प्रयोग:रिंकू3
डॉ. सत्यपाल
टी.पी इलिस के न्यायालय द्वारा सैंट्रल समरी कोर्ट में न्याय का पक्ष प्रस्तुत किया गया तथा उनके विरुद्ध 18 अपराध लगाकर उन्हें अपराधी घोषित किया गया। जो अपराध उन पर लगाए गए वे निम्नवत थे-
- 5 फरवरी 1919 को रौलेट बिल के विरुद्ध आक्रामक भाषण।
- आपके भाषण द्वारा 5 फरवरी 1919 को प्लेटफार्म टिकिट जनता में शासन के प्रति रोष उत्पन्न किया गया।
- आपके द्वारा 12 जनवरी 1919 को मि. वेनिट को पत्र लिखा गया जिसमें कहा गया कि शहर के अंदर जो-जो आंदोलन एवं असंतोष है उसके आप मुख्य गवाह हैं और इस तरह की गवाही आपने पहले कभी नहीं देखी, सुनी होगी।
- 11 फरवरी 1919 को जो दूसरी मीटिंग हुई उसमें आप स्वयं वक्ता थे जो अपने भाषण में सरकार के प्रति जहर उगल रहे थे।
- 17 फरवरी 1919 को ट्रेफिक मैंनेजर एन. डब्लु. रेलवे को धमकी भरा पत्र लिखा जिसमें आपने असंतोष एवं हड़ताल की बात कही। इस पत्र को 20 फरवरी 1919 को प्रकाशित किया गया।
- 22 फरवरी 1919 को मौहम्मडॅन एजुकेशन मीटिंग में शासन के प्रति अप्रिय भाषा का प्रयोग किया।
- ग्रेन सोप में 26 फरवरी 1919 को जो मीटिंग की उसमें विरोध की कोई बात नहीं कही गई लेकिन किचलू को शक्ति प्रदान करने का प्रयास किया गया।
- 28 फरवरी 1919 को रोलेट बिल के विरुद्ध भाषण किया जिससे जनता में सरकार के प्रति नाराजगी उतपन्न हुई।
- 28 मार्च 1919 को जो भाषण दिए वे बहुत ही गम्भीर थे। शासन को चेतावनी थी तथा 31 मार्च 1919 को शासन के समक्ष गम्भीर संकट उत्पन्न करने को कहा।
- 23 मार्च 1919 को म्युनिसिपल कमेटी की चेयरमैन के प्रति विरोध प्रकट किया।
- 29 मार्च 1919 को जो मीटिंग बुलाई गई वह आपके द्वारा प्रायोजित थी तथा आप ही उसके वक्ता थे। आपने अपने भाषण में जनता को शासन के विरुद्ध उकसारा।
- 30 मार्च 1919 को जो मीटिंग शासन के विरुद्ध बुलाई गई वह भी आप द्वारा प्रायोजित थी।
- 'प्रताप' अखबार में जो लेख आप द्वारा प्रस्तुत किया गया उसके आधार पर आपको राजद्रोह से सबंधित किया जाता है।
- अनेकों मीटिंग 31 मार्च 1919 से 10 अप्रॅल 1919 के बीच की जिनका उद्देश्य शासन के समक्ष कठिनाई उत्पन्न करना, यूरोपियन के बंगले में आग लगाना, यूरोपियन का कत्ल करना, ब्रिटिश सामान का परित्याग करना तथा झूठी अफवाह फैलाना आदि शामिल था। ये सभी मीटिंग सेफुद्दीन किचलू के घर पर की गई।
- एनी बैसेंट द्वारा समर्थित होम सूल के सम्बंध में सत्याग्रह करने हेतु सेफुद्दीन किचलू के घर मीटिंग में उपस्थित थे।
- 8 अप्रॅल 1919 को रामनवमी के दौरान मीटिंग करने की घोषणा की।
- 9 अप्रॅल 1919 को रामनवमी के जलूस में एकत्रित हे, मिठाई बाँटी तथा गुरु बाज़ार मे जाकर आगे के कार्यक्रम पर विचार विमर्श किया।
