जाल परे जल जात बहि -रहीम

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जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
‘रहिमन’ मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह॥

अर्थ

धन्य है मीन की अनन्य भावना! सदा साथ रहने वाला जल मोह छोड़कर उससे विलग हो जाता है, फिर भी मछली अपने प्रिय का परित्याग नहीं करती, उससे बिछुड़कर तड़प-तड़पकर अपने प्राण दे देती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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