तेहि फल कर फलु दरस तुम्हारा

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{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रामचरितमानस |लेखक= |कवि= गोस्वामी तुलसीदास |मूल_शीर्षक = रामचरितमानस |मुख्य पात्र = राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |कथानक = |अनुवादक = |संपादक = |प्रकाशक = गीता प्रेस गोरखपुर |प्रकाशन_तिथि = |भाषा = |देश = |विषय = |शैली =चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |मुखपृष्ठ_रचना = |विधा = |प्रकार = |पृष्ठ = |ISBN = |भाग = |शीर्षक 1=संबंधित लेख |पाठ 1=दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |शीर्षक 2=काण्ड |पाठ 2=अयोध्या काण्ड |शीर्षक 3=सभी (7) काण्ड क्रमश: |पाठ 3=बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड |भाग = |विशेष = |टिप्पणियाँ = }

चौपाई

तेहि फल कर फलु दरस तुम्हारा। सहित प्रयाग सुभाग हमारा॥
भरत धन्य तुम्ह जसु जगु जयऊ। कहि अस प्रेम मगन मुनि भयऊ॥3॥

भावार्थ

(सीता-लक्ष्मण सहित श्री रामदर्शन रूप) उस महान फल का परम फल यह तुम्हारा दर्शन है! प्रयागराज समेत हमारा बड़ा भाग्य है। हे भरत! तुम धन्य हो, तुमने अपने यश से जगत को जीत लिया है। ऐसा कहकर मुनि प्रेम में मग्न हो गए॥3॥


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तेहि फल कर फलु दरस तुम्हारा
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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (अयोध्याकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-267

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