- 10 अप्रॅल 1919 को जब शहर से बाहर किए गए तब जनता को भड़काया तथा बदला लेने के लिए प्रेरित किया।
डॉ. सत्यपाल का निम्नलिखित धाराओं के अंतर्गत चालान किया गया। 121A-121, 121A, 336, 146,436, 326, 506, 426/120B 124A, 147 456, 302/100 506
टी. पी इलिस की अदालत ने केस की समरी बनाकर तैयार किया। समरी कोर्ट ने डॉ. सत्यपाल तथा डॉ. किचलू को 10 अप्रॅल 1919 को शासन के विरुद्ध युद्ध छेड़ाने के लिस ज़िम्मेदार ठहराता। अत: दोनों को 10 अप्रॅल 1919 को सुबह 10 बजे धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) भेज किया जिससे अमृतसर में अमन शांति रह सके। यह सूचना कि डॉ. सत्यपाल तथा डॉ. किचलू को अमृतसर से बाहर आज्ञात स्थान पर सरकार ने भेज दिया है आग की तरह पूरे शहर में फैल गयी। और थोड़े ही समय में लोगों का समूह इकट्ठा होकर डिप्टी कमिश्नर के बंगले की तरफ बढ़ने लगा। जनता की माँग थी कि दोनों नेताओं क रिहा करो।
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार रेलवे फुट ब्रिज पर आंदोलनकारियों को सिपाहियों द्वारा रोका गया और उनकी जाँच की गई। लेकिन आंदोलनकारियों ने इन सिपाहियों पर पत्थर से हमला करना शुरू कर दिया और उन्हें 100 गज पीछे धकेल दिया। उसी समय मिस्टर कूनर एडिसनल डिस्ट्रिक्ट मजेस्ट्रेट आन्दोलनकारियों के समक्ष अपनी पुलिस की टुकड़ी लेकर प्रकट हुआ। उसने आन्दोलनकारियों को रोकने के आदेश दिए लेकिन असफल रहा। तभी उसने गोली चलाने के आदेश पारित किए। गोली चलने पर आन्दोलनकारी आगे बढ़्ने से रुक गए। इसके बाद डिप्टी सुपरिंटेंडेंट मिस्टर प्लोमर अपनी पुलिस के दल-बल के साथ पहुचा। आन्दोलनकारियोंके दूसरे समूह ने रेलवे गुड्स रोड पर आक्रमण किया और स्टेशन सुपरिंटेंडेंट मि. बेनीट की हत्या कर दी। सारजेंट रालैंडस जो केंटोमेंट में इलैक्ट्रीसीयन था, उसकी बुरी तरह पिटाई की जो बाद में मर गया। उसके बाद आन्दोलनकारियों ने टेलीग्राफ ऑफिस पर आक्रमण कर दिया। आन्दोलनकारियोंका दूसरा समूह रेलवे रोड ब्रिज की ओर बढ़ रहा था तथा डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट पर गोली चलाने का दबाव बढ़ता जा रहा था। शहर में नेशनल बैंक को लूट लिया गया तथा आग लगा की गई। मिस-स्टेबार्ट तथा स्काट की हत्या कर दी गई। दूसरेबैंक पर भी हमला किया गया जहाँ थोम्पसन की हत्या कर की गई, चार्टर्ड बैंक पर भी हमला किया गया। रिलिजीयस बुक सोसाइटी बुक डिपो, टाउनहाल तथा भारतीय क्रिश्चीयन चर्च में आग लगा दी गई। 'नॉर्मल गर्ल्स' स्कूल तथा जनता अस्पताल पर आक्रमण किया गया। लेडी डॉक्टर रेडसन बड़ी मुश्किल से बच पाई। मिस शेर वुड को बुरे तरीके से पीटा गया जब तक कि वह मर नहीं गई।
