गिरिधर शर्मा नवरत्न
गिरिधर शर्मा नवरत्न
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पूरा नाम | गिरिधर शर्मा |
अन्य नाम | 'नवरत्न' |
जन्म | 6 जून, 1881 |
जन्म भूमि | झालरापाटन, राजस्थान |
मृत्यु | 1 जुलाई, 1961 |
अभिभावक | पिता- ब्रजेश्वर शर्मा; माता- पन्ना देवी |
मुख्य रचनाएँ | आर्यशास्त्र, शुश्रूषा, आरोग्य दिग्दर्शन, राइ का पर्वत, ऋतु-विनोद आदि। |
भाषा | हिन्दी, हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत, प्राकृत, फ़ारसी |
प्रसिद्धि | लेखक |
विशेष योगदान | गिरिधर ने राष्ट्रभाषा हिन्दी का दीक्षा मंत्र दिया है, जिसके परिणाम स्वरूप अगले ही वर्ष लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी घोषित कर दी गयी। |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | झालरापाटन, राजस्थान, आयुर्वेद, दर्शन |
अन्य जानकारी | वर्ष 1912 ई. में गिरिधर शर्मा जी ने झालरापाटन में श्री राजपूताना हिन्दी साहित्य सभा की स्थापना की जिसके संरक्षक झालावाड़ नरेश श्री भवानी सिंह जी बने। |
अद्यतन | 05:18, 06 जून 2017 (IST) |
गिरिधर शर्मा नवरत्न (जन्म- 6 जून, 1881, झालरापाटन, राजस्थान; मृत्यु- 1 जुलाई, 1961) हिन्दी साहित्य में द्विवेदी युग के ऐसे स्वनामधन्य व्यक्तित्व थे जो न केवल एक साहित्यकार तथा राष्ट्रभक्त भी थे। गांधी जी से इनकी मुलाकात हुई और उन्हें राष्ट्रभाषा हिन्दी का दीक्षा मंत्र दिया जिसके परिणाम स्वरूप अगले ही वर्ष लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी घोषित कर दी गयी।
परिचय
गिरिधर शर्मा नवरत्न का जन्म 6 जून, 1881, रविवार को झालरापाटन, राजस्थान में हुआ था। इनके पिता ब्रजेश्वर शर्मा तथा माता पन्ना देवी थी।
शिक्षा
गिरिधर जी ने आरम्भिक में घर पर ही हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत, प्राकृत, फ़ारसी आदि भाषाओं की शिक्षा के बाद जयपुर से प्रश्न वर श्री कान्ह जी व्यास तथा परम वेदज्ञ द्रविड़ श्री वीरेश्वर जी शास्त्री से संस्कृत पंज्च काव्य तथा संस्कृत व्याकरण का अध्ययन किया। काशी में पंडित गंगाधर शास्त्री से संस्कृत साहित्य तथा दर्शन का विशिष्ट अध्ययन किया।
हिन्दी साहित्य सभा की स्थापना
सन 1912 ई. में गिरिधर शर्मा जी ने झालरापाटन में श्री राजपूताना हिन्दी साहित्य सभा की स्थापना की जिसके संरक्षक झालावाड़ नरेश श्री भवानी सिंह जी बने। इस सभा का उद्देश्य 'हिन्दी-भाषा' की हर तरह से उन्नति करना और हिन्दी भाषा में व्यापार वाणिज्य, कला कौशल, इतिहास विज्ञान वैद्यक, अर्थशास्त्र समाज, नीति राजनीति, पुरातत्व, साहित्य उपन्यास आदि विविध विषयों पर अच्छे ग्रंथ तैयार करना और सस्ते मूल्य पर बेचना था।'
गिरिधर शर्मा ने सन 1912 में ही भरतपुर में हिन्दी साहित्य समिति की स्थापना करके वहाँ के कार्यकर्ताओं को हिन्दी भाषा की श्री वृद्धि, प्रसार और साहित्य संवर्द्धन का कार्य सौंपा। सन 1935 में श्री भारतेन्दु समिति कोटा के अध्यक्ष बने। सन 1906 में राजपूताना से 'विद्या भास्कर' नामक मासिक पत्र निकाला। इन्दौर में सन 1914 में मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति की स्थापना कर चुकने के बाद बम्बई गए।
