हम्मीरहठ

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हम्मीरहठ चंद्रशेखर वाजपेयी की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रचना है, जिस पर कवि की कीर्ति अवलंबित है। इसमें रणथंभौर के राजा हम्मीर और सुल्तान आलउद्दीन ख़िलजी के युद्ध का वर्णन बड़ी ही ओजपूर्ण शैली में किया गया है।

  • इस प्रसिद्ध रचना का प्रधान रस वीर है। वाराणसी के 'लहरी बुक डिपो' से यह प्रकाशित भी हो चुका है।
  • यद्यपि श्रृंगार की कविता करने में भी चंद्रशेखर बहुत ही प्रवीण थे, किन्तु इनकी कीर्ति को चिरकाल तक स्थिर रखने के लिए 'हम्मीरहठ' ही पर्याप्त है।
  • वीर रस के वर्णन में चंद्रशेखर वाजपेयी ने बहुत ही सुंदर साहित्यिक विवेक का परिचय दिया है। सूदन आदि के समान शब्दों की तड़ातड़ और भड़ाभड़ के फेर में न पड़कर उग्रोत्साह व्यंजक उक्तियों का ही अधिक सहारा इस कवि ने लिया है, जो वीर रस की जान है।
  • 'हम्मीरहठ' में वर्णनों के अनावश्यक विस्तार को, जिसमें वस्तुओं की बड़ी लंबी चौड़ी सूची भरी जाती है, स्थान नहीं दिया गया है। सारांश यह है कि वीर रस वर्णन की श्रेष्ठ प्रणाली का अनुसरण चंद्रशेखर वाजपेयी ने किया है।


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