सरकार ने निर्णय लिया कि यह शासन के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के बराबर है और यह सब डॉ. सत्यपाल के कारण 10 अप्रैल 1919 को हुआ अत: डॉ. सत्यपाल ही इस काण्ड के जिम्मेदार हैं।
डॉ. सत्यपाल तथा अन्य पर लगाए गए अपराध की विवेचना की गई। ऊपर लगए चार्ज 1, 2, 48, 9, 11, 12 जिसमें डॉ. सत्यपालको भड़कीले भाषण देने का आरोप लगाया गया। अगर उन सब पर ध्यान दिया जाए तो वे भाषण सरकार द्वारा जनता पर किए गए अन्याय के विरुद्ध थे। वे सब संवैधानिक थे। मि. हसन इमाम जो डॉ. सत्यपाल के भाषण को गैरसरकारी सदस्य होने के कारण इम्पिरीयल लेजिसलेटिव कैंसिल में तरफदारी कर रहे थे तथा रोलेट बिल पर प्रभावशाली तरीके से विरोध कर रहे थे तथा प्रत्यक्ष रूप से सरकार द्वारा प्रतिपादित रौलेट एक्ट की भर्त्सना थी। लेकिन वाइसराय महोदय ने उनके भाषण पर कोई आपत्ति नहीं की, न ही उनके भाषण क सैंसर किया और न ही मैम्बर द्वारा कथित बयान को को सदन की कार्रवाई से निकालने के आद्श दिए जिसका अर्थ था कि शासन को डॉ. सत्यपाल के भाषण से कोई आपत्ति नहीं थी। चार्ज 2, 3, 4, 5 में कहा गया कि डॉ. सत्यपालने जनता को 5 फरवरी 1919 को सरका के विरुद्ध भड़काने तथा जनता को गुमराह करने का कार्य किया। उन्होंने मि. बेनेट सुपरिंटेंडेंट रेलवे को धमकी भरा पत्र लिखा। जिसको 10 अप्रैल 1919 को जनता द्वारा व्यावहारिक रूप देकर मि. बेनेट की हात्या कर दी गई।
आंदोलनकारी डिप्टी कमिश्नर मिलिस इसविंग के बंगले की तरफ बढ़ रहे थे और वे रेलवे स्टेशन पार कर गए थे। पहले जुलूस शांत चल रहा था लेकिन बाद में उग्र रूप धारण कर गया। जैसे ही पुलिस ने गोली चलाना शुरु किया वैसे ही जुलूस के रास्ते में जो भी आता उसे ही जनता तोड़ती-फोड़ती हुई चली गईए। इन सबका डॉ. सत्यपाल के धमकी वाले पत्र में प्लेटफार्म टिकट की घटना से कोई औचित्य नहीं था अत: मि. बेनेट की हत्या जो 10 अप्रैल 1919 को जनता द्वारा आक्रोश में की गई उससे डॉ. सत्यपाल का कोई सम्बंध नहीं था।
चार्ज न. 6 जो कि 22 फरवरी 1919 को डॉ. सत्यपाल पर लगाया गया कि उन्होंने मौहम्म्डॅन एजूकेशनल कॉन्फ्रेंस में जो भाषण दिया वह आपत्तिजनक था यह मीटिंग कटरा गरभा सिंह में हुई जिसकी अध्यक्षता सैयद बुधशाह ने की। उस दिन डॉ. सत्यपाल ने हिंदू-मुस्लिम एकता पर अच्छा निबंध लिखेगा। अगर सी आई डी की डायरी तलव की जाए तो उससे पता चलेगा कि डॉ. सत्यपाल, डॉ. किचलू को रजनीति पर बोलने के लिए बार-बार मना कर रहे थे। इसका अर्थ यह हुआ कि डॉ. सत्यपाल ने शिक्षण संस्थान के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए ऐसा कुछ नहीं कहा जो शिक्षण संस्थान के सम्मान को या उसकी गरिमा को चोट पहुँचाता हो। 24 फरवरी 1919 को म्युनिसिपल कमिश्नर मियाँ मौहम्मद शरीफ के सम्मान में एक पार्टी का आयोजन किया गया जिसमें डॉ. सत्यपाल ने जो म्युनिसिपल कमैटी के सदस्य थे, हिंदू-मुस्लिम एकता पर प्रभावशाली भाषण दिया था।
