श्रीमद्भागवत महापुराण द्वादश स्कन्ध अध्याय 2 श्लोक 1-11

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:19, 29 अक्टूबर 2017 का अवतरण (Text replacement - "स्वरुप" to "स्वरूप")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

द्वादश स्कन्ध: द्वितीयोऽध्यायः (2)

श्रीमद्भागवत महापुराण: द्वादश स्कन्ध: द्वितीयोऽध्यायः श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद


श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! समय बड़ा बलवान् है; ज्यों-ज्यों घोर कलियुग आता जायगा, त्यों-त्यों उत्तरोत्तर धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मरणशक्ति का लोप होता जायगा । कलियुग में जिसके पास धन होगा, उसी को लोग कुलीन, सदाचारी और सद्गुणी मानेंगे। जिसके हाथ में शक्ति होगी वही धर्म और न्याय की व्यवस्था अपने अनुकूल करा सकेगा । विवाह-सम्बन्ध के लिये कुल-शील-योग्यता आदि की परख-निरख नहीं रहगी, युवक-युवती की पारम्परिक रुचि से ही सम्बन्ध हो जायगा। व्यवहार की निपुणता सच्चाई और ईमानदारी में नहीं रहेगी; जो जितना छल-कपट कर सकेगा, वह उतना ही व्यवहारकुशल माना जायगा। स्त्री और पुरुष की श्रेष्ठता का आधार उनका शील-संयम न होकर केवल रतिकौशल ही रहेगा। ब्राम्हण की पहचान उसके गुण-स्वभाव से नहीं यज्ञोपवीत से हुआ करेगी । वस्त्र, दण्ड-कमण्डलु आदि से ही ब्रम्हचारी, संन्यासी आदि आश्रमियों की पहचान होगी और एक-दूसरे का चिन्ह स्वीकार कर लेना ही एक से दूसरे आश्रम में प्रवेश का स्वरूप होगा। जो घूस देने या धन खर्च करने में असमर्थ होगा, उसे अदालतों में ठीक-ठीक न्याय न मिल सकेगा। जो बोलचाल में जितना चालक होगा, उसे उतना ही बड़ा पण्डित माना जायगा । असाधुता की—दोषी होने की एक ही पहचान रहेगी—गरीब होना। जो जितना अधिक दम्भ-पाखण्ड कर सकेगा, उसे उतना ही बड़ा साधु समझा जायगा। विवाह के लिये एक-दूसरे की स्वीकृति ही पर्याप्त होगी, शास्त्रीय विधि-विधान की—संस्कार आदि की कोई आवश्यकता न समझी जायगी। बाल आदि सँवारकर कपड़े-लत्ते से लैस हो जाना ही स्नान समझा जायगा । लोग दूर के तालाब को तीर्थ मानेंगे और निकल के तीर्थ गंगा-गोमती, माता-पिता आदि की अपेक्षा करेंगे। सिर परर बड़े-बड़े बाल—काकुल रखना ही शारीरिक सौन्दर्य का चिन्ह समझा जायगा और जीवन का सबसे बड़ा पुरुषार्थ होगा—अपना पेट भर लेना। जो जितनी ढिठाई से बात कर सकेगा, उसे उतना ही सच्चा समझा जायगा । योग्यता चतुराई का सबसे बड़ा लक्षण यह होगा कि मनुष्य अपने कुटुम्ब का पालन कर ले। धर्म का सेवन यश के लिये किया जायगा। इस प्रकार जब सारी पृथ्वी पर दुष्टों का बोलबाला हो जायगा, तब राजा होने का कोई नियम न रहेगा; ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्रों में जो बाली होगा, वही राजा बन बैठेगा। उस समय के नीच राजा अत्यन्त निर्दय एवं क्रूर होंगे; लोभी तो इतने होंगे कि उसमें और लुटेरों में कोई अन्तर न किया जा सकेगा। वे प्रजा की पूँजी एवं पत्नियों तक को छीन लेंगे। उनसे डरकर प्रजा पहाड़ों और जंगलों में भाग जायगी। उस समय प्रजा तरह-तरह के शाक, कन्द-मूल, मांस, मधु, फल-फूल और बीज-गुठली आदि खा-खाकर अपना पेट भरेगी । कभी वर्षा न होगी—सूखा पड़ जायगा; तो कभी कर-पर-कर लगाये जायँगे। कभी कड़ाके की सर्दी पड़ेगी तो कभी पाला पड़ेगा, कभी आँधी चलेगी, कभी गरमी पड़ेगी तो कभी बाढ़ आ जायगी। इन उत्पातों से तथा आपस के संघर्ष से प्रजा अत्यन्त पीडित होगी, नष्ट हो जायगी । लोग भूख-प्यास तथा नाना प्रकार की चिन्ताओं से दुःखी रहेंगे। रोगों से तो उन्हें छुटकारा ही न मिलेगा। कलियुग में मनुष्यों की परमायु केवल बीस या तीस वर्ष की होगी ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-