गांधी जी से भेंट
वहीं गांधी जी से गिरिधर शर्मा की मुलाकात हुई और उन्हें राष्ट्र-भाषा हिन्दी का दीक्षा मंत्र दिया जिसके परिणामस्वरूप अगले ही वर्ष लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी घोषित कर दी गयी।
रचनाएँ
गिरिधर जी की प्रकाशित रचनाएँ निम्नलिखित हैं- श्री भवानी सिंह कारक रत्नम्, 'अमरशक्ति सुधाकर श्री भवानी सिंह सद्वृत्त गुच्छ:','नवरत्न नीति:, 'गिरिधर सप्तशती','प्रेम पयोधि','योगी','अभेद रस:','माय वाक्सुधा सौरमण्डलम्','जापान विजय आदि।' गिरिधर जी ने 'मातृवन्दना' आपकी प्रमुख मौलिक कविता पुस्तक है। अनुवाद के क्षेत्र में इन्होंने पुष्कल कार्य किया है। गिरिधर जी की रचनाएँ निम्न है-
- आर्यशास्त्र
- व्यापार-शिक्षा
- शुश्रूषा
- कठिनाई में विद्याभ्यास
- आरोग्य दिग्दर्शन
- जया जयंत
- राइ का पर्वत
- सरस्वती यश
- सुकन्या
- साविश्री
- ऋतु-विनोद
- शुद्धाद्वैत-कुसुम-रहस्य
- चित्रांगदा
- भीष्म-प्रतिभा
- कविता-कुसुम
- कल्याण-मन्दिर
- बार-भावना
- रत्न करण्ड
- निशापहार
अंग्रेज़ी के 'हरमिट' काव्य के मूल एवं अनुवाद दोनों को गिरिधर ने संस्कृत में ही पद्यबद्ध किया है। गिरिधर ने सन 1928 ई. में संस्कृत काव्य 'शिशुपाल वध' के दो सर्गों का हिन्दी में पद्यानुवाद किया। 'मेरो सब लगे प्रभो देश की भलाई में' जैसी पक्तियों से सम्पन्न 'मातृ-वन्दना' की रचना राष्ट्रीयता एवं स्वदेश-प्रेम की प्रेरणा से हुई है। उस समय तक स्वदेश प्रेम विषयक प्रकाशित हिन्दी रचनाओं में वह तृतीय थी।
इस विषय पर गोपाल दास कृत 'भारत भजनावली'[1] एवं गुरुप्रसाद सिंह द्वारा रचित 'भारत संगीत'[2] दो पूर्ववर्ती रचनाएँ और प्राप्त हुई हैं। इनकी तुलना में उक्त रचना पुष्टतर और सुन्दरतर हैं। इसमें राष्ट्रीयता के शुद्ध भाव का प्रसार हुआ है। 'मातृ-वन्दना' का जो पावन स्वर बंगकाव्य में मुखरित हुआ था, हिन्दी-क्षेत्र भी उससे अछूता नहीं रहा। जिस समय अधिकांश कवि मध्यकालीन वातावरण में ही साँस ले रहे थे और काव्य धारा ह्रासोन्मुखी हो रही थी, स्वदेश-भाव का यह जागरण देश-प्रेम का शंखनाद ही माना जायेगा। आपने अतीत के प्रति निष्क्रिय मोह एवं प्रतिक्रियात्मक आसक्ति तथा राष्ट्रीयता में अंतर करते हुए जागरण का जो शंखनाद किया, उसे कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। अनुवाद कार्य विषय-वस्तु की विस्तृत भूमि से सम्बद्ध है। आयुर्वेद, दर्शन, व्यवहारशास्त्र, समाजशास्र नीति एवं आचरण सभी विषयों पर गिरिधर जी की लेखनी चली है तथा इन्होंने 'विद्या भास्कर' का सम्पादन भी किया है।
निधन
गिरिधर शर्मा नवरत्न का निधन 1 जुलाई, 1961 हुआ था।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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