श्रेणी:अयोध्या काण्ड
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- अँगरी पहिरि कूँड़ि सिर धरहीं
- अंतरजामी रामु सकुच
- अंतरजामी रामु सिय
- अंब एक दुखु मोहि बिसेषी
- अगम पंथ बनभूमि पहारा
- अगम सनेह भरत रघुबर को
- अगम सबहि बरनत बरबरनी
- अजसु होउ जग सुजसु नसाऊ
- अजहुँ जासु उर सपनेहुँ काऊ
- अजहुँ बच्छ बलि धीरज धरहू
- अजहूँ हृदय जरत तेहि आँचा
- अजिन बसन फल असन
- अटनु राम गिरि बन तापस थल
- अति अनुराग अंब उर लाए
- अति आनंद उमगि अनुरागा
- अति आरति सब पूँछहिं रानी
- अति बिषाद बस लोग लोगाईं
- अति लघु बात लागि दुखु पावा
- अति लालसा बसहिं मन माहीं
- अति सप्रेम सिय पाँय परि
- अति सरोष माखे लखनु
- अत्रि आदि मुनिबर बहु बसहीं
- अत्रि कहेउ तब भरत
- अनरथु अवध अरंभेउ जब तें
- अनहित तोर प्रिया केइँ कीन्हा
- अनुचित आजु कहब अस मोरा
- अनुचित उचित काजु किछु होऊ
- अनुचित उचित बिचारु
- अनुचित नाथ न मानब मोरा
- अपडर डरेउँ न सोच समूलें
- अपनें चलत न आजु लगि
- अब अति कीन्हेहु भरत भल
- अब अभिलाषु एकु मन मोरें
- अब कछु नाथ न चाहिअ मोरें
- अब कृपाल जस आयसु होई
- अब कृपाल मोहि सो मत भावा
- अब तुम्ह बिनय मोरि सुनि लेहू
- अब सबु आँखिन्ह देखेउँ आई
- अब हम नाथ सनाथ
- अबला बालक बृद्ध जन
- अमर नाग किंनर दिसिपाला
- अमर नाग नर राम बाहुबल
- अरथ न धरम न काम
- अरुंधती अरु अगिनि समाऊ
- अलिगन गावत नाचत मोरा
- अवगाहि सोक समुद्र सोचहिं
- अवगुन तजि सब के गुन गहहीं
- अवध उजारि कीन्हि कैकेईं
- अवध तहाँ जहँ राम निवासू
- अवध प्रबेसु कीन्ह अँधिआरें
- अवनिप अकनि रामु पगु धारे
- अवसि अत्रि आयसु सिर धरहू
- अवसि चलिअ बन रामु
- अवसि दूतु मैं पठइब प्राता
- अवसि नरेस बचन फुर करहू
- अवसि फिरहिं गुर आयसु मानी
- अस अभिलाषु नगर सब काहू
- अस कहि अति सकुचे रघुराऊ
- अस कहि कुटिल भई उठि ठाढ़ी
- अस कहि पग परि प्रेम
- अस कहि प्रेम बिबस भए भारी
- अस कहि मातु भरतु हिएँ लाए
- अस कहि राम गवनु तब कीन्हा
- अस कहि लखन ठाउँ देखरावा
- अस कहि सीय बिकल भइ भारी
- अस जियँ जानि कहिअ सोइ ठाऊँ
- अस जियँ जानि सुजान सिरोमनि
- अस जियँ जानि सुनहु सिख भाई
- अस बिचारि उर छाड़हु कोहू
- अस बिचारि केहि देइअ दोसू
- अस बिचारि गुहँ ग्याति सन
- अस बिचारि नहिं कीजिअ रोसू
- अस बिचारि सोइ करहु उपाई
- अस बिचारि सोइ करहु जो भावा
- अस मन गुनइ राउ नहिं बोला
- अस मोहि सब बिधि भूरि भरोसो
- असन पान सुचि अमिअ अमी से
- अहिप महिप जहँ लगि प्रभुताई
आ
- आइ बना भल सकल समाजू
- आगम निगम प्रसिद्ध पुराना
- आगिल काजु बिचारि बहोरी
- आगें दीखि जरत सिर भारी
- आगें मुनिबर बाहन आछें
- आगें रामु लखनु बने पाछें
- आजु राम सेवक जसु लेऊँ
- आजु सफल तपु तीरथ त्यागू
- आन उपाउ न देखिअ देवा
- आन उपाउ मोहि नहिं सूझा