चार्ज न. 7 अपराधी डॉ. सत्यपाल ने ग्रेन सोप पर 26 फरवरी 1919 को शासन के विरुद्ध भाषण किया, सरासर झूठ था। आश्चर्य इस बार का है कि उस भाषण को अपराध की संज्ञा में कैसे रखा गया? सी आई डी की डायरी तलब की जाए जिसमें साफ लिखा है कि डॉ. सत्यपाल ने इस मीटिंग की अध्यक्षता के लिए डिप्टी कमिश्नर से आग्रह किया कि भारतीय सुरक्षा अधिनियम के तहत जनता को सस्ता गल्ला खाने के लिए दिया जाए। इस मीटिंग में कुसी भी अवांछित व्यक्ति को नहीं बुलाया गया था।
चार्ज न. 8, 9, 11 में दर्शाय गया कि डॉ. सत्यपाल द्वारा 28 फरवरी 1919 तथा 28, 29 मार्च 1919 को रौलेट एक्ट के विरुद्ध जनता को भड़काऊ भाषण किया गया लेकिन अगर उनके भाषण का पूर्ण अर्थ ध्यान से पढ़ा जाए तो उन्होंने उसमें कहीं भी असंवैधानिक बार नहीं कही थी। डॉ. सत्यपाल ने उस दिन यह कहा कि रौलेट बिल पर विधान परिषद में केवल सरकारी सदस्यों ने भाग लिया जबकि गैर सरकारी सदस्यों की सहमति की आवश्यकता सरकार ने उचित नहीं समझी और यहाँ तक कि वायसराय ने भी गैस सरकारी सदस्यों के जवावदेही पर कुछ नहीं सोचा। यह एक दु:ख का विषय है इतना भर कहा था डॉ. सत्यपाल ने।
डॉ. सत्यपाल ने इस दिन अपने भाषण में बांधी की प्रशंसा की थी। और एक भी वाक्य अपने भाषण मे ऐसा प्रयोग नहीं किया था जो जनता को भड़काए। अपने भाषण के अंत: में उन्होंने हिंदू, मुस्लिम, इसाइयों से प्रार्थना की थी कि कांग्रेस के अधिवेशन को सफल बनाने में सभी मिलकर सहयोग दें। 29 मार्च 1919 के भाषण में उन्होंने यह भी कहा था कि हम क्रांति नहीं चाहते। इस प्रकार से कोई देश उन्नति नहीं कर सकता। उन्होंने अपने भाषण में भेड़िये और बकरी की कहानी भी सुनाई कि सरकार हमें नाहक परेशान कर रही है। गलती कहीं और है और निशाना हमें बनाया जा रहा है। अंत में डॉ. सत्यपाल ने अपने भाषण में 30 मार्च 1919 को व्रत रखने की सलाह दी थी जिससे अपनी आत्मा की शुद्धि की जा सके।
डॉ. सत्यपाल ने भाषण में कहीं भी जनता को गुमराह नहीं किया गया। डॉ. सत्यपाल का कहना था कि भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य का सम्मान करते हैं, उसकी रक्षा के लिए हम अपनी जान तक दे सकते हैं लेकिन अफसोस है कि इसके बदले हमें रौलैट एक्ट का इनाम दिया गया ज हमारे सिर पर एक बदनुमा दाग है।
