साथ काल-कवलित हो जाते थे। कोयला उद्योग एक माफिया गिरोह के हाथों में संचालित होता नज़र आ रहा था। सरकार को रेल एवं उद्योगों के लिए कोयला आपूर्ति हेतु इन पर आश्रित होना पड़ता था। अतः इंदिरा गाँधी ने कोयला उद्योग का भी जनवरी 1972 में राष्ट्रीयकरण कर दिया। उनके इन दोनों कार्यों को अपार जनसमर्थन प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त इंदिरा गाँधी ने निम्नवत समाजोपयोगी क़दम उठाए जिनकी उम्मीद लोक कल्याणकारी सरकार से की जा रही थी।

  1. हदबंदी क़ानून को पूरी तरह लागू किया गया। अतिरिक्त भूमि को लघु कृषकों एवं भूमिहीनों के मध्य वितरित किया गया।
  2. केंद्र की अनुशंसा पर राज्य सरकारों ने भी विधेयक पारित करके इन क़ानूनों को राज्य में लागू करने का कार्य किया।
  3. आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को सस्ती दरों पर खाद्यान्न प्रदान करने की योजना का शुभारंभ किया गया।
  4. ग्रामीण बैंकों की स्थापना अनिवार्य की गई और उन्हें यह निर्देश दिया गया कि किसानों एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना करने वाले लोगों को सस्ती ब्याज दर पर पूँजी उपलब्ध करवाएँ।
  5. ज्वॉइट स्टॉक कंपनियों द्वारा जो राजनीतिक चंदा प्रदान किया जाता था, उस पर रोक लगा दी गई ताकि धन का नाजायज़ उपयोग रोका जा सके।
  6. परमाणु बम बनाने की क्षमता हासिल करने के लिए राजस्थान के पोकरण में परमाणु विस्फोट किया गया।
  7. इंदिरा गाँधी ने यह प्रस्ताव पारित करवाया कि संसद में पारित हुए विधेयकों को निरस्त करने का अधिकार उच्चतम न्यायालय को नहीं होगा।


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