सदासुख लाल
सदासुख लाल (जन्म- 1746, दिल्ली, मृत्यु- 1824) खड़ी बोली हिंदी गद्य के आरंभिक लेखक होने के साथ-साथ फारसी और उर्दू के लेखक एवं कवि भी थे।
परिचय
खड़ी बोली हिंदी गद्य के आरंभिक लेखकों में मुंशी सदासुख लाल भी एक थे। उनका जन्म 1746 ई. में दिल्ली में हुआ था। ये फारसी और उर्दू के लेखक और कवि थे। इसके बाद भी उन्होंने शिष्ट लोगों के व्यवहार की खड़ी बोली का वह रूप अपनाया, जो उस समय 'भाखा' कहलाता था। यद्यपि सदासुख लाल भी ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी में चुनार के तहसीलदार थे, किंतु साहित्य रचना उन्होंने स्वतंत्र रूप से स्वांत:सुखाय ही की। सदासुख लाल कंपनी की नौकरी छोड़कर अंत में प्रयाग में रहने लगे थे।[1]
रचना कार्य
इनकी दो रचनाएं मिलती हैं जो इस प्रकार हैं-
- 'सुख सागर' - यह भागवत और विष्णु पुराण के नैतिक प्रसंगों पर आधारित है।
- 'मुंतखब्बुत्तवारीख' - इसमें इन्होंने अपनी संक्षिप्त जीवनी लिखी है।
इनकी भाषा पंडिताऊ ढंग की है और गद्य के विकास की दृष्टि से उसका ऐतिहासिक महत्त्व है।
मृत्यु
मुंशी सदासुख लाल का प्रयाग में हरि भजन और कथा वार्ता करते हुए 1824 ई. में निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 895 |
बाहरी कड़ियाँ
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