प्रयोग:माधवी
माधवी
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पूरा नाम | भाई संतोख सिंह |
जन्म | 1893 |
जन्म भूमि | सिंगापुर |
मृत्यु | 1927 |
अभिभावक | पिता- सरदार ज्वालासिंह |
नागरिकता | भारतीय |
धर्म | सिक्ख |
आंदोलन | कम्युनिस्ट आंदोलन |
संबंधित लेख | गांधी जी |
अन्य जानकारी | भारतीय सेना को साथ लेकर देशव्यापी क्रांति के द्वारा ब्रिटिश सत्ता को समाप्त करने की योजना बनाई गई। जर्मनी आदि से शस्त्र भेजने की व्यवस्था हुई। |
अद्यतन | 03:31, 12 जनवरी-2017 (IST) |
भाई संतोख सिंह (अंग्रेज़ी: Santokh Singh, जन्म- 1893, सिंगापुर; मृत्यु- 1927) क्रांतिकारी और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत की स्वतंत्रता के लिए अमरीका में गठित 'गदर पार्टी' के महामंत्री थे। संतोख सिंह गांधी जी के विचारों और कांग्रेस की नीति के विरोधी और वर्ग संघर्ष के समर्थक थे। अपने विचारों के प्रचार के लिए संतोख सिंह ने 'कीर्ति' नामक पत्रिका भी निकाली।[1]
जन्म एवं परिचय
भाई संतोख सिंह का जन्म 1893 ई. में सिंगापुर में हुआ था। अमृतसर के निवासी उनके पिता सरदार ज्वालासिंह सेना में नियुक्त थे। अमृतसर के खालसा कॉलेज में शिक्षा पाने के बाद 1912 में संतोख सिंह अमरीका चले गए।
क्रांतिकारी गतिविधियों
अमेरिका में भाई संतोख सिंह का संपर्क प्रसिद्ध क्रांतिकारी और "गदर पार्टी" के संस्थापक लाला हरदयाल से हुआ। वे राष्ट्रवादी भावनाओं के करतार सिंह सराबा आदि कुछ अन्य सिक्खों के भी संपर्क में आए। "गदर पार्टी" के महामंत्री के रूप में संतोख सिंह ने दल को काफी आगे बढ़ाया। भारतीय सेना को साथ लेकर देशव्यापी क्रांति के द्वारा ब्रिटिश सत्ता को समाप्त करने की योजना बनाई गई। जर्मनी आदि से शस्त्र भेजने की व्यवस्था हुई। 21 फरवरी 1915 का दिन इस क्रांति के लिए निर्धारित था। इन स्थानों में नियुक्त भारतीय सैनिकों से संपर्क स्थापित करने के लिए संतोख सिंह बर्मा और मलाया गये। लेकिन अंग्रेजों के एक मुखबिर कृपालसिंह के कारण यह प्रयत्न आरंभ होने से पहले ही दबा दिया गया।
आंदोलन में सम्मिलित
सैनफ्रांसिस्को में कुछ अन्य साथियों के साथ संतोख सिंह पर 1917 में मुकदमा चला और सजा हुई। इस बीच रूस में क्रांति हो चुकी थी। जेल से रिहा होने पर संतोख सिंह रूस चले गए और कम्युनिस्ट आंदोलन में सम्मिलित हो गए। 1924 में भारत आकर उन्होंने पंजाब में कम्युनिस्ट आंदोलन को आगे बढ़ाया। अपने विचारों के प्रचार के लिए संतोख सिंह ने 'कीर्ति' नामक पत्रिका भी निकाली।
निधन
भाई संतोख सिंह का 1927 में देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 570 |
संबंधित लेख
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माधवी
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पूरा नाम | भूपेंद्रनाथ दत्त |
जन्म | 4 सितंबर, 1880 |
जन्म भूमि | कोलकाता |
मृत्यु | 26 दिसंबर, 1961 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | क्रांतिकारी, लेखक तथा समाजशास्त्री |
धर्म | हिंदू |
शिक्षा | एम.ए., पी.एच.डी. की डिग्री |
संबंधित लेख | स्वामी विवेकानंद |
