महाराणा प्रताप की अकबर द्वारा प्रशंसा
महाराणा प्रताप की अकबर द्वारा प्रशंसा
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पूरा नाम | महाराणा प्रताप |
जन्म | 9 मई, 1540 ई. |
जन्म भूमि | कुम्भलगढ़, राजस्थान |
मृत्यु तिथि | 29 जनवरी, 1597 ई. |
पिता/माता | पिता- महाराणा उदयसिंह, माता- रानी जीवत कँवर |
राज्य सीमा | मेवाड़ |
शासन काल | 1568-1597 ई. |
शा. अवधि | 29 वर्ष |
धार्मिक मान्यता | हिंदू धर्म |
युद्ध | हल्दीघाटी का युद्ध |
राजधानी | उदयपुर |
पूर्वाधिकारी | महाराणा उदयसिंह |
उत्तराधिकारी | राणा अमर सिंह |
राजघराना | राजपूताना |
वंश | सिसोदिया राजवंश |
संबंधित लेख | राजस्थान का इतिहास, राजपूत साम्राज्य, राजपूत काल, महाराणा उदयसिंह, सिसोदिया राजवंश, उदयपुर, मेवाड़, अकबर, मानसिंह। |
महाराणा प्रताप को अपनी पत्नी तथा बच्चों सहित जंगलों में कठोर जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है, यह समाचार मुग़ल बादशाह अकबर ने भी सुना। उसने पता लगाने के लिए अपना एक गुप्तचर भेजा।
अकबर द्वारा प्रशंसा
वह गुप्तचर किसी तरक़ीब से उस स्थान पर पहुँच गया, जहाँ राणा प्रताप और उनके सरदार एक घने जंगल के मध्य एक वृक्ष के नीचे घास पर बैठे भोजन कर रहे थे। खाने में जंगली फल, पत्तियाँ और जड़ें थीं। परन्तु सभी लोग उस खाने को उसी उत्साह के साथ खा रहे थे, जिस प्रकार कोई राजभवन में बने भोजन को प्रसन्नता और उमंग के साथ खाता हो। गुप्तचर ने किसी के चेहरे पर उदासी और चिन्ता नहीं देखी। उसने वापस आकर अकबर को पूरा वृत्तान्त सुनाया। सुनकर अकबर का हृदय भी पसीज गया और प्रताप के प्रति उसमें मानवीय भावना जागृत हुई। उसने अपने दरबार के अनेक सरदारों से प्रताप के तप, त्याग और बलिदान की प्रशंसा की। अकबर के विश्वासपात्र सरदार अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना ने भी अकबर के मुख से प्रताप की प्रशंसा सुनी थी। उसने अपनी भाषा में लिखा-
"इस संसार में सभी नाशवान हैं। राज्य और धन किसी भी समय नष्ट हो सकता है, परन्तु महान् व्यक्तियों की ख्याति कभी नष्ट नहीं हो सकती। पुत्तों ने धन और भूमि को छोड़ दिया, परन्तु उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया। हिन्द के राजाओं में वही एकमात्र ऐसा राजा है, जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है।"
विकट परिस्थितियाँ
राणा प्रताप के समक्ष कभी-कभी ऐसे अवसर आ उपस्थित होते थे, जब अपने प्राणों से भी प्यारे लोगों को भयानक आवाज़ से ग्रस्त देखकर वे भयभीत हो उठते थे। उनकी पत्नी किसी पहाड़ी या गुफ़ा में भी असुरक्षित थी और उनके उत्तराधिकारी, जिन्हें हर प्रकार की सुविधाओं का अधिकार था, भूख से बिलखते उनके पास आकर रोने लगते। मुग़ल सैनिक इस प्रकार उनके पीछे पड़ गए थे कि भोजन तैयार होने पर कभी-कभी खाने का अवसर भी नहीं मिल पाता था और सुरक्षा के लिए भोजन छोड़कर भागना पड़ता था। एक दिन तो पाँच बार भोजन पकाया गया और हर बार भोजन को छोड़कर भागना पड़ा। एक अवसर पर प्रताप की पत्नी और उनकी पुत्रवधु ने घास के बीजों को पीसकर कुछ रोटियाँ बनाईं। उनमें से आधी रोटियाँ बच्चों को दे दी गईं और बची हुई आधी रोटियाँ दूसरे दिन के लिए रख दी गईं। इसी समय प्रताप को अपनी लड़की की चिल्लाहट सुनाई दी। एक जंगली बिल्ली लड़की के हाथ से उसके हिस्से की रोटी को छीनकर भाग गई और भूख से व्याकुल लड़की के आँसू टपक आये।
यद्यपि इस प्रकार के कथानक असत्य हैं। प्रथम तो राणा प्रताप के कोई पुत्री ही नहीं थी, इसलिए उसका रोना अप्रासंगिक है। दूसरा, जिस पहाड़ी भाग में राणा घूमते-फिरते थे, वह भाग इतना उपजाऊ था कि उन्हें खाने-पीने में कठिनता का सामना करना पड़ा हो, यह समझ में नहीं आता। पिछले स्रोतों में भी इस कथा का कोई उल्लेख नहीं मिलता। ये तो कर्नल टॉड के मस्तिष्क की उपज मात्र है।
जीवन की दुरावस्था को देखकर राणा प्रताप का हृदय एक बार विचलित हो उठा। अधीर होकर उन्होंने ऐसे राज्याधिकार को धिक्कारा, जिसकी वज़ह से जीवन में ऐसे करुण दृश्य देखने पड़े और उसी अवस्था में अपनी कठिनाइयों को दूर करने के लिए उन्होंने एक पत्र के द्वारा अकबर से मिलने की इच्छा प्रकट की।
महाराणा प्रताप की अकबर द्वारा प्रशंसा |
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