चार्ज नम्बर 10 में कहा गया कि डॉ. सत्यपाल ने 22 मार्च 1919 को वंदेमातरम हाल में पं. कोतुमल की अध्यक्षता में कहा कि स्थानीय म्युनिसिपल कमेटी का अध्यक्ष भारतीय होना चाहिए न कि डिप्टी कमिश्नर जो कि अंग्रेजी होता है। इस सम्बंध में उन्होंने विस्तार से चर्चा की और बताया कि सरकारी कर्मचारी प्रेजीडेंट का चुनाव लड़ता है जिसमें सभी भारतीय स्थानीय कर्मचारी भाग लेते हैं। इसमें असंवैधानिक कहा गया है। मैं उस दिन एक स्पीकर था अध्यक्ष नहीं, अत: मेरे विरुद्ध लगाया गया चार्ज निर्रथक है।
चार्ज नं. 12 में कहा गया कि डॉ. सत्यपाल 30 मार्च 1919 को जो मीटिंग हुई उसका सन्योजक था। उनका कहना था कि मैंने इस मीटिंग में कोई भाग नहीं लिया क्योकि 29 मार्च 1919 को मुझे सरकार की ओर से आदेश मिल गया था कि आपको किसी पार्टी या मीटिंग में भाग नहीं लेना है। इस मीटिंग में जो एजेंडा पारित हुआ वह संवैधानिक था। यह मीटिंग जलियाँवाला में हुई थी। जिसमें चालीस हजार लोगों ने भाग लिया था। मीटिंग 4:30 बजे प्रारम्भ हुई थी। जनता 3.30 से पहुँचनी शुरु हो गई थी। उस दिन सभा के अध्यक्ष सेफुद्दीन किचलू थे। सर्वप्रथम पं. कितुमल नें भाषण दिया जिसमें उन्होंने लार्ड निर्थवुक की प्रशंसा की। पं. कोतुमल के बाद पं. दीनानाथ वअक्त अखबार के सम्पादक उसके बाद बिजली अखबार के सम्पादक ने भाषण दिए। स्वामी भावानंद जो आर्य समाजी थे तथा सेफुद्दीन किचलू ने कोई ऐसा भाषण नहीं दिया जो असंवैधानिक तथा आपत्तिजनक हो। उन्होंने केवल रौलेट एक्ट पर अपना विरोध प्रकट किया था इसलिए डॉ. सत्यपाल पर कोई अपराध कायम नहीं होता।
चार्ज नं. 13 में डॉ. सत्यपाल ने लाहौर में प्रताप अखबार में 1 अप्रैल 1919 को पत्र लिखा जबकि यह पत्र 25 मार्च को लिखा गया जो कि पाबंदी से पहले लिखा गया।
चार्ज 14, 15, 16 हंसराज के सबूत पर आधारित था जो कि सरकारी एजेंट था। कोई भी व्यक्ति हंसराज का वक्तव्य सुनने पर यह सोचने को बाध्य होगा कि वह सरकार का आदमी है। जो जान-बूझकर पुलिस ने बंद किया जिससे साबित हो सके कि यह पार्टी का आदमी है। वह स्वयं इच्छा उअखता था कि बंद किया जाए और फिर सरकार ने उसका इस्सतेमाल अप्रैल 1919 की हड़ताल में किया।
हंसराज सुपुत्र देवी दित्ता मल बेदी उम्र 23 वर्ष एक स्टेशनरी व दवाई कमीशन एजेंट था। उसने रेलवे टिकट कलक्टर पर नुयुक्ति प्राप्त की थी। कुछ दिन के बाद रेलवे की सर्विस छोड़ दी। उसके बाद हरनाम सिंह म्युनिसिपल कमिश्नर के साथ कलर्क का काम करने लगे। उसके बाद यह सर्विस भी छोड़ दी और उसके बाद सेवा सिंह बैंकर के साथ कलर्क का काम करने लगे। दो महीने बाद उसने यह नौकरी भी छोड़ दी और कमिश्नर एजुंट का काम करने लगे। उसके उपरोक्त कार्य से जानकारी होती कि उसने कभी भी एक जगह मन लगाकर काम नहीं किया। वह अविश्वनीय व्यक्ति था तथा अपना कार्य बदलता रहता था। वह अवसरवदी था और यह सम्भावना है कि वह सरकार के लिए एक एजुंट का कार्य करता है। डॉ. सत्यपाल सिंन इस आदमी को बिल्कुल नहीं जानते। डॉ. सत्यपाल ने पहली बार उसे 10 अप्रैल 1919 को डिप्टीकमिश्नर के बंगले पर देखा था। डॉ. सत्यपाल के अनुसार हंसरज निचले तबके का आदमी था और उससे हमारा कोई सम्बंध नहीं था।