अन्य जानकारी | उनकी लिखी हुई कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें हैं- 'डाइलेक्टिक्स ऑफ हिंदू रिचुलिक्म', 'डाइलेक्टिक्स ऑफ लैंड-इकानामिक्स ऑफ इंडिया', 'स्वामी विवेकानंद- 'पैट्रियट-प्रोफेट', 'सेकंड फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया', 'आरिजिन एण्ड डिवलपमेंट ऑफ इंडियन सोशल पोलिटी' आदि। |
अद्यतन | 03:31, 12 जनवरी-2017 (IST) |
भूपेंद्रनाथ दत्त (अंग्रेज़ी: Bhupendranath Datta, जन्म- 4 सितंबर, 1880, कोलकाता; मृत्यु- 26 दिसंबर, 1961) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध क्रांतिकारी, लेखक तथा समाजशास्त्री थे। ये स्वामी विवेकानंद के भाई थे। भूपेंद्रनाथ दत्त युवाकाल में युगान्तर आन्दोलन से नजदीकी से जुड़े थे। अपनी गिरफ्तारी (सन् 1907) तक वे युगान्तर पत्रिका के सम्पादक थे। भूपेंद्रनाथ दो बार अखिल भारतीय श्रमिक संघ के अध्यक्ष भी रहे।[1]
जन्म एवं परिचय
भूपेंद्रनाथ दत्त का जन्म 4 सितंबर, 1880 ई. कोलकाता में हुआ था। इनके परिवार का बंगाल के प्रबुद्ध व्यक्तियों से निकट का संबंध था। भूपेंद्रनाथ की आरंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर द्वारा स्थापित विद्यालय में हुई थी। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों के साथ अपना अध्ययन भी जारी रखा और अमेरिका से एम.ए. और जर्मनी से पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की।
क्रांतिकारी गतिविधियां
भूपेंद्रनाथ दत्त शीघ्र ही क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए और बंगाल क्रांतिकारी दल के मुख्य पत्र 'युगांतर' के संपादक बने। 1902 में उन्हें राजद्रोह के अपराध में गिरफ्तार करके एक वर्ष कैद की सजा दे दी गई। जेल से छूटने पर जब भूपेंद्र दत्त को अलीपुर बम कांड में फंसाने की तैयारी हो रही थीं, वे देश से बाहर अमेरिका चले गए। प्रथम विश्वयुद्ध के समय भूपेंद्रनाथ जर्मनी में थे। उन्होंने अमेरिका में स्थापित 'गदर पार्टी' से भी संबंध रखा। 1925 में वे भारत आए। भूपेंद्रनाथ दत्त को यह देखकर दु:ख हुआ कि स्वयं को मार्क्सवादी कहने वाले लोग भारत के स्वतंत्रता संग्राम का विरोध कर रहे हैं।
समाज सुधारक
भूपेंद्रनाथ दत्त कांग्रेस में सम्मिलित हो गए। 1930 की कराची कांग्रेस में किसानों, मजदूरों के हिर संबंधी प्रस्ताव को स्वीकार कराने में उनका बड़ा हाथ था। उसके बाद उन्होंने अपना ध्यान श्रमितों को संगठित करने पर लगाया। भूपेंद्रनाथ दो बार अखिल भारतीय श्रमिक संघ के अध्यक्ष भी रहे। समाज सुधार के कामों में भी भूपेंद्रनाथ दत्त बराबर भाग लेते रहे। वे जाति-पांत, छुआछूत और महिलाओं के प्रति भेदभाव के विरोधी थे।
लेखन कार्य
भूपेंद्रनाथ अच्छे लेखक थे। उनकी लिखी हुई कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें हैं- 'डाइलेक्टिक्स ऑफ हिंदू रिचुलिक्म', 'डाइलेक्टिक्स ऑफ लैंड-इकानामिक्स ऑफ इंडिया', 'स्वामी विवेकानंद- 'पैट्रियट-प्रोफेट', 'सेकंड फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया', 'आरिजिन एण्ड डिवलपमेंट ऑफ इंडियन सोशल पोलिटी' आदि।
निधन
26 दिसंबर, 1961 को भूपेंद्रनाथ दत्त का कोलकाता में देहांत हो गया। {लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }}
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 579 |
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