जार्ज बर्नार्ड शॉ
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
जार्ज बर्नार्ड शॉ (अंग्रेज़ी:George Bernard Shaw) नोबेल पुरस्कार विजेता, महान नाटककार व कुशल राजनीतिज्ञ मानवतावादी व्यक्तित्व था। जार्ज बर्नार्ड शॉ का जन्म डबलिन में 26 जुलाई 1856 को शनिवार को हुआ था।
संक्षिप्त परिचय
- जार्ज बर्नार्ड शॉ अपने माता पिता की तीन संतानों में ये अकेले पुत्र थे। इनके पिता जार्ज कारर शॉ को शराब की बुरी लत थी किन्तु इस बात का इनकी माँ ने इन पर असर नहीं होने दिया और इनके शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान दिया।
- इनकी शुरुआती शिक्षा मिस कैरोलिन हिल नामक महिला से प्राप्त हुई और इनकी प्रारम्भिक शिक्षा के बाद इनरी रुचि शाहित्य के क्षेत्र में बढती गई और इसीलिये इन्हे इंग्लैंड आना पड़ा जहाँ आकर इन्होंने अपनी साहित्यिक रुचि को निखारा।
- इंग्लैंड के प्रसिद्ध साहित्यकार-नाटककार जार्ज बर्नार्ड शॉ को प्रारम्भ में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपनी चिर-परिचित शैली में कहा है– “जीविका के लिए साहित्य को अपनाने का मुख्य कारण यह था कि लेखक को पाठक देखते नहीं हैं इसलिए उसे अच्छी पोशाक की ज़रूरत नहीं होती। व्यापारी, डाक्टर, वकील, या कलाकार बनने के लिए मुझे साफ़ कपड़े पहनने पड़ते और अपने घुटने और कोहनियों से काम लेना छोड़ना पड़ता। साहित्य ही एक ऐसा सभ्य पेशा है जिसकी अपनी कोई पोशाक नहीं है, इसीलिए मैंने इस पेशे को चुना है।” फटे जूते, छेद वाला पैजामा, घिस-घिस कर काले से हारा-भूरा हो गया ओवरकोट, बेतरतीब तराशा गया कॉलर, और बेडौल हो चुका पुराना टॉप – यही उनकी पोशाक थी।
- उनके विचार कुछ इस तरह के थे कि, ‘हर पल अपने विचारों पर नजर रखना अर्थात यह ज्ञात होना कि मन क्या सोच रहा है, ध्यान की पहली सीढ़ी है। ध्यान से जीवन में गहराई आती है। जीवन का ध्येय है सत्य की खोज ! लेकिन सत्य क्या है ? उसकी खोज क्यों करनी है ? यह जगत क्या है ? क्यों है ? इस तरह के प्रश्नों के हल ढूँढने के बजाय क्या उन्हें इस जग में रहकर जीवन को और सुंदर बनाने का ही प्रयत्न नहीं करना चाहिए, जीवन में सुन्दरता तभी आ सकती है जब मन प्रेम से ओत-प्रोत हो, कोई दुर्भावना न हो, कहीं अन्तर्विरोध न हो। जैसी सोच हो वही कर्मों में झलके और वही वाणी में, लोग किसी भी प्राणी या वस्तु के प्रति भी हिंसक न हों और यह सब स्वतः स्फूर्ति हो न कि ऊपर से ओढ़ा गया, जब फूल खिलता है तो उसके पास जाकर पंखुड़ियों को खोलना नहीं होता, नदी पर्वतों से उतरती है तो अपना मार्ग स्वयं ढूँढ ही लेती है। ऐसे ही उनके मनों में शुभ संकल्प उठें अपने आप, जीवन के कर्त्तव्यों को नियत करें और उन्हें पूर्ण करें’।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जार्ज बर्नार्ड शा जीवनी (हिंदी) जीवनी डॉट ऑर्ग। अभिगमन तिथि: 2 नवंबर, 2017।