कोरोना वायरस

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कोरोना वायरस (अंग्रेज़ी: Corona virus) कई प्रकार के विषाणुओं का एक समूह है, जो स्तनधारियों और पक्षियों में रोग के कारण हैं। यह आर.एन.ए. विषाणु होते हैं। मानव में यह श्वास तंत्र संक्रमण का कारण बनते हैं, जो अधिकांशत: कम घातक लेकिन कभी-कभी जानलेवा सिद्ध होते हैं। गाय और सूअर में कोरोना वायरस अतिसार और मुर्गियों में ऊपरी श्वास तंत्र के रोग के कारण बनते हैं। इनकी रोकथाम के लिए कोई टीका (वैक्सीन) या एंटीवायरल अभी उपलब्ध नहीं है। साबुन से हाथ धोना ही बचाव का सबसे बेहतरीन तरीका है, क्योंकि कोरोना वायरस की बाहरी परत प्रोटीन या तैलीय लिपिड से बनी होती है, जिसे साबुन का पानी तोड़ देता है। इसके बाद वायरस का स्ट्रेन कमजोर पड़ जाता है। चीन के वूहान शहर से उत्पन्न होने वाला '2019 नोवेल कोरोना वायरस' इसी समूह के वायरसों का एक उदहारण है, जिसका संक्रमण 2019-2020 से बड़ी ही तेज़ी से पूरे में फैल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे 'कोविड-19' (COVID-19) नाम दिया है।

कोरोना वायरस परिवार

कोरोना वायरस समय-समय पर मानव आबादी में फैलते रहे हैं और वयस्कों और बच्चों में सांस लेने में संक्रमण का कारण बनते हैं। ये मुख्य रूप से सर्दियों और शुरुआती वसंत ऋतु में ही ज्यादा ताकतवर होते हैं। अभी तक कोरोना वायरस परिवार के सात विषाणुओं का पता लगाया गया है, जिनका विवरण निम्न हैं-

एचसीओवी-229-ई

मानव कोरोना वायरस 229-ई (एचसीओवी-229-ई) कोरोना वायरस की एक प्रजाति है, जो मनुष्यों और चमगादड़ों को संक्रमित करती है। यह संक्रामक वायरस एक सिंगल-स्ट्रांडेड आर.एन.ए. वायरस है, जो एपीएन रिसेप्टर के जरिये अपने मनुष्यों की कोशिकाओं में प्रवेश करता है। एचसीओवी-229-ई छोटी-छोटी उल्टी और श्वसन के माध्यम से प्रसारित होता है। इसके लक्षणों में सर्दी-जुकाम से लेकर तेज बुखार जैसे कि निमोनिया और ब्रोन्कोलाइटिस शामिल हैं।[1]

एचसीओवी-एनएल-63

एचसीओवी-एनएल-63 अल्फा कोरोना वायरस है। इसकी पहचान 2004 के अंत में नीदरलैंड के ब्रोंकोलाइटिस वाले सात महीने के बच्चे में की गई थी। बाद में दुनिया में कई बीमारियों के साथ इसका जुड़ाव सामने आया है। इन बीमारियों में श्वांस नलिका के संक्रमण, क्रुप और ब्रोन्कोलाइटिस शामिल हैं। विषाणु मुख्य रूप से छोटे बच्चों, बुजुर्गों और तीव्र श्वसन संबंधी बीमारी के रोगियों में पाया जाता है। एम्स्टर्डम में एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 4.7% आम श्वसन रोगों में एचसीओवी-एनएल-63 की उपस्थिति है।

एचसीओवी-ओसी-43

एचसीओवी-229-ई के साथ-साथ, एचसीओवी-ओसी-43 भी एक सामान्य सर्दी का कारक वायरस है। यह वायरस शिशुओं में निमोनिया सहित, श्वसन नलिका संक्रमण पनपाता है। बुजुर्ग और कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्तियों जैसे कि कीमोथेरेपी से गुजरने वाले और एचआईवी-एड्स से पीड़ित लोग भी इसके ज्यादा शिकार होते हैं। सर्दी के मौसम में जब जुखाम होता है तो यह इसी वायरस की बदौलत है।