अब तो, कमीशन ही तय करेगा इन 15 आदमियों के भाग्य को कि वह हंसराज को कितना विश्वसनीय समझता है। डॉ. सत्यपाल के अनुसार हंसराज अविश्वसनीय आदमी है।
चार्ज नं. 17 रामनवमी के दिन एक सन्युक्त हिंदू एवं मुस्लिम जुलूस निकाला गया जो दोनों के प्रेम एवं सौहार्द तथा एकता को प्रदर्शित करता है। लेकिन लेफ्ट जनरल माइकल ओ. डायर (पंजाब) जैसा कि बाम्बे क्रोनिकल अखबार नें दिनांक 10 अप्रैल 1919 को लिखा कि वह पंजाब का नादिरशाह है। बह पंजाब को नष्ट करना चाहता है। उसके शासन करने की प्रणाली को कोई भी भारतीय सहन नहीं कर पा रहा है। लेकिन माइकल ओ. डायर आज तक भी महसूस नहीं कर पाए कि आप जनता के समक्ष समस्या खड़ी करने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर पाए कि हैं। वह समझता है कि कानून की व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए उसके द्वारा सुझाए गए रास्ते सही हैं।
डॉ. मौहम्म्द बशीर ने जुलूस में घोड़े की पीठ पर बैठकर हिस्सा लिया। वे जुलूस के साथ-साथ चल रहे थे। जुलूस में महात्मा गाँधी की जय के साथ-साथ भगवान राजा की रक्षा करने के बारे में नारे लग रहे थे। जबकि डिप्टी कमिश्नर मि. इरविंग काफी परेशान नज़र आ रहे थे। वे मुसलमानों के अंतिम बैच को देखकर बहुत व्यथिय हुए क्योंकि बे तुर्कीस टोपी लगाए हुए थे। उन्होंने उन्हें तुर्कीस आर्मी की संज्ञा दी। मि. इरविंग अपने कमरे से कभी बाहर व कभी अंदर आ रहा था। डिप्टी कमिश्नर हिंदू-मुस्लिम की एकता को देखकर अपनी हार मान रहा था क्योंकि उनका मानना था कि फूट डालो और राज्य करो। डिप्टी कमिश्नर मि. इरविंग लेफ्ट. गवर्नर माइकल ओ. डायर को भली-भाँति जानते थे कि वह भी फूट डालो राज्य करो की नीति में विश्वास रखते हैं। इसलिए डिप्टी कमिश्नर ने डॉ. सत्यपाल एवं डॉ. किचलू को अमृतसर से दूर धर्मशाला भेज दिया। जो भी भाषण साबित नहीं होती भी। सभी प्रांतों में भारत के एक जैसी स्थिति थी लेकिन दुर्भाग्यवश पंजाब को डिप्टी कमिश्नर कुछ अलग तरीके के मिले थे जो अपने आपको साम्राज्य के प्रति अघिक वफादार मानते थे। इन दोनों अधिकारियों को आंदोलन नाम से चिढ़ थी चाहे आंदोलन कितना भी शांतिपूर्ण क्यों न हो। महात्मा गाँधी ने स्पष्ट सूप से कहा था कि क्या माइकल ओ. डायर की भाष उत्तेजक एवं क्रोध दिलाने वाली नहीं थी, क्या नेराजनेताओं से घृणा नहीं रखते थे, क्या वे दूसरों को अपमानित करने में आनंद नहीं लेते थे। क्या उन्होंने डॉ. सत्यपाल एवं डॉ. किचलू को गिरफ्तार नहीं किया। इतिहास में बाद के माह की कहाँई अलग लिखी जाएगी।'
