सिनौली, बागपत
सिनौली, बागपत
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विवरण | सिनौली महाभारतकालीन ऐतिहासिक स्थल है। यहाँ के उत्खनन में शाही ताबूत, रथ, महिला का कंकाल, धनुष, और तांबे की तलवार समेत कई चीजें सामने आ चुकी हैं। | ||
राज्य | उत्तर प्रदेश | ||
ज़िला | बागपत | ||
प्रसिद्धि | ऐतिहासिक स्थल | ||
संबंधित लेख | भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग, सिंधु घाटी सभ्यता, महाभारत | खोज | 2005-2006 |
अन्य जानकारी | सिनौली के नायाब पुरास्थल पर एएसआई ने सर्वप्रथम 2005 में उत्खनन कराया। दस महीने तक चली इस खुदाई में पुरातत्वविदों को करीब 177 मानव कंकाल, स्वर्णनिधि (बड़ी संख्या में सोने के कंगन, सोने के मनके और सोने की मानवाकृति) मिली। |
सिनौली (अंग्रेज़ी: Sinauli) ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण एक पुरातात्विक स्थल है जो जनपद बागपत, उत्तर प्रदेश में स्थित है। इस स्थान से सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित कब्रें पाई गई थीं। बागपत जनपद की बड़ा़ैैैत तहसील में सिनौली स्थित है। 2005 में खोजा गया सिनौली गाँव भारत में सिंधु घाटी सभ्यता स्थलों की सूची में सबसे नवीन अद्यतन है। यहाँ के तमाम अवशेष 3800 से 4000 वर्ष पुराने हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल राखीगढ़ी, कालीबंगा और लोथल में खुुदाई के दौरान कंकाल तो मिल चुके हैं किंतु रथ पहली बार मिला है।
पुरा महत्त्व
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग (आगरा सर्किल) ने हाल ही में एनसीआर सर्किट स्थित जनपद बागपत के सादिकपुर सिनौली गांव की 28.6 हेक्टेयर जमीन को राष्ट्रीय महत्व का क्षेत्र घोषित किया है। 'आर्कियॉलजिकल सर्वे ऑफ इंडिया' की इस घोषणा के साथ ही यह क्षेत्र आगरा सर्किल का 267वां संरक्षित स्मारक तो बना ही है, इसे अंतरराष्ट्रीय मानचित्र में भी महत्वपूर्ण स्थान मिल गया है।[1]
सिनौली गांव में एएसआई अब अधिसूचित जमीन को घेरने की तैयारी कर रही है। हालांकि इस जमीन पर किसान खेती तो कर सकेंगे, बस निर्माण कार्य की अनुमति नहीं होगी। एएसआई जब भी चाहेगा, किसानों की फसल के लिए पैसे का भुगतान कर वहां पर खुदाई कर सकेगा। वैसे इस घोषणा से यहां के ग्रामीण खुश हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इससे उनके लिए रोजगार के नए अवसर तो खुलेंगे ही, उनका गांव एक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हुआ तो देश-विदेश के टूरिस्ट भी इसे देखने आएंगे। वैसे सिनौली को संरक्षित स्मारक घोषित किए जाने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इतिहासकार और पुरातत्वविद भी काफी उत्साहित हैं।
उत्खनन कार्य
सिनौली के इस नायाब पुरास्थल पर एएसआई ने सर्वप्रथम 2005 में उत्खनन कराया। दस महीने तक चली इस खुदाई में पुरातत्वविदों को करीब 177 मानव कंकाल, स्वर्णनिधि (बड़ी संख्या में सोने के कंगन, सोने के मनके और सोने की मानवाकृति) मिली। लेकिन खुदाई में जो सबसे महत्वपूर्ण चीज मिली, वह है कब्रगाह। हड़प्पा सभ्यता से लेकर मेसोपोटामिया, सुमेर, मिस्र व रोमन साम्राज्य के किसी भी पुरास्थल से अब तक इतनी विस्तृत कब्रगाह नहीं मिली है। यहां मिले ताबूतों में से तो कुछ खटोले की तरह हैं। खुदाई में जो रथ और योद्धाओं की शव पेटिकाएं मिली हैं, वे इशारा करती हैं कि यह शवाधान (कब्रगाह) राजसी परिवार से संबंधित रहा होगा।
इतिहासकारों ने पिछले पंद्रह वर्षों में यमुना - हिंडन दोआब में सैकड़ों पुरातात्विक टीलों की खोज कर बागपत- बड़ौत- बरनावा- हस्तिनापुर सर्किट को अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर एक नई पहचान दी है। सिनौली साइट के दूसरे चरण (2018) व तीसरे चरण (2019) की खुदाई में तांबे की परत चढ़े 3 युद्ध रथ, अति दुर्लभ लकड़ी के ताबूत में संरक्षित किए गए 8 मानव कंकाल (स्वर्ण आभूषण पहने हुए) के अलावा युद्ध में इस्तेमाल किए जाने वाले कवच, हेलमेट, तांबे की तलवारें, खंजर, स्वर्ण आभूषण, तांबे के कटोरे, मृदभांड और ईंटों के पुरावशेष प्राप्त हुए हैं। शाही ताबूतों में मिले नर-कंकालों को पुरातत्वविदों ने तीन से चार हजार साल पुराना माना है। डरहम यूनिवर्सिटी, लंदन के इतिहासकारों ने भी सिनौली साइट के जीपीएस सर्वेक्षण में यही बात कही है।[1]
महाभारत से सम्बंध
एएसआई ने मई 2018 में सिनौली साइट का जीपीआर (ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार) सर्वे कराया। सर्वे में पुरातत्वविदों ने खुदाई के इलाके की जमीन के भीतर डेढ़ से साढ़े तीन मीटर गहराई तक मिले सबूतों के बारे में जानकारी जुटाई। सर्वे की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़ इस पुरास्थल पर एक बेशकीमती ऐतिहासिक धरोहर के मौजूद होने का पता चला है। इसके अलावा यहां बस्ती होने के पुरावशेष भी मिल रहे हैं। पिछले साल यहां मिली कब्रगाह से मात्र दो सौ मीटर दूर एक नई साइट पर खुदाई कराई गई, तो वहां पर तांबे को गलाने की चार भट्टियां और आवासीय क्षेत्र के भी पुख्ता सबूत मिले। इस परिक्षेत्र से जिस सभ्यता के पुरावशेष मिल रहे हैं, कुछ इतिहासकार उसे महाभारत काल से भी जोड़कर देख रहे हैं। महाभारत में इस क्षेत्र को कुरु वंश की राजधानी हस्तिनापुर बताया गया है।
सिनौली साइट का यह दुर्लभ इतिहास एक वेब सीरीज के माध्यम से दुनिया के सामने आ रहा है। डिस्कवरी पर ‘सीक्रेट ऑफ सिनौली- डिस्कवरी ऑफ द सेंचुरी’ नाम से शुरू हो चुका है। दरअसल सिनौली साइट के उत्खनन ने भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के इतिहासकारों के सामने एक नया आयाम प्रस्तुत किया है। इस साइट को लेकर देश भर के पुरातत्वविदों में बड़ी उत्सुकता है। पुरातत्वविदों का कहना है कि सिनौली की खुदाई में जिस तरह के खाटनुमा ताबूत मिले हैं, वे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के लिए नई खोज हैं। उनका मानना है कि वहां मिल रही पुरातात्विक सामग्री असाधारण है और एक नई सभ्यता की ओर ले जा रही है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 नई महाभारत कहते हैं सिनौली में मिले अवशेष (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 10 फ़रवरी, 2020।