- आनहु रामहि बेगि बोलाई
- आपन मोर नीक जौं चहहू
- आपनि दारुन दीनता
- आपु आश्रमहि धारिअ पाऊ
- आपु छोटि महिमा बड़ि जानी
- आपु सुरसरिहि कीन्ह प्रनामू
- आयसु देहि मुदित मन माता
- आयसु पालि जनम फलु पाई
- आयसु होइ त रहौं सनेमा
- आरत कहहिं बिचारि न काऊ
- आरत जननी जानि
- आरत लोग राम सबु जाना
- आरति बस सनमुख भइउँ
- आवत जनकु चले एहि भाँती
- आश्रम सागर सांत
- आसन सयन बिभूषन हीना
- आसन सयन सुबसन बिताना
उ
ए
- ए महि परहिं डासि कुस पाता
- एक कलस भरि आनहिं पानी
- एक कहहिं भल भूपति कीन्हा
- एक कहहिं हम बहुत न जानहिं
- एक कीन्हि नहिं भरत भलाई
- एक देखि बट छाँह
- एक निमेष बरष सम जाई
- एक बिधातहि दूषनु देहीं
- एक समय सब सहित समाजा
- एक सराहहिं भरत सनेहू
- एकउ जुगुति न मन ठहरानी
- एकटक सब सोहहिं चहुँ ओरा
- एकहिं बार आस सब पूजी
- एकु मनोरथु बड़ मन माहीं
- एतना कहत नीति रस भूला
- एतनेइ कहेहु भरत सन जाई
- एहि अवसर मंगलु परम
- एहि ते अधिक धरमु नहिं दूजा
- एहि तें कवन ब्यथा बलवाना
- एहि दुख दाहँ दहइ दिन छाती
- एहि प्रकार गत बासर सोऊ
- एहि बिधि आइ बिलोकी बेनी
- एहि बिधि करत पंथ पछितावा
- एहि बिधि करत प्रलाप कलापा
- एहि बिधि कहि कहि बचन
- एहि बिधि दाह क्रिया सब कीन्ही
- एहि बिधि पूँछहिं प्रेम
- एहि बिधि प्रभु बन बसहिं सुखारी
- एहि बिधि बासर बीते चारी
- एहि बिधि भरत चले मग जाहीं
- एहि बिधि भरत सेनु सबु संगा
- एहि बिधि भरतु फिरत बन माहीं
- एहि बिधि मज्जनु भरतु
- एहि बिधि मुनिबर भवन देखाए
- एहि बिधि रघुकुल कमल
- एहि बिधि राउ मनहिं मन झाँखा
- एहि बिधि राम सबहि समुझावा
- एहि बिधि सोचत भरत
- एहि सुख जोग न लोग
- एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी
- एहिं प्रतिपालउँ सबु परिवारू
- एहिं समाज थल बूझब राउर
क
- कंद मूल फल अमिअ अहारू
- कंदर खोह नदीं नद नारे
- कत सिख देइ हमहि कोउ माई
- कतहुँ निमज्जन कतहुँ प्रनामा
- कद्रूँ बिनतहि दीन्ह दुखु
- कनक बिंदु दुइ चारिक देखे
- कनक सिंघासन सीय समेता
- कनकहिं बान चढ़इ जिमि दाहें
- कपट कुचालि सीवँ सुरराजू
- कपटी कायर कुमति कुजाती
- कबहुँ न कियहु सवति आरेसू
- कर मीजहिं सिरु धुनि पछिताहीं
- करइ बिचारु कुबुद्धि कुजाती
- करइ स्वामि हित सेवकु सोई
- करत दंडवत देखि तेहि
- करत प्रबेस मिटे दुख दावा
- करत मनोरथ जस जियँ जाके
- करबि पायँ परि बिनय बहोरी
- करम बचन मन छाड़ि
- करम बचन मानस बिमल
- करमनास जलु सुरसरि परई
- करहिं जोहारु भेंट धरि आगे
- करहिं प्रनाम नगर नर नारी
- करि कुचालि सोचत सुरराजू
- करि कुमंत्रु मन साजि समाजू
- करि कुरूप बिधि परबस कीन्हा
- करि केहरि कपि कोल कुरंगा
- करि केहरि निसिचर
- करि केहरि बन जाइ न जोई
- करि दंडवत भेंट धरि आगें
- करि पितु क्रिया बेद जसि बरनी