चार्ज नं. 17 के सम्बंध में हंसराज का कोई भी सबूर ऐसा नहीं था जिसने इस जलूस में भाग लिया हो।
चार्ज नं. 18 डॉ. सत्यपालको अमृतसर से बाहर भेजने से पहले बदनाम किया गया कि उसने जनता से कहा कि वे गड़बड़ करे तथा अंग्रेज़ों से बदला ले। यह पूरी कहानीबनाई हुई थी। कोई भी यह नहीं जानता था कि डॉ. सत्यपाल व डॉ. किचलू को शहर से बाहर निकाल किया जाएगा। यहाँ तक कि वे स्वयं भी इस बात से अनभिज्ञ थे। यदि हम हंसराज की बात पर यकीन भी करें तो उसके अनुसार डॉ. सत्यपाल व डॉ. किचलू को शहर से बाहर निकालने का आदेश 9.40 बजे सुबह डिप्टी कमिशंर के कार्यालय से हुआ और 10 बजे बिना समय गवाएँ वह वहाँ पहुँच गया। 15 मिनट का समय बहुत ही कम है क्योंकि डिप्टी कमिशंर का कार्यालय सिविल लाइन में काफी दूर था। इसके बावजूद डॉ. सत्यपाल ने किसी से कोई बात नहीं की। उन्हें सीधा धर्मशाल भेज दिया गया जबकि हंसराज का कहना था कि डॉ. सत्यपालने अपने पिता मनीराम तथा पत्नी गुरदेवी को पत्र लिखे कि वे अंग्रेज़ों से बदला लें। लेकिन इसका क्या सबूत है कि वह पत्र डॉ. सत्यपाल द्वारा लिखे गए। हंसराज का कहना कि डिप्टी कमिश्नर के चपरासी ने मुझी दफ्तर के बाहर कुछ समय के लिए प्रतीक्षा करने को कहा। उसके बाद डिप्टी कमिश्नर ने मुझे पत्र देकर कहा कि मैं पत्र डॉ. किचलू की पत्नी को देकर आएँ यह पत्र डॉ. किचलू ने लिखा है तथा दो पत्र जो डॉ. सत्यपाल ने लिखे थे वे उनके पिता-पत्नी दोनों को देने के लिए मुझे (हंसराज) भेजा गया। प्रत्येक को यह प्रश्न पूछने का अधिकार है कि डिप्टी कमिशंर ने क्यों नहीं? ये पत्र अपने दफ्तर के चपरासी द्वारा भेजे? क्यों हंसराज का इस्तेमाल किया गया। डॉ. सत्यपाल का कहना था कि वह उनको नहीं जानता था।
9 अप्रैल 1919 की शाम को डिप्टी कमिश्नर. इरविंग ने अमृतसर में एक मीटिंग बुलाई। दूसरे व्यक्तियों को छोड़ इस मीटिंग में केप्ट. मैसी जो अमृतसर में मिलट्री स्टेशन के कमांडिंग अफसर थे, भी उपस्थित थे। सिप्टी कमिश्नर ने केप्ट. मैसी को वह आदेश सैंपे जिसमें डॉ. सत्यपाल व डॉ. किचलू को गिरफ्तार कर अमृतसर से बाहर भेजना था और यह भी कहा गया कि इस आदेश को गुप्त रखा जाए। केप्ट. मैसी को सचेत किया गया कि वह पुलिस व सेना की अच्छी व्यवस्था करे क्योंकि अपने नेता के पकड़े जाने पर जनता में आक्रोश स्वाभाविक है। 10 अप्रैल 1919 को सुबह 10 बजे से पहले सभी व्यवस्था पूर्ण कर ली गई थी। यह पता करने के बाद कि केप्टम मैसी अपनी व्यवस्था से संतुष्ट है तभी डिप्टी कमिश्नर इरविंग ने डॉ. सत्यपाल व डॉ. किचलू को बंगले पर बुलाया गया। डिप्टी कमिश्नर द्वारा किए गए मस्तिष्क के प्रयोग को प्रत्येक व्यक्ति भली-भाँति समझ सकता है कि यह एक प्रकार का षड्यंत्र था।
