अश्रि:-श्री

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अश्रि:-श्री (स्त्रीलिंग) [अश्+क्रि पक्षे ङीप्]

1. (कमरे का या घर का) किनारा, कोण समास के अन्त में चतुर्, त्रि, षट् तथा और कुछ शब्दों के साथ बदलकर 'अस्र' हो जाता है-दे. चतुरस्र)

2. (शस्त्र की) तेज धार-वृत्रस्य हन्तुः कुलिशं कुण्ठिताश्रीव लक्ष्यते[1]

3. किसी वस्तु का तेज किनारा, धार[2]


इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. -कु. 2/30
  2. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 132 |

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