गाथा सप्तशती

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गाथा सप्तशती जिसे प्राकृत भाषा में 'गाहा सत्तसई' कहा जाता है, इसमें गीति साहित्य की अनमोल निधि है। इसमें प्रयुक्त छन्द का नाम गाथा है। गाथा सप्तशती में सात सौ गाथाएँ हैं। इसके रचयिता हाल या शालिवाहन हैं।

  • इस काव्य में सामान्य लोक जीवन का ही चित्रण है। अत: यह प्रगतिवादी कविता का प्रथम उदाहरण कही जा सकती है। इसका समय बारहवीं शती माना जाता है।
  • गाथा सप्तशती का उल्लेख बाणभट्ट ने 'हर्षचरित' में भी किया है-

'अविनाशिनमग्राह्यमकरोत्सातवाहन:।
विशुद्ध जातिभिः कोषं रत्नेखिसुभाषितैः॥[1]

  • इसके अनुसार सातवाहन ने सुंदर सुभाषितों का एक कोश निर्माण किया था। आदि में यह कोश सुभाषितकोश या गाथाकोश के नाम से ही प्रसिद्ध था। बाद में क्रमश: सात सौ गाथाओं का समावेश हो जाने पर उसकी सप्तशती नाम से प्रसिद्धि हुई।
  • गाथा सप्तशती की प्रत्येक गाथा अपने रूप में परिपूर्ण है और किसी मानवीय भावना, व्यवहार या प्राकृतिक दृश्य का अत्यंत सरसता और सौंदर्य से चित्रण करती है।
  • इसमें शृंगार रस की प्रधानता है, किंतु हास्य, करुण आदि रसों का भी अभाव नहीं है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (हर्षचरित 13)

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