सस्ता साहित्य मण्डल सन 1860 के सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के अंतर्गत एक रजिस्टर्ड संस्था है। इसकी उत्तम साहित्य को सस्ते मूल्य में प्रकाशित करने के उद्देश्य से महात्मा गांधी के आशीर्वाद तथा श्री जमनालाल बजाज और घनश्याम दास बिड़ला की प्रेरणा एवं सहयोग से हुई थी।
अपनी स्थापना से लेकर अब तक के वर्षों में 'मण्डल' ने विविध विषयों की लगभग ढाई हज़ार पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें से आज अधिकतर प्राप्य हैं।
इसके सम्मानित लेखकों में युगपुरुष महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आचार्य विनोबा भावे, सर्वश्री चक्रवर्ती राजगोपालाचर्य, काकासाहब कालेलकर, गणेश वसुदेव मावलंकर, किशोरलाल घ. मशरुवाला अग्रवाल, इंद्र विद्यावाचस्पति, रवींद्रनाथ टैगोर, प्रेमचंद्र, मनोज बसु, रामवृक्ष बेनीपुरी, अज्ञेय, विष्णु प्रभाकर, इंद्रचंद्र शास्त्री, ना. दु. व्यास, श्रीमन्नारायण, रस्किन बॉण्ड, गिरिराज किशोर, भगवान सिंह, राधावल्लभ त्रिपाठी, पद्मा सचदेव, राजी सेठ, रमेश चन्द्र शाह, डॉ. भरत सिंह उपाध्याय, हेरियट बीचर स्टो, क्रोपाटकिन आदि विदेशी लेखक हैं।
मण्डल के प्रकाशनों की विशेषता यह है कि उन्हें परिवार का कोई भी सदस्य नि:संकोच पढ़ सकता है। वे जहाँ सुरुचिपूर्ण तथा सुपाठ्य हैं, वहीं ज्ञानवर्द्धक और प्रेरणादायक भी हैं।
आत्म-कथा, जीवनी, यात्रा, उपन्यास, संस्मरण आदि साहित्य बढ़ा लोकप्रिय हुआ है, साथ ही विभिन्न मालाओं की पुस्तकें पाने के लिए तो पाठक सदा लालायित रहते हैं।
मण्डल की पुस्तकें सामग्री की दृष्टि से उपयोगी, छपाई की दृष्टि से उत्तम, आवरण की दृष्टि से सुरुचिपूर्ण तथा मूल्य की दृष्टि से अपेक्षाकृत सस्ती हैं।
उनसे अपने घर में एक छोटा-सा पुस्तकालय बनाया जा सकता है।
सस्ता साहित्य मण्डल के प्रकशनों का सूची-पत्र आपके हाथ में है। इसे देखकर आपको पता चलेगा कि मण्डल का उद्देश्य क्या है और उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने किन-किन विषयों की, कैसी-कैसी और किन-किन लेखकों की पुस्तकें निकाली हैं। इतना हम कह सकते हैं कि मण्डल द्वारा प्रकाशित स्भी पुस्तकें ऐसी हैं, जिन्हें जो भी पढ़ेगा, वह लाभांवित हुए बिना नहीं रहेगा। हम यह भी कहना चहते हैं कि अपनी पुस्तकों की गुणवत्ता तथा प्रामाणिकता के कारण इस संस्था ने राष्ट्रीय जीवन में अपना विशेष स्थान बनाया है।