प्रयोग:गोविन्द
पिण्डदान
पिण्ड दाहिने हाथ में लिया जाए। मन्त्र के साथ पितृतीथर् मुद्रा से दक्षिणाभिमुख होकर पिण्ड किसी थाली या पत्तल में क्रमशः स्थापित करें-[1]
क्रमांक | पिण्ड | श्लोक |
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1 | प्रथम पिण्ड देवताओं के निमित्त- | ॐ उदीरतामवर उत्परास, ऽउन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः। |
2 | दूसरा पिण्ड ऋषियों के निमित्त- | ॐ अंगिरसो नः पितरो नवग्वा, अथवार्णो भृगवः सोम्यासः। |
3 | तीसरा पिण्ड दिव्य मानवों के निमित्त- | ॐ आयन्तु नः पितरः सोम्यासः, अग्निष्वात्ताः पथिभिदेर्वयानैः। |
4 | चौथा पिण्ड दिव्य पितरों के निमित्त- | ॐ ऊजरँ वहन्तीरमृतं घृतं, पयः कीलालं परिस्रुत्। |
5 | पाँचवाँ पिण्ड यम के निमित्त- | ॐ पितृव्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः, पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः, प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। |
6 | छठवाँ पिण्ड मनुष्य-पितरों के निमित्त- | ॐ ये चेह पितरो ये च नेह, याँश्च विद्म याँ२ उ च न प्रविद्म। |
7 | सातवाँ पिण्ड मृतात्मा के निमित्त- | ॐ नमो वः पितरो रसाय, नमो वः पितरः शोषाय, नमो वः पितरो जीवाय, नमो वः पितरः स्वधायै, नमो वः पितरो घोराय, |
8 | आठवाँ पिण्ड पुत्रदार रहितों के निमित्त- | ॐ पितृवंशे मृता ये च, मातृवंशे तथैव च। गुरुश्वसुरबन्धूनां, ये चान्ये बान्धवाः स्मृताः॥ |
9 | नौवाँ पिण्ड उच्छिन्न कुलवंश वालों के निमित्त- | ॐ उच्छिन्नकुलवंशानां, येषां दाता कुले नहि। |
10 | दसवाँ पिण्ड गभर्पात से मर जाने वालों के निमित्त- | ॐ विरूपा आमगभार्श्च, ज्ञाताज्ञाताः कुले मम। |
11 | ग्यारहवाँ पिण्ड इस जन्म या अन्य जन्म के बन्धुओं के निमित्त- | ॐ अग्निदग्धाश्च ये जीवा, ये प्रदग्धाः कुले मम। |
12 | बारहवाँ पिण्ड इस जन्म या अन्य जन्म के बन्धुओं के निमित्त- | ॐ ये बान्धवाऽ बान्धवा वा, ये ऽन्यजन्मनि बान्धवाः। |
यदि तीर्थ श्राद्ध में, पितृपक्ष में से एक से अधिक पितरों की शान्ति के लिए पिण्ड अपिर्त करने हों, तो नीचे लिखे वाक्य में पितरों के नाम-गोत्र आदि जोड़ते हुए वाञ्छित संख्या में पिण्डदान किये जा सकते हैं। ........... गोत्रस्य अस्मद् ....... नाम्नो, अक्षयतृप्त्यथरँ इदं पिण्डं तस्मै स्वधा॥ पिण्ड समपर्ण के बाद पिण्डों पर क्रमशः दूध, दही और मधु चढ़ाकर पितरों से तृप्ति की प्राथर्ना की जाती है ।
- निम्न मन्त्र पढ़ते हुए पिण्ड पर दूध दुहराएँ- ॐ पयः पृथिव