गृहपति

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:59, 8 अप्रैल 2018 का अवतरण (''''गृहपति''' पाणिनिकालीन भारतवर्ष में विवाह करके गृ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

गृहपति पाणिनिकालीन भारतवर्ष में विवाह करके गृहस्थ आश्रम में प्रविष्ट होने वाले व्यक्ति के लिये प्रयोग की जाने वाली प्राचीन संज्ञा थी।

  • विवाह के समय प्रज्ज्वलित हुई अग्नि 'गार्हपत्य' कहलाती थी, क्योंकि गृहपति उससे संयुक्त रहता था।[1] अग्नि साक्षिक विवाह से आरम्भ होने वाले गृहस्थ जीवन में गृहपति लोग जिस अग्नि को गृहयज्ञों के द्वारा निरंतर प्रज्वलित रखते थे, उस अग्नि के लिये ही 'गृहपतिना संयुक्त:' यह विशेषण चरितार्थ होता है।
  • विवाह के समय का अग्निहोम एक यज्ञ था। उस यज्ञ में पति के साथ विधिपूर्वक संयुक्त होने के कारण विवाहिता स्त्री की संज्ञा 'पत्नी' होती थी।[2] पति-पत्नि दोनों मिलकर वैवाहिक अग्नि की परिचर्या करते थे।[3] गृह्म अग्नि में आहुत होने वाले अनेक स्थालीपाक उस समय किये जाते थे।
  • पाणिनि ने वास्तोष्पति के अतिरिक्त 'गृहमेध' देवता का भी उल्लेख किया है।[4] पुत्र-पौत्रों से सुखी सम्पन्न पति-पत्नी सुप्रज[5] और पुत्रपौत्रीण[6] कहलाते थे।[7]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गृहपतिना संयुक्ते त्र्य:, 4।4।90
  2. पत्युर्नो यज्ञसंयोगे, 4।1।33
  3. मनु 3।67
  4. 4।2।32
  5. 5।4।123
  6. पुत्र पौत्र मनुभवति, 5।2।10
  7. पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 96-97 |

संबंधित लेख