गोरा-बादल

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गोरा और बादल चित्तौड़गढ़ मेवाड़ के महान योद्धाओं में से एक थे, जो चित्तौड़गढ़ मेवाड़ के रावल रतन सिंह के बचाव के लिए बहादुरी से लड़े थे। गोरा ओर बादल दोनों चाचा भतीजे जालौर के चौहान वंश से सम्बन्ध रखते थे। छल द्वारा 1298 में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ मेवाड़ के शासक रावल रतन सिंह को कैदी बना दिया था। फिरौती में खिलजी ने, चित्तौड़गढ़ मेवाड़ के रावल रतन सिंह कि पत्नी रानी पद्मिनी की माँग की थी। यह सब होने के बाद रानी पद्मिनी ने एक युद्ध परिषद आयोजित की जिसमें रावल रतन सिंह को बचाने की योजना बनाई गयी। रावल रतन सिंह को बचाने का जिम्मा गोरा और बादल को दिया गया। गोरा और उसके भतीजे बादल को अलाउद्दीन खिलजी के पास दूत बना कर भेजा गया ओर संदेश पहुँचाया गया कि रानी पद्मिनी को खिलजी को सौंप दिया जायेगा अगर खिलजी अपनी सेनायें चित्तौड़गढ़ मेवाड़ से हटा दे, पर एक शर्त यह है कि जब रानी पद्मिनी को खिलजी को सौंपा जायेगा तब रानी पद्मिनी की दासियाँ और सेवक 50 पालकियों में साथ होगीं। जब रानी पद्मिनी को खिलजी को सौंपा जा रहा था तो प्रत्येक पालकी में एक राजपूत योद्धा को बिठाया गया। जब रानी पद्मिनी की पालकी जिसमें गोरा ख़ुद भी बैठा था, जब रत्न सिंह के टेंट के पास पहुँची तो गोरा ने रतन सिंह के टेंट में जाकर रत्न सिंह को घोड़े पर बैठने को कहा कि आप किले (चित्तौड़गढ़) में वापस चले जाओ। उसके बाद गोरा ने सभी राजपूत योद्धाओं को उनकी पालकी से बाहर आने को कहा कि मुस्लिम सैनिकों पर हमला करो। गोरा खिलजी के तम्बू तक पहुँचा और सुल्तान को मारने ही वाला था पर सुल्तान अपनी पत्नी के पीछे छिप गया। गोरा एक राजपूत था और राजपूत मासूम महिलाओं को नहीं मारते, इसलिए गोरा ने उस महिला पर हाथ नहीं उठाया और सुल्तान के सैनिकों से युद्ध करते हुए गोरा और बादल वीरगति को प्राप्त हुए। चित्तौड़गढ़ किले में रानी पद्मिनी के महल के दक्षिण में दो गुंबद के आकार घरों का निर्माण किया गया है जिन्हें गोरा बादल के महल के नाम से जाना जाता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जार्ज बर्नार्ड शा जीवनी (हिंदी) जीवनी डॉट ऑर्ग। अभिगमन तिथि: 2 नवंबर, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

गोरा-बादल-युद्ध-खंड / मलिक मोहम्मद जायसी ]

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