नैन सिंह रावत को प्राप्त पुरस्कार व सम्मान
नैन सिंह रावत को प्राप्त पुरस्कार व सम्मान
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जन्म | 21 अक्टूबर, 1830 |
जन्म भूमि | कुमाऊँ, |
मृत्यु | 1 फ़रवरी, 1882 |
मृत्यु स्थान | मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | अन्वेषण |
मुख्य रचनाएँ | 'अक्षांश दर्पण' |
पुरस्कार-उपाधि | 'कम्पेनियन आफ द इंडियन एम्पायर' का खिताब |
प्रसिद्धि | भारतीय अन्वेषक |
नागरिकता | भारतीय |
विशेष | नैन सिंह रावत ने ही सबसे पहले दुनिया को बताया कि ल्हासा की समुद्र तल से ऊंचाई कितनी है, उसके अक्षांश और देशांतर क्या हैं। यही नहीं उन्होंने दुनिया को यह भी बताया कि स्वांग पो और ब्रह्मपुत्र एक ही नदी है। |
अन्य जानकारी | तिब्बत का सर्वेक्षण करने वाले नैन सिंह रावत पहले व्यक्ति थे। ब्रिटेन के लिए हिमालय के क्षेत्रों का अन्वेषण करने वाले वह शुरुआती भारतीयों में से एक थे। |
नैन सिंह रावत हिमालयी इलाकों की खोज करने वाले पहले भारतीय थे। वे 19वीं शताब्दी के उन पण्डितों में से थे, जिन्होंने अंग्रेज़ों के लिये हिमालय के क्षेत्रों की खोजबीन की। नैन सिंह रावत कुमाऊँ घाटी के रहने वाले थे। उन्होंने नेपाल से होते हुए तिब्बत तक के व्यापारिक मार्ग का मानचित्रण किया। उन्होंने ही सबसे पहले ल्हासा की स्थिति तथा ऊँचाई ज्ञात की और तिब्बत से बहने वाली मुख्य नदी त्सांगपो के बहुत बड़े भाग का मानचित्रण भी किया। नैन सिंह रावत को एक एक्सप्लोरर के रूप में ही याद नहीं किया जाता, बल्कि हिंदी में आधुनिक विज्ञान में "अक्षांश दर्पण" नाम की एक किताब लिखने वाले वह पहले भारतीय थे। यह पुस्तक शोध कार्य करने वाली पीढ़ियों के लिए एक ग्रंथ के समान है।
पुरस्कार व सम्मान
नैन सिंह रावत को एक एक्सप्लोरर के रूप में ही याद नहीं किया जाता, बल्कि हिंदी में आधुनिक विज्ञान में "अक्षांश दर्पण" नाम की एक किताब लिखने वाले वह पहले भारतीय थे। यह पुस्तक सर्वेयरों की आने वाली पीढ़ियों के लिये भी एक ग्रंथ के समान है। ब्रिटिश राज में नैन सिंह रावत के कामों को काफी सराहा गया। ब्रितानी सरकार ने 1977 में बरेली के पास तीन गावों की जागीरदारी उन्हें पुरस्कार स्वरूप प्रदान की। इसके अलावा उनके कामों को देखते हुए 'कम्पेनियन आफ द इंडियन एम्पायर' का खिताब दिया गया। इसके अलावा भी अनेक संस्थाओं ने उनके काम को सराहा। एशिया का मानचित्र तैयार करने में उनका योगदान सर्वोपरि है।
पंडित नैन सिंह रावत को उनके इस अद्भुत कार्यों के लिये देश और विदेश में कई पुरस्कार पदक भी मिले। 'रायल ज्योग्राफिकल सोसायटी' ने उन्हें स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया था। उन्हें स्वर्ण पदक प्रदान करते हुए कर्नल युले ने कहा था कि- "किसी भी अन्य जीवित व्यक्ति की तुलना में एशिया के मानचित्र तैयार करने में उनका योगदान सर्वोपरि है।" पेरिस के भूगोलवेत्ताओं की सोसायटी ने उन्हें स्वर्णजड़ित घड़ी प्रदान की। उन्हें रूहेलखंड में एक गांव के जागीर के रूप में और साथ में 1000 रुपये दिये गये थे। उनकी यात्राओं पर कई किताबें प्रकाशित हुई हैं। इनमें डेरेक वालेर की ‘द पंडित्स’ तथा शेखर पाठक और उमा भट्ट की ‘एशिया की पीठ पर’ महत्वपूर्ण हैं। भारतीय डाक विभाग ने उनकी उपलब्धि के 139 साल बाद 27 जून, 2004 को उन पर डाक टिकट निकाला था।
गूगल डूडल
गूगल ने 19वीं सदी के भारतीय खोजी नैन सिंह रावत की उपलब्धियों और उनके 187वें जन्मदिन का जश्न 21 अक्टूबर, 2017 को डूडल के साथ मनाया। गूगल का कहना था कि- "नैन सिंह रावत ने एक सटीक माप गति को बनाए रखा। उन्होंने 2000 चरणों में एक मील को पूरा किया और एक माला का उपयोग करके उन चरणों को मापा। उन्होंने अपनी प्रार्थना चक्र और कौड़ी के खोल में एक कंपास छिपाया और यहां तक की लोगों को एक भिक्षु के रूप में भ्रम में भी डाले रखा।"
21 अक्टूबर, 2017 को गूगल ने डूडल में नैन सिंह रावत को चित्रित किया। डूडल को हरि और दीप्ति पैनिकर ने डिजाइन किया था। सुनहरे रंग के डूडल में नैन सिंह रावत खड़े होकर ऊंचे पर्वतों की दूसरी ओर सूर्य को देख रहे हैं। उनके पास एक ट्राइपोड स्टैंड भी नजर आ रहा है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिमालयी इलाकों की खोज करने वाले पहले भारतीय थे नैन सिंह रावत, जानें 5 खास बातें (हिंदी) zeenews.india.com। अभिगमन तिथि: 24 मई, 2017।