मोहम्मद शरीफ़
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मोहम्मद शरीफ़ (अंग्रेज़ी: Mohammed Sharif) जिन्हें 'शरीफ़ चचा' के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय बुजुर्ग समाजसेवी हैं। उन्हें लावारिस लाशों के मसीहा के तौर पर जाना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने पिछले 28 वर्षों में 3000 से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया है। 30 वर्ष पूर्व युवा पुत्र की मार्ग दुर्घटना से मौत और लावारिस के तौर पर उसके अंतिम संस्कार ने मोहम्मद शरीफ़ पर ऐसा असर डाला कि वह किसी भी लावारिस शव के वारिस बन कर सामने आए। मानवीय संवेदना पर किए गए उनके कामों के लिए साल 2020 में 'पद्म श्री' से नवाजे जाने की घोषणा केंद्र सरकार ने की थी, लेकिन कोविड संक्रमण के चलते यह अवार्ड उन्हें मिल नहीं सका था। अब उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने इस पुरस्कार से सम्मानित किया है।
- मोहम्मद शरीफ़ ने बीते 28 सालों के बीच करीब तीन हजार से ज्यादा लावारिस शवों का विधि-विधान से अंतिम संस्कार करवाया है, जिनमें से 1 हजार हिन्दू और दो हजार मुस्लिमों के शव शामिल हैं।
- उनका कहना था कि जब तक उनके शरीर में ताकत है, वह लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करते रहेंगे। आगे उनके परिवारीजन इस सेवा कार्य को आगे बढ़ाएंगे, ऐसा उनको भरोसा है।
- मोहम्मद शरीफ़ ने कहा कि उनके समाजसेवा के काम में तमाम लोगों ने भी मदद की। ईमानदारी से अच्छा काम करने पर लोगों का सहयोग मिलता है। लावारिस शवों के अंतिम संस्कार करने का जो बीड़ा उन्होंने तीन दशक पहले उठाया था, उसे पूरा करने के दौरान कई कटु अनुभवों का भी एहसास किया।
- मोहम्मद शरीफ़ ने बताया था कि उनके बेटे की सुलतानपुर में हत्या कर दी गई थी। उसका शव पुलिस ने बरामद किया था और लावारिस समझकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया था। उसी के बाद उन्होंने लावारिस शवों का अपने स्तर पर अंतिम संस्कार करने की शपथ ली थी।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राष्ट्रपति से सम्मानित होकर अयोध्या लौटे पद्मश्री शरीफ चचा (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 09 नवंबर, 2021।