दुष्ट सर्प

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दुष्ट सर्प पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा हैं।

कहानी

          एक जंगल में एक बहुत पुराना बरगद का पेड था। उस पेड पर घोंसला बनाकर एक कौआ-कव्वी का जोडा रहता था। उसी पेड के खोखले तने में कहीं से आकर एक दुष्ट सर्प रहना लगा। हर वर्ष मौसम आने पर कव्वी घोंसले में अंडे देती और दुष्ट सर्प मौक़ा पाकर उनके घोंसले में जाकर अंडे खा जाता। एक बार जब कौआ व कव्वी जल्दी भोजन पाकर शीघ्र ही लौट आए तो उन्होंने उस दुष्ट सर्प को अपने घोंसले में रखे अंडों पर झपटते देखा।
अंडे खाकर सर्प चला गया कौए ने कव्वी को ढाडस बंधाया 'प्रिये, हिम्मत रखो। अब हमें शत्रु का पता चल गया हैं। कुछ उपाय भी सोच लेंगे।'
कौए ने काफ़ी सोचा विचारा और पहले वाले घोंसले को छोड उससे काफ़ी ऊपर टहनी पर घोंसला बनाया और कव्वी से कहा 'यहां हमारे अंडे सुरक्षित रहेंगे। हमारा घोंसला पेड की चोटी के किनारे निकट हैं और ऊपर आसमान में चील मंडराती रहती हैं। चील सांप की बैरी हैं। दुष्ट सर्प यहां तक आने का साहस नहीं कर पाएगा।'
कौवे की बात मानकर कव्वी ने नए घोंसले में अंडे सुरक्षित रहे और उनमें से बच्चे भी निकल आए।
उधर सर्प उनका घोंसला ख़ाली देखकर यह समझा कि कि उसके डर से कौआ कव्वी शायद वहां से चले गए हैं पर दुष्ट सर्प टोह लेता रहता था। उसने देखा कि कौआ-कव्वी उसी पेड से उडते हैं और लौटते भी वहीं हैं। उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उन्होंने नया घोंसला उसी पेड पर ऊपर बना रखा हैं। एक दिन सर्प खोह से निकला और उसने कौओं का नया घोंसला खोज लिया।
घोंसले में कौआ दंपती के तीन नवजात शिशु थे। दुष्ट सर्प उन्हें एक-एक करके घपाघप निगल गया और अपने खोह में लौटकर डकारें लेने लगा।
कौआ व कव्वी लौटे तो घोंसला ख़ाली पाकर सन्न रह गए। घोंसले में हुई टूट-फूट व नन्हें कौओं के कोमल पंख बिखरे देखकर वह सारा माजरा समझ गए। कव्वी की छाती तो दु:ख से फटने लगी। कव्वी बिलख उठी 'तो क्या हर वर्ष मेरे बच्चे सांप का भोजन बनते रहेंगे?'
कौआ बोला 'नहीं! यह माना कि हमारे सामने विकट समस्या हैं पर यहां से भागना ही उसका हल नहीं हैं। विपत्ति के समय ही मित्र काम आते हैं। हमें लोमडी मित्र से सलाह लेनी चाहिए।'
दोनों तुरंत ही लोमडी के पास गए। लोमडी ने अपने मित्रों की दु:ख भरी कहानी सुनी। उसने कौआ तथा कव्वी के आंसू पोंछे। लोमडी ने काफ़ी सोचने के बाद कहा 'मित्रो! तुम्हें वह पेड छोडकर जाने की जरुरत नहीं हैं। मेरे दिमाग में एक तरकीब आ रही हैं, जिससे उस दुष्टसर्प से छुटकारा पाया जा सकता हैं।'
लोमडी ने अपने चतुर दिमाग में आई तरकीब बताई। लोमडी की तरकीब सुनकर कौआ-कव्वी खुशी से उछल पडें। उन्होंने लोमडी को धन्यवाद दिया और अपने घर लौट आए।
          अगले ही दिन योजना अमल में लानी थी। उसी वन में बहुत बडा सरोवर था। उसमें कमल और नरगिस के फूल खिले रहते थे। हर मंगलवार को उस प्रदेश की राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ वहां जल-क्रीडा करने आती थी। उनके साथ अंगरक्षक तथा सैनिक भी आते थे।
इस बार राजकुमारी आई और सरोवर में स्नान करने जल में उतरी तो योजना के अनुसार कौआ उडता हुआ वहां आया। उसने सरोवर तट पर राजकुमारी तथा उसकी सहेलियों द्वारा उतारकर रखे गए कपडों व आभूषणों पर नजर डाली। कपडे से सबसे ऊपर था राजकुमारी का प्रिय हीरे व मोतियों का विलक्षण हार।
कौए ने राजकुमारी तथा सहेलियों का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए ‘कांव-कांव’ का शोर मचाया। जब सबकी नजर उसकी ओर घूमी तो कौआ राजकुमारी का हार चोंच में दबाकर ऊपर उड गया। सभी सहेलियां चीखी 'देखो, देखो! वह राजकुमारी का हार उठाकर ले जा रहा हैं।'
सैनिकों ने ऊपर देखा तो सचमुच एक कौआ हार लेकर धीरे-धीरे उडता जा रहा था। सैनिक उसी दिशा में दौडने लगे। कौआ सैनिकों को अपने पीचे लगाकर धीरे-धीरे उडता हुआ उसी पेड की ओर ले आया। जब सैनिक कुच ही दूर रह गए तो कौए ने राजकुमारी का हार इस प्रकार गिराया कि वह सांप वाले खोह के भीतर जा गिरा।
सैनिक दौडकर खोह के पास पहुंचे। उनके सरदार ने खोह के भीतर झांका। उसने वहां हार और उसके पास में ही एक काले सर्प को कुडंली मारे देखा। वह चिल्लाया 'पीछे हटो! अंदर एक नाग हैं।' सरदार ने खोह के भीतर भाला मारा। सर्प घायल हुआ और फुफकारता हुआ बाहर निकला। जैसे ही वह बाहर आया, सैनिकों ने भालों से उसके टुकडे-टुकडे कर डाले।

सीख- बुद्धि का प्रयोग करके हर संकट का हल निकाला जा सकता है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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