एचसीओवी-एचकेयू-1

एचसीओवी-एचकेयू-1 को पहली बार जनवरी, 2005 में हांगकांग के एक 71 वर्षीय व्यक्ति में पहचाना गया था, जो कि तीव्र श्वसन समस्या से जूझ रहा था। उसमें रेडियोलॉजिकल रूप से द्विपक्षीय निमोनिया की पुष्टि की गई थी। उस दौरान यह आदमी चीन के शेनझेन से लौटा था।

सार्स

कोरोना वायरस के परिवार का एक पूर्वज वायरस सार्स (सीवियर एक्यूट रिस्पिरेटरी सिंड्रोम) सबसे पहले 2003 में चीन में पाया गया था। यह चमगादड़ों से इंसानों में आया था। इसकी वजह से 2003 में चीन और हांगकांग में करीब 650 लोग मारे गए थे। जांच में पता चला था कि यह वायरस चमगादड़ों से इंसानों में आया था।

मर्स

मध्य-पूर्व देशों में मर्स-सीओवी (मिडिल ईस्ट रिस्पिरेटरी सिंड्रोम वायरस) को 2012 में सऊदी अरब में खोजा गया था। यह वायरस कोरोना वायरस परिवार का पूर्वज है। मर्स-सीओवी की वजह से अब तक मध्य-पूर्व के देशों में 800 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। यह वायरस ऊंटों के जरिये इंसानों में आया था।

नोवल कोरोना वायरस

नोवल कोरोना वायरस (कोविड-19) का पहला मामला दिसंबर, 2019 में चीन के वुहान में सामने आया था। इसके लक्षणों में बुखार, सर्दी-जुखाम, खांसी, सांस लेने में तकलीफ होती है। ये लक्षण सार्स और मेर्स से काफी मिलते-जुलते हैं। कोविड-19 की अनुवांशिक संरचना 80 फीसदी तक चमगादड़ों में पाए जाने वाले सार्स वायरस जैसी मिली है।

कोविड-19 ज़्यादा चिंताजनक

मानव में कोविड-19 का संक्रमण अत्यधिक गम्भीर है। इसके लक्षण जल्दी नहीं दिखते। हांगकांग यूनिवर्सिटी में क्लिनिकल प्रोफेसर जॉन निकोलस के मुताबिक, नोवल कोरोना वायरस की पुष्टि न होने पर भी खतरा बरकरार रहता है। एक-दो हफ्ते बाद दोबारा जांच जरूरी है, क्योंकि यह वायरस देरी से पनपता है। श्वसन तंत्र पर हमला करने वाला कोविड-19 खांसी, छींक के जरिये छह फीट के दायरे में दूसरे व्यक्ति तक पहुंच सकता है और 14 दिनों तक इसके लक्षण नहीं दिखते।

अत्यधिक घातक

कोविड-19 ने संक्रमण और मौतों के मामले में कोरोना श्रेणी के ही वायरस सार्स को पीछे छोड़ दिया है। 2002-2003 में फैले सार्स की चपेट में चीन में 5,327 लोग आए थे और दुनिया भर में 750 लोग मारे गए थे। कोविड-19 वायरस पर काबू पाने की कोशिश वैज्ञानिक कर रहे हैं, जबकि सार्स और मर्स का भी जड़ से उन्मूलन नहीं हुआ है। कई देशों में सालों बाद भी इनके दोबारा सक्रिय होने की आशंका बनी रहती है। कोविड-19 से अभी तक जीव-जंतुओं के प्रभावित होने का कोई मामला सामने नहीं आया है। एक शोध के अनुसार अन्य कोरोना वायरस गाय, सूअरों और ऊंट आदि में डायरिया का कारण बनते हैं।

मानव शरीर में प्रवेश

कोरोना वायरस तैलीय लिपिड के बुलबुले के अंदर होता है। इस बुलबुले के चारों तरफ प्रोटीन और लिपिड्स की परत होती है। इसी परत से प्रोटीन के कांटे (Spikes) निकले होते हैं। कोरोना वायरस नाक, मुंह या आंखों के जरिए शरीर में घुसता है। इसके बाद ये शरीर की कोशिकाओं तक जाता है। इंसानी शरीर की कोशिकाएं एसीई 2 नामक प्रोटीन पैदा करती हैं। इसके बाद कोरोना वायरस का तैलीय लिपिड बुलबुला फूट जाता है। वह कोशिका की बाहरी परत को खोल देता है। फिर तैलीय लिपिड के अंदर मौजूद कोरोना वायरस का स्ट्रेन या आरएनए हमारी कोशिकाओं में घुस जाता है। कोरोना वायरस का जीनोम शरीर की कोशिकाओं में एक निगेटिव वायरल प्रोटीन बनाना शुरू कर देता है। इसके लिए वह कोशिकाओं से ऊर्जा लेता है ताकि वह शरीर के अंदर ही नए कोरोना वायरस पैदा कर सके। धीरे-धीरे कोरोना वायरस जैसे कांटे हमारे शरीर की कोशिकाओं में विकसित होने लगते हैं। यानी हमारी कोशिकाएं भी कोरोना वायरस जैसी बनने लगती हैं। फिर, ये टूटकर नए कोरोना वायरसों को जन्म देना शुरू करती हैं। इसके बाद इंसान के शरीर में ही शुरू हो जाती है कोरोना वायरस की एसेंबलिंग अर्थात वायरस के नए आरएनए शरीर में फैलने लगते हैं। ये नए वायरस को पैदा करते हैं। फिर इंसानी शरीर के अंदर ही अलग-अलग कोशिकाओं से मिलकर नए कोरोना वायरस बनने लगते हैं।[2]

मानव शरीर के अंदर संक्रमित हर कोशिका लाखों वायरस बना सकती है। अंत में इंसानी शरीर की कोशिकाएं मरने लगती हैं। फिर धीरे से ये वायरस फेफड़ों में पहुंचकर ऑक्सीजन साफ करने की प्रक्रिया को बाधित कर देता है। ऐसी स्थिति में शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली वायरस से मुकाबला करती है। तब बुखार आता है। जब स्थिति ज्यादा गंभीर होती है, तब हमारा इम्यून सिस्टम हमारे फेफड़ों की कोशिकाओं पर ही हमला करता है। इससे फेफड़े बाधित होते हैं; क्योंकि इस प्रक्रिया में कफ बनने लगता है। ये कफ मारी गई संक्रमित कोशिकाएं होती हैं। इसी वजह से मानव सांस नहीं ले पाता और उसकी मौत हो जाती है।

खांसने या छींकने से फेफड़ों में मारी गई संक्रमित कोशिकाएं पानी या थूक या कफ की बूंदों के रूप में बाहर आते हैं, जो कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक बाहरी वातावरण में जीवित रह सकते हैं। साथ ही अन्य लोगों को संक्रमित कर सकते हैं। इसलिए लोग मास्क लगाने को कहते हैं। भविष्य में हो सकता है कि कोरोना वायरस कोविड-19 के लिए कोई वैक्सीन बना लिया जाए ताकि वह इंसानी शरीर पर यदि हमला करे तो वह कोई नुकसान न पहुंचा पाए। अभी इस वायरस के नियंत्रण के लिए कोई वैक्सीन नहीं है। साबुन से हाथ धोना ही बचाव का सबसे बेहतरीन तरीका है, क्योंकि कोरोना वायरस की बाहरी परत प्रोटीन या तैलीय लिपिड से बनी होती है, जिसे साबुन का पानी तोड़ देता है। इसके बाद वायरस का स्ट्रेन कमजोर पड़ जाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सात तरह के कोरोना वायरस, लेकिन जानिए कोविड-19 ने चिंता क्यों बढ़ाई (हिंदी) livehindustan.com। अभिगमन तिथि: 23 मार्च, 2020।
  2. https://aajtak.intoday.in/gallery/how-corona-virus-covid-19-enters-in-your-body-infect-you-tstr-6-47753.html (हिंदी) aajtak.intoday.in। अभिगमन तिथि: 23 मार्च, 2020।

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