कलिखो पुल
कलिखो पुल (अंग्रेज़ी: Kalikho Pul, जन्म- 20 जुलाई, 1969, अरुणाचल प्रदेश; मृत्यु- 9 अगस्त, 2016, ईटानगर) प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ तथा पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश के आठवें मुख्यमंत्री थे। उन्होंने फ़रवरी 2016 से जुलाई 2016 तक मुख्यमंत्री का पद सम्भाला। 13 जुलाई को उच्चतम न्यायालय के आदेश के पश्चात कलिखो पुल को मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था। कलिखों ने पांच बार कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता था। साल 2015 में वे कांग्रेस से निकल कर भारतीय जनता पार्टी में चले गए। जब बीजेपी ने कांग्रेस के 12 विधायकों की मदद से सरकार बनाई, तब कलिखो पुल को अरुणाचल प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया। 9 अगस्त, 2016 को कथित तौर पर ईटानगर स्थित अपने सरकारी आवास में आत्महत्या करने के कारण कलिखो पुल की मृत्यु हो गयी।
परिचय
कलिखो पुल का जन्म 20 जुलाई, 1969 को अरुणाचल प्रदेश में हुआ था। वे कमान मिशमी जातीय समूह से थे। यह समूह भारत-चीन सीमा के दोनों तरफ़ पाया जाता है। 13 महीने की छोटी-सी उम्र में कलिखो की मां की मौत हो गई थी और छ: साल की उम्र में पिता का साया भी उठ गया। कलिखो पुल अपनी चाची के घर रहते थे, लेकिन स्कूल जाने की बजाय जंगल से लकड़ियां चुनकर लानी होती थीं। गरीबी अकेले कलिखो पुल की दुश्मन नहीं थी, बीमारी भी कलिखो को बार-बार परेशान करती रही। 1980 में कलिखो बीमार थे, लेकिन इलाज के लिए उनके पास सिर्फ 1600 रुपए थे। रिश्तेदारों से भी मदद नहीं मिली। कलिखो इतना परेशान हुए कि उन्होंने खुदकुशी का मन बना लिया और लोहित नदी में छलांग लगाने के लिए 36 मिनट तक वहां खड़े रहे। लेकिन यहीं से उन्होंने एक नई शुरुआत की। 1996 में कलिखो पुल का विवाह हुआ, उस वक्त वे गेगांग अपांग की सरकार में मंत्री थे.[1]
शिक्षा
कलिखो पुल में पढ़ने की ललक थी, लेकिन उनके पास कोई रास्ता नहीं था। 12 साल की उम्र में बढ़ई का काम सीखते वक्त कलिखो ने एक कोचिंग सेंटर में दाखिला ले लिया। वह दिन में काम करते और रात में पढ़ते थे। उसी सेंटर में एक दिन एक कार्यक्रम था, जहां कलिखो ने हिन्दी में स्वागत भाषण दिया और देशभक्ति का गीत गाया। कार्यक्रम में मौजूद ज़िला कलेक्टर कलिखो से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने कलिखो का दाखिला स्कूल में करवा दिया। स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही कलिखो ने पान की भी दुकान लगाई। स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही कलिखो पुल ठेके पर छोटे-मोटे काम भी करने लगे थे। नौवीं कक्षा में आते-आते वह चार पुराने ट्रक खरीदने में कामयाब रहे। उन्होंने बाद में इंदिरा गांधी गवर्नमेंट कॉलेज से बी.ए. उत्तीर्ण किया। स्नातक के तीसरे साल तक कलिखो ने 2.73 लाख रुपये में अपना एक घर बनाया। कॉलेज के दिनों में वे छात्र राजनीति में आ गए थे, जहाँ कांग्रेस ने इन्हें विधानसभा का टिकट दिया।
राजनीतिक जीवन
कलिखो पुल वर्ष 2003 से लेकर 2007 तक मुख्यमंत्री गेगांग अपांग के मंत्रालय में राज्य वित्त मंत्री रहे। उल्लेखनीय है कि राज्य में राजनीतिक संकट की शुरुवात दिसंबर, 2015 में तब हुई, जब कांग्रेस के 47 विधायकों में से 21 ने बगावत कर दी और नबाम टुकी की अगुवाई वाली कांग्रेस की सरकार अल्पमत में आ गई। 26 जनवरी, 2016 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। 16 फ़रवरी, 2016 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राज्य से राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश के बाद राज्यपाल जे. पी. राजखोवा ने ईटानगर में राजभवन में आयोजित समारोह में उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। मुख्यमंत्री कलिखो पुल के साथ कांग्रेस के 19 बागी, भारतीय जनता पार्टी के 11 और दो निर्दलीय विधायक थे। कलिखो पुल के नेतृत्व में गठित सरकार को कांग्रेस ने अवैध ठहराया। इसके खिलाफ कांग्रेस उच्चतम न्यायालय पहुंची। कांग्रेस को हालांकि उच्चतम न्यायालय से उस समय कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद जुलाई में अदालत की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद नबाम तुकी को दोबारा मुख्यमंत्री पद मिल गया। उच्चतम न्यायालय ने प्रदेश में लगाए गए राष्ट्रपति शासन को अवैध करार दिया था। राज्य विधानसभा में कांग्रेस को अपना विश्वास मत हासिल करना था। भाजपा को एक ओर जहां कलिखो पुल और बागी विधायकों पर पूरा भरोसा था, वहीं आखिरी समय में कांग्रेस ने राजनैतिक दांव खेलते हुए नबाम तुकी को हटाकर पेमा खांडू को मुख्यमंत्री बना दिया। अधिकतर बागी विधायक चूंकि तुकी से असंतुष्ट थे, ऐसे में उन्हें हटाए जाने का फैसला कांग्रेस के पक्ष में गया और उसने सदन में बहुमत साबित कर दिया। इससे ना केवल भाजपा को, बल्कि कलिखो पुल को भी काफ़ी बड़ा धक्का पहुंचा।
मृत्यु
कलिखो पुल ने 9 अगस्त, 2016 को कथित तौर पर घर के पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली। वह मुख्यमंत्री आवास में ही रह रहे थे और यहीं उन्होंने फांसी लगाकर आत्महत्या कर अपना जीवन समाप्त कर लिया। कालिखो पुल कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल हुए थे और मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। बताया जाता है कि सत्ता जाने के बाद वह मानसिक यंत्रणा के दौर से गुजर रहे थे।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ एक पूर्व मुख्यमंत्री की मौत का रहस्य (हिंदी) abpnews.abplive.in। अभिगमन तिथि: 19 जनवरी, 2017।
संबंधित लेख