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अप् (स्त्रीलिंग) [आप्+क्विप्+ह्रस्वश्च]

  • (परिनिष्ठित भाषा में केवल ब. व. में ही रूप होते हैं-यथा आपः, अपः, अद्भिः, अद्भ्यः 2, अपाम्, अप्सु, परन्तु वेद में एकवचन और द्विवचन भी होते हैं) पानी, खानि चैव स्पृशेदद्भिः -मनुस्मृति 2/60, पानी बहुधा सृष्टि के पांच तत्त्वों में सबसे पहला तत्व समझा जाता है यथा-अप एव ससर्जादौ तासु बीजमवासृजत् -मनुस्मृति 1/8, श. 1/1 परन्तु मनुस्मृति 1/78 में बतलाया गया है-कि मन, आकाश, वायु और ज्योति अथवा अग्नि के पश्चात् तेजस् या ज्योतिस् से जलों की उत्पत्ति हुई।


सम.-चरः (पुल्लिंग) जलचर, जलीय जन्तु,-पतिः (पुल्लिंग)

1. जल का स्वामी वरुण
2. समुद्र, दूसरे समस्त पदों को शब्दों के अन्तर्गत देखो।[1]


इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 61 |

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