अनवर जलालपुरी
अनवर जलालपुरी (अंग्रेज़ी: Anwar Jalalpuri, जन्म- 6 जुलाई, 1947, अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 2 जनवरी, 2018) 'यश भारती' से सम्मानित उर्दू के मशहूर शायर थे। उन्होंने हिन्दू धार्मिक ग्रंथ 'श्रीमद्भागवत गीता' का उर्दू शायरी में अनुवाद किया था। उर्दू दुनिया की नामचीन हस्तियों में शुमार अनवर जलालपुरी मुशायरों की निजामत के बादशाह थे।
परिचय
अनवर जलालपुरी का जन्म 6 जुलाई सन 1947 को जलालपुर, अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका वास्तविक नाम 'अनवर अहमद' था। उन्होंने 1966 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक किया। इसके बाद 1968 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में और 1978 में अवध विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में भी एम.ए. किया। अनवर जलालपुरी उर्दू, अरबी, फ़ारसी विश्वविधालय, नीरज शहरयार अवार्ड चयन कमेटी, यूपी राज्य उर्दू कमेटी से भी जुड़े रहे थे।
उर्दू शायरी में ढली 'गीता'
अनवर जलालपुरी का अहम कार्य 'गीता' को उर्दू शायरी में ढालने का है। 'गीता' के 701 श्लोकों को उन्होंने 1761 उर्दू अशआर में व्याख्यायित किया है। जलालपुरी जी कहते थे- "आज जब समाज में संवेदनाशीलता खत्म होती जा रही है, तब 'गीता' की शिक्षा बेहद प्रासंगिक है। मुझे लगता था कि शायरी के तौर पर इसे अवाम के सामने पेश करूँ तो एक नया पाठक वर्ग इसकी तालीम से फायदा उठा सकेगा।" इसकी बानगी कुछ इस प्रकार है-
- गीता श्लोक
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संङ्गोऽस्त्वकर्मणि।
- अर्थ
सतो गुन सदा तेरी पहचान हो/कि रूहानियत तेरा ईमान हो
कुआं तू न बन, बल्कि सैलाब बन/जिसे लोग देखें वही ख्वाब बन
तुझे वेद की कोई हाजत न हो/ किसी को तुझ से कोई चाहत ना हो।
- गीता श्लोक
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत्।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मांन सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
- अर्थ
फराएज से इंसा हो बेजार जब/हो माहौल सारा गुनाहगार जब बुरे लोगों का बोलबाला रहे/न सच बात को कहने बाला रहे कि जब धर्म का दम भी घुटने लगे/शराफत का सरमाया लुटने लगे तो फिर जग में होना है जाहिर मुझे/जहां भर में रहना है हाजिर मुझे बुरे जो हैं उनका करूँ खात्मा/जो अच्छे हैं उनका करूँ में भला धरम का जमाने में हो जाए राज/चले नेक रास्ते पे सारा समाज इसी वास्ते जन्म लेता हूँ मैं/नया एक संदेश देता हूँ मैं
प्रकाशित रचनाएँ
- उर्दु शायरी में गीता
- जोश-ए-आखिरत
- उर्दु शायरी में गीतांजलि
- जागती आंखें
- हर्फे अब्जद
- अदब के अक्षर
पुरस्कार व सम्मान
उर्दू के प्रसिद्ध शायर अनवर जलालपुरी को पुरस्कार तथा मान-सम्मान आदि भी बहुत मिले-
- इफ्तेखार-ए-मीर सम्मान - 2011
- गजल संग्रह पुरस्कार - 2011
- उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान - 2012
- साम्प्रदायिक एकता सम्मान - 2015
- बिहार उर्दू अकादमी सम्मान - 2015
- यश भारती - 2016
मृत्यु
अनवर जलालपुरी की मृत्यु 2 जनवरी, 2018 को हुई।
अधूरी हसरत
अनवर जलालपुरी पिछले काफ़ी दिनों से उर्दू में ढली 'गीता' की शायरियों की ऑडियो सीडी लगभग बनवा चुके थे, जिसे भजन सम्राट अनूप जलोटा ने अपने सुरों से सजाया है। आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों इसके विमोचन की कवायद भी चल रही थी।
मुशायरे का टीचर
उनकी ज़िंदगी में यदि परेशानियां कुछ कम रही होतीं तो अदब की दुनिया में उन्होंने और भी बहुत कुछ किया होता। उनकी बेटी की मौत ने उन्हें बहुत परेशान किया था। वह घर में सबसे बड़े थे, तो नतीजे के तौर पर रो भी नहीं सकते थे और वह रोये भी नहीं। जो भी मिलने आता, उससे एक ही बात कहते कि 'पहली बार अंदाज़ा हुआ कि दुःख क्या होता है।' पर वह रोये नहीं। इस वाकये ने उनके ऊपर बेहद असर डाला था। वह बिल्कुल टूट गये थे। अहमद फ़राज़ का एक मशहूर शेर है-
ज़ब्त लाज़िम है पर दुख है क़यामत का ‘फ़राज़’
ज़ालिम अब के भी न रोएगा तो मर जाएगा
उनके साथ यही हुआ कि वह रोये नहीं और मर गए। अनवर जलालपुरी की मौत से जो सबसे बड़ा नुकसान हुआ है, वह ये कि मुशायरे का टीचर चला गया। एक टीचर के तौर पर वह हमेशा यही चाहते थे कि मुशायरे का स्तर ख़राब न होने पाए। मुशायरा सांप्रदायिकता या अश्लीलता की तरफ न जाये। वह एक संचालक के बतौर नहीं बल्कि एक टीचर की तरह मुशायरे को चलाते थे। कभी किसी ने ख़राब शेर पढ़ा, गलत वाक्य बोला, तो वह टोक दिया करते थे।
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