धराड़ी प्रथा

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धराड़ी का शाब्दिक अर्थ है- धरा+आड़ी अर्थात् धरा (पृथ्वी) की (आड़ी/रखवाली या रखवाड़ी) रक्षा करने वाली होता है। प्रकृति जो आदिम काल से आदिम कबीलों की पालनहार रही है, उसके साथ आदिवासी कबीलों का नाता माँ-बेटे का रहा है। वे प्रकृति में अपनी मातृदेवी का निवास मानकर उसे अपनी आराध्य एवं अपने कबीले की अंश-वंश, संरक्षक एवं परिवार का अभिन्न अंग मानकर सदियों से पूजते आ रहे हैं। हर शुभ कार्य में साथ रखते हैं, प्रकृति का आदिवासियों से यह नाता ही धराड़ी कहलाता है। संक्षिप्त में पेड़-पौधों (प्रकृति) के प्रति आदिवासियों का मानवीय, मित्रवत, पारिवारिक व्यवहार और उनके प्रति सम्मान ही 'धराड़ी प्रथा' है।

धराड़ी प्रथा और पर्यावरण संरक्षण

मातृ देवी या धराड़ी का संबंध दुनिया की सृष्टा या उत्पादन करने वाली देवी के साथ है, जिसे हम धरती माता या भूमाता भी कह सकते हैं। धराड़ी या मातृ देवी की उपासना सर्वाधिक प्राचीन है। आदिवासी मीणा समुदाय में 5248 गोत्र बतलाए गये हैं, जिनमें से लगभग 1200 गोत्र वर्तमान में अस्तित्व में हैं। मीणा समुदाय के प्रत्येक गोत्र की एक धराड़ी होती है, जिसे कुलवृक्ष कहते हैं। कई गोत्रों की धराड़ी एक हो सकती है। जिसका हमने आर्य संस्कृति के संपर्क और प्रभाव में आकर मूर्तिकरण कर दिया। लेकिन कुलदेवी या कुलदेवता के स्थान पर संबंधित गोत्र की धराड़ी (कुल वृक्ष) का होना और उसकी पूजा करना पर्यावरण संरक्षण का एक बहुत बड़ा संदेश देती है।

प्राचीन काल में धराड़ी महत्त्व

  1. बच्चों के जन्म पर गोत्र की धराड़ी (कुल वृक्ष) का पत्ता या लकड़ी बिस्तर के सिरहाने रखते थे।
  2. विवाह के समय धराड़ी (कुलवृक्ष) के ही चारों ओर फेरे लिये जाते थे। किसी पंडित की कोई जरूरत नहीं होती थी। कालांतर में आर्यों के संपर्क और प्रभाव में आकर धराड़ी की लकड़ी की अग्नि को साक्षात् प्रकृति स्वरूपा मान कर फेरे लिए जाने लगे, लेकिन अब लोग उसको भी भूलते जा रहे हैं।
  3. मृत्यु के समय अंतिम संस्कार भी धराड़ी (कुल वृक्ष) की लकड़ी से ही किया जाता था। आज उसकी एक लकड़ी को केवल नियम के तौर पर अंतिम संस्कार में प्रयोग किया जाता है।
  4. संबंधित गोत्र अपने कुल वृक्ष (धराड़ी) को लगाने और संरक्षण का ही काम करता था। उनके द्वारा उसकी गीली लकड़ी काम में नहीं ली जाती थी। जब धराड़ी की कोई शाखा सूखती थी, तभी काम में ले सकते थे वो भी खाना बनाने के लिए नहीं, केवल विशेष अवसरों पर ही।

कुछ गोत्रों की धराड़ी

  1. घुणावत गोत्र - नीम
  2. घुसिंगा गोत्र - गिरीजाड़ (जाल या जाड़)
  3. मंडावत गोत्र - बेल का वृक्ष
  4. सिर्रा गोत्र - सेमल वृक्ष


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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