थके नारि नर प्रेम पिआसे
{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रामचरितमानस |लेखक= |कवि= गोस्वामी तुलसीदास |मूल_शीर्षक = रामचरितमानस |मुख्य पात्र = राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |कथानक = |अनुवादक = |संपादक = |प्रकाशक = गीता प्रेस गोरखपुर |प्रकाशन_तिथि = |भाषा = |देश = |विषय = |शैली =चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |मुखपृष्ठ_रचना = |विधा = |प्रकार = |पृष्ठ = |ISBN = |भाग = |शीर्षक 1=संबंधित लेख |पाठ 1=दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |शीर्षक 2=काण्ड |पाठ 2=अयोध्या काण्ड |भाग = |विशेष = |टिप्पणियाँ = }
थके नारि नर प्रेम पिआसे। मनहुँ मृगी मृग देखि दिआ से॥ |
- भावार्थ
प्रेम के प्यासे (वे गाँवों के) स्त्री-पुरुष (इनके सौंदर्य-माधुर्य की छटा देखकर) ऐसे थकित रह गए जैसे दीपक को देखकर हिरनी और हिरन (निस्तब्ध रह जाते हैं)! गाँवों की स्त्रियाँ सीताजी के पास जाती हैं, परन्तु अत्यन्त स्नेह के कारण पूछते सकुचाती हैं॥2॥
थके नारि नर प्रेम पिआसे |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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