प्रयोग:कविता बघेल
सखाराम गणेश देउसकर (अंग्रेज़ी: Sakharam Ganesh Deuskar, जन्म: 17 दिसंबर, 1869, बिहार प्रदेश; मृत्यु: 23 नवंबर, 1912) क्रांतिकारी लेखक, इतिहासकार तथा पत्रकार थे। वे भारतीय जन-जागरण के ऐसे विचारक थे जिनके चिंतन और लेखन में स्थानीयता और अखिल बांग्ला तथा चिंतन-मनन का क्षेत्र इतिहास, अर्थशास्त्र, समाज एवं साहित्य था।
परिचय
सखाराम गणेश देउस्कर का जन्म 17 दिसम्बर 1869 को देवघर के पास 'करौं' नामक गांव में हुआ था, जो अब झारखंड राज्य में है। मराठी मूल के देउस्कर के पूर्वज महाराष्ट्र के रत्नागिरि ज़िले में शिवाजी के आलबान नामक किले के निकट देउस गाँव के निवासी थे। 18वीं सदी में मराठा शक्ति के विस्तार के समय इनके पूर्वज महाराष्ट्र के देउस गांव से आकर करौं में बस गए थे। पाँच साल की अवस्था में माँ का देहांत हो जाने के बाद बालक सखाराम का पालन-पोषण उनकी विद्यानुरागिनी बुआ के पास हुआ जो मराठी साहित्य से भली भाँति परिचित थीं। उनके जतन, उपदेश और परिश्रम ने सखाराम में मराठी साहित्य के प्रति प्रेम उत्पन्न किया। बचपन में वेदों के अध्ययन के साथ ही सखाराम ने बंगाली भाषा भी सीखी। इतिहास उनका प्रिय विषय था। सखाराम गणेश देउस्कर बाल गंगाधर तिलक को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
आंदोलन
महान राष्ट्रवादी और स्वदेशी आंदोलन के प्रमुख समर्थक सखाराम गणेश देउसकर का जन्म 17 दिसंबर,1896 ई. को बिहार प्रदेश में हुआ था। उनके पूर्वज महाराष्ट्र के रहने वाले थे। सखाराम बिहार प्रदेश के संथला परगना के करो गाँव में रहते थे। पर उन्होंने सार्वजनिक सेवा कोलकाता में जाकर की। उन्होंने कोलकाता में शिवाजी महोत्सव आरंभ करके युवकों के अन्दर राष्ट्रीयता की भावना भरी। वे बंग भंग से पहले ही स्वदेशी के प्रवर्तक थे। देश की स्वतंत्रता को अपने जीवन का लक्ष्य मानने वाले सखाराम ने क्रांतिकारी आंदोलन से भी संपर्क रखा और बंगला तथा हिन्दी में साहित्य की रचना करके जन-जागृति में योग दिया।
सखाराम गणेश देउसकर की अध्यक्षता में कोलकाता में 'बुद्धिवर्धिनी' सभा का गठन हुआ। इस सभा के माध्यम से युवकों के ज्ञान में वृद्धि तो होती ही थी, उन्हें राजनीतिक ज्ञान भी प्राप्त होता था। साथ ही लोगों को स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग की प्ररेणा मिलती थी। 1905 मे बंग-भंग के विरोद्ध में जो आंदोजन चला, उसमें देउसकर का बड़ा योगदान था।
देउसकर संस्कृत,मराठी और हिन्दी भाषा के अच्छे ज्ञाता थे। बंगला भाषा के प्रसिद्ध पत्र 'हितवादी' का वे संपादन करते थे। उनकी प्रेरणा से इस पत्र का 'हितवार्ता' के नाम से हिन्दी संस्करण निकला जिसका संपादन पं. बाबूराव विष्ण पराड़कर ने किया। हिन्दी में भी बंगला, मराठी आदि की भाँति विभक्ति शब्द से मिला कर लिखी जाए, इसके लिए देउसकर ने एक आंदोलन चलाया था।
देउसकर का एक बड़ा योगदान था 'देशेर कथा' नामक ग्रंथ की रचना। इसके प्रथम संस्करण का पं. बाबूराव विष्णु पराड़कर ने 'देश की बात' नाम से हिन्दी में अनुवाद किया था। इस पुस्तक में पराधीन देश की दशा पर प्रकाश डाला गया था। विदेशी सरकार ने इसे प्रकाशित होते ही जब्त कर लिया था, पर गुप्त रूप से देश भर में इसका बहुत प्रचार हुआ। देउसकर का घर अरविन्द घोष और वारीन्द्र घोष जैसे क्रांतिकारियों का मिलन स्थान था जो दिन में पत्रकारिता करते और रात्रि में अपने दल के कार्यों में संलग्न रहते। वे लोकमान्य के पक्के अनुयायी थे और बंगाल में जनजागति लाने के कारण वे 'बंगाल के तिलक' कहलाते थे। हिन्दी के प्रचार के लिए भी वे निरंतर प्रयत्नशील रहे। राष्ट्रभक्त सखाराम गणेश देउसकर का अल्प आयु में ही 23 नवंबर 1912ई. को देहांत हो गया।