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मेयो कॉलेज, अजमेर
  • मेयो कॉलेज एक सार्वजनिक विद्यालय है, जो भारत के राजस्थान राज्य के प्रमुख नगर अजमेर में स्थित है। मेयो कॉलेज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारतीय संभ्रांत वर्ग विशेषतः राजपूताना कुलीन वंश को शिक्षा प्रदान करने हेतु की थी। मेयो कॉलेज के कारण अंग्रेज़ अधिकारियों को राजपूत राज्यों के भावी शासकों के साथ घुलमिल जाने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त कॉलेज में आयोजित विभिन्न समारोह के अवसर भी प्रदान किये। कॉलेज की स्थापना के समय और उसके कुछ समय बाद मेयो कॉलेज की काफ़ी प्रतिष्ठा थी, किन्तु धीरे-धीरे छात्रावासों का वातावरण दूषित होने के कारण कॉलेज की प्रतिष्ठा गिरने लगी।[1]

स्थापना

1870 ई. में अजमेर में एक विशेष दरबार आयोजित किया गया, जिसमें राजस्थान के प्रमुख राजा, महाराजाओं व सरदारों ने भाग लिया। इसमें लार्ड मेयो जो 1869 से 1872 तक भारत के राजप्रतिनिधि (वाइसराय) थे, ने अजमेर में एक विशिष्ठ कॉलेज की स्थापना की।[2] लार्ड मेयो ने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि अंग्रेज उनके हितैषी है, अत: उन्हें भी चाहिए कि वे ब्रिटिश साम्राज्य की अपनी योग्यतानुसार सेवा करें व अंग्रेजो के संरक्षण में ही सही दिशा में आगे बढ़े। राजपूत शासकों ने मेयो के कॉलेज खोलने के प्रस्ताव का स्वागत किया और उसके निर्माण के लिए यथा शक्ति आर्थिक सहयोग भी किया। अक्टूबर, 1875 ई. में मेयो कॉलेज की स्थापना हुई और इस कॉलेज में प्रवेश लेने वाला प्रथम छात्र अलवर 'नरेश मंगलसिंह' था। 7 नवम्बर, 1885 ई. को डफरिन ने मेयो कॉलेज के मुख्य भवन का उद्घाटन किया। इसकी इमारत का मुख्य भवन मेजर मेंट द्वारा भारतीय - अरबी शैली में डिजाइन किया गया था, जिसे जयपुर के राज्य अभियंता, सर सेमुअल स्विंटन जेकब द्वारा प्रसिद्ध किया गया था। सफ़ेद संगमरमर से बनी यह इमारत भारतीय-अरबी वास्तुकला का उत्कृष्ट उदहारण है। इस इमारत का निर्माण वर्ष 1877 से 1885 के बीच आठ वर्षों में हुआ था। महाविद्यालय का कुलचिन्ह कला विद्यालय, लाहौर के पूर्व प्रधानाचार्य लॉकवुड किपलिंग द्वारा डिजाइन किया गया है, जो प्रसिद्ध लेखक रूडयार्ड किपलिंग के पिताजी थे। इस कॉलेज के प्रांगण में जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, भरतपुर, बीकानेर, झालावाड़, अलवर एवं टोंक आदि राज्यों के शासकों ने अपनी निजी छात्रावास बनवाये।[1]

उद्देश्य

मेयो कॉलेज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य भारतीय संभ्रांत वर्ग विशेषतः राजपूताना कुलीन वंश को शिक्षा प्रदान करने हेतु की थी। ताकि रियासत के शासकों को ब्रिटिश मानकों के अनुसार शिक्षा प्रदान की जा सके जिससे राजपूत राज्य के भावी शासकों में ब्रिटिश शासकों के प्रति स्वामी भक्ति तथा आज्ञाकारिता की भावना को दृढ़ किया जा सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों को को विद्या, बुद्धि, तर्क शैली, रहन-सहन, खानपान तथा आचार-विचार आदि की दृष्टि से अंग्रेज़ बनाने का प्रयत्न किया गया। उनमें अंग्रेज़ी राज एवं मान्यताओं के प्रति अगाध श्रृद्धा तथा भक्ति की भावना भरी जानी लगी। उन्हें भारतीय संस्कृति से भिन्न वातावरण में पोषित किया जाने लगा। फिर भी इसका पाठ्यक्रम सामान्य स्कूलों के पाठ्यक्रम से अधिक भिन्न नहीं था। यहाँ शिक्षा का मुख्य उद्देश्य नौकरी दिलवाना था। इसके विरुद्ध शासकों में असंतोष फैला, क्योंकि वे ऐसी शिक्षा के पक्ष में नहीं थे। अत: 19वीं शताब्दी के अंत तक पाठ्यक्रम के विषय पर विवाद चलता रहा।

मेयो कॉलेज के कारण अंग्रेज़ अधिकारियों को राजपूत राज्यों के भावी शासकों के साथ घुलमिल जाने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त कॉलेज में आयोजित विभिन्न समारोह के अवसर भी प्रदान किया। कॉलेज की स्थापना के समय और उसके कुछ समय बाद मेयो कॉलेज की काफ़ी प्रतिष्ठा थी, किन्तु धीरे-धीरे छात्रावासों का वातावरण दूषित होने के कारण कॉलेज की प्रतिष्ठा गिरने लगी।[1]

  1. 1.0 1.1 1.2 तोन्गारिया, राहुल। राजस्थान में अंग्रेजी शिक्षा का विकास (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) ignca.nic.in। अभिगमन तिथि: 5 अगस्त, 2011।
  2. मेयो महाविद्यालय एवं संग्रहालय, अजमेर (हिन्दी) ignca.nic.in। अभिगमन तिथि: 27जनवरी, 2017।