रहिमन कीन्ही प्रीति -रहीम

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:24, 7 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('<div class="bgrahimdv"> ‘रहिमन’ कीन्ही प्रीति, साहब को भावै नहीं।<...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

‘रहिमन’ कीन्ही प्रीति, साहब को भावै नहीं।
जिनके अगनित मीत, हमें गरीबन को गनैं॥

अर्थ

मैंने स्वामी से प्रीति जोड़ी, पर लगता है कि उसे वह अच्छी नहीं लगी। मैं सेवक तो गरीब हूं, और, स्वामी के अगणित मित्र हैं। ठीक ही है, असंख्य मित्रों वाला स्वामी गरीबों की तरफ क्यों ध्यान देने लगा।


पीछे जाएँ
पीछे जाएँ
रहीम के दोहे
आगे जाएँ
आगे जाएँ

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख