रहिमन कोऊ का करै -रहीम

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‘रहिमन’ कोऊ का करै, ज्वारी,चोर,लबार।
जो पत-राखनहार है, माखन-चाखनहार॥2॥

अर्थ

जिसकी लाज रखने वाले माखन के चाखनहार अर्थात रसास्वादन लेने वाले स्वयं श्रीकृष्ण हैं, उसका कौन क्या बिगाड़ सकता है? न तो कोई जुआरी उसे हरा सकता है, न कोई चोर उसकी किसी वस्तु को चुरा सकता है और न कोई लफंगा उसके साथ असभ्यता का व्यवहार कर सकता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सन्दर्भ-जुआरी का आशय है यहां शकुनि से, जिसने युधिष्ठर को धूर्ततापूर्वक जुए में बुरी तरह हरा दिया था। ब्रह्मा द्वारा जब ग्वाल-बालों की गांए चुरा ली गयीं, तब श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा की थी। इसी प्रकार दुष्ट दु:शासन द्वारा साड़ी खींचने पर आर्त द्रौपदी की लाज श्रीकृष्ण ने बचाई थी।

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