भीषनजी
भीषनजी
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पूरा नाम | भीषनजी |
जन्म भूमि | काकोरी ग्राम, लखनऊ, उत्तर प्रदेश |
कर्म भूमि | भारत |
भाषा | भीषनजी की काव्य-भाषा हिन्दी थी। मुहावरेदार भाषा लिखने में वे कुशल थे। |
प्रसिद्धि | कवि |
नागरिकता | भारतीय |
समय काल | भीषनजी की रचनाएँ सिक्खों के आदि ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' में संग्रहीत हैं, अत: यह निश्चित है कि उनका समय अथवा उत्कर्ष काल सोलहवीं शताब्दी ईस्वी मानना चाहिए। |
अन्य जानकारी | इतिहासकार बदायूंनी के मतानुसार भीषनजी गृहस्थाश्रम में रहकर साधना में तत्पर रहते थे। साधना की इस तत्परता ने ही उन्हें विद्वानों की श्रेणी में ला खड़ा किया था। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
संत भीषनजी लखनऊ के पास काकोरी नामक ग्राम के निवासी थे। ये रैदास और कबीर की भाँति गृहस्थ आश्रम में रहकर भक्ति करते थे। ये बड़े ही दयालु और परोपकारी थे। दादू, नानक और मलूकदास की परंपरा में भीषनजी भी निर्गुण राम के भक्त थे। ये विद्वान् तथा धर्मशास्त्रों के ज्ञाता थे। इनकी भाषा मुहावरेदार है, पद नीति और ज्ञान विषयक हैं।[1]
प्रामाणिक उल्लेखों का अभाव
संत कवि भीषनजी की जीवनी के सम्बन्ध में बहुत कम प्रामाणिक उल्लेख प्राप्त है। भारतीय धर्म साधना के इतिहास में दो भीषन का उल्लेख मिलता है। इनमें से प्रथम वे हैं, जिनकी रचनाए ग्रंथ साहिब में संकलित हैं और द्वितीय सूफ़ी संत और विचारक हैं। लोगों ने इन दोनों के चरित्र, चरित और व्यक्तित्व को एक-दूसरे से ऐसा मिला दिया है कि उन्हें पृथक करना असम्भव हो गया है।[2]
जन्म स्थान
संत भीषनजी का जन्म एवं निवास स्थान लखनऊ, उत्तर प्रदेश के निकटस्थ काकोरी ग्राम था। प्रसिद्ध इतिहासकार बदायूंनी ने भी उन्हें लखनऊ सरकार के काकोरी नगर का निवासी माना है।[3] पं. परशुराम चतुर्वेदी का विचार है कि इन्हें वर्तमान उत्तर प्रदेश के ही किसी भाग का निवासी मानना उचित जान पड़ता है।[4] भीषनजी के काव्य के विषय और भाव-भूमि का रैदास, कमाल और धन्ना के काव्य-विषय से साम्य देखकर परशुराम चतुर्वेदी उक्त निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। परीक्षण करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि भीषन उत्तर प्रदेश के ही निवासी थे और इसीलिए इतिहासकार मेकालिफ एवं बदायूंनी के कथन सत्य प्रतीत होते हैं कि ये काकोरी के निवासी थे। संत भीषन का समय निश्चित रूप में ज्ञात नहीं है।
समय काल
भीषनजी की रचनाएँ सिक्खों के आदि ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' में संग्रहीत हैं, अत: यह निश्चित है कि उनका समय अथवा उत्कर्ष काल सोलहवीं शताब्दी ईस्वी मानना चाहिए।[2]
महान पण्डित
भीषनजी स्वत: बड़े विद्वान् तथा धर्म-शास्त्र के महान पण्डित थे। वे बड़े दयालु और लोकसेवक थे। भीषन साहब की न तो बाल्यावस्था का कोई विवरण मिलता है, न ही उनकी शिक्षा-दीक्षा का। बदायूंनी के मतानुसार वे गृहस्थाश्रम में रहकर साधना में तत्पर रहते थे। साधना की इस तत्परता ने ही उन्हें विद्वानों की श्रेणी में ला खड़ा किया था। उनकी कई संतानें थीं, जो ज्ञान, विद्या और विवेक से सम्पन्न थीं।
'राम' नाम की महिमा का गान
भीषन साहब के दो पद गुरु अर्जुन सिंह द्वारा सम्पादित 'गुरु ग्रंथ साहिब' में संग्रहीत हैं।[5] इन पदों में राम और राम नाम की महिमा का गान किया गया है। प्रथम पद में कवि ने कहा है कि, "वृद्धावस्था में जब शरीर शिथिल हो जाता है, नेत्रों से जल बहने लगता है और बाल दुग्धवत श्वेत हो जाते हैं, कण्ठ अवरुद्ध हो जाता है और शब्दों का उच्चारण करना भी कठिन हो जाता है, उस समय 'हे राम यदि तुम्हीं वैद्य बन कर पहुँचो तो भक्तों के कष्ट दूर हो सकते हैं।' जब मस्तक में पीड़ा उत्पन्न हो जाती है और शरीर दैहिक, दैविक तथा भौतिक तापों से दग्ध एवं संतप्त हो उठता है और जब कलेजे में व्यथा उत्पन्न हो जाती हैं तो हरिनाम के अतिरिक्त इन कष्टों से मुक्ति पाने के लिए कोई औषधि नहीं है। यह हरिनामरूपी अमृत जल सतगुरु के प्रसाद से ही प्राप्त होता है।" द्वितीय पद में कवि ने राम नाम की महत्ता और शक्तिमत्ता का वर्णन किया है।[2]
इन दोनों पदों के वर्ण्य-विषय से स्पष्ट है कि कबीर, दादू, नानक, मलूकदास आदि की भाँति उनके हृदय में भी राम और राम नाम के प्रति अगाध प्रेम था। इन पदों के रचयिता भीषनजी सूफ़ी नहीं थे। यह वर्ण्य-विषय से स्वयं प्रकट है। मेकालिफ के मत से साम्य रखते हुए पं. परशुराम चतुर्वेदी ने लिखा है कि मेकालिफ का कहना है कि जिस किसी ने भी आदि ग्रंथ में संग्रहीत पदों को लिखा होगा, वह एक धार्मिक पुरुष अवश्य रहा होगा और शेख़ फ़रीद सानी की ही भाँति उस समय की सुधार सम्बन्धी बातों से प्रभावित भी रहा होगा। ऐसा अनुमान कर लेना सम्भव है कि वह भीषन कबीर का ही अनुयायी रहा होगा।"
काव्य-भाषा
भीषनजी के दोनों पदों का अध्ययन करने से स्पष्ट हो जाता है कि वे काव्य की प्रतिभा से सम्पन्न समर्थ कवि थे। उनके वर्णन भावपूर्ण और अभिव्यंजना शैली प्रभावशाली है। उनकी काव्य-भाषा हिन्दी थी। मुहावरेदार भाषा लिखने में वे कुशल थे।
निधन
इतिहासकार बदायूंनी का मत है कि संत भीषनजी का स्वर्गवास हिजरी सन 921 (सन 1573 ई.) में हुआ।[2][6]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भीषनजी परिचय (हिन्दी) कविता कोश। अभिगमन तिथि: 10 मई, 2015।
- ↑ 2.0 2.1 2.2 2.3 हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 412 |
- ↑ 'दि सिक्ख रिलीजन', भाग: मेकालिस।
- ↑ 'उतरी भारत की संत परम्परा'
- ↑ श्री गुरु ग्रंथ साहिब, पृष्ठ 658
- ↑ सहायक ग्रंथ- उत्तरी भारत की संत परम्परा परशुराम चतुर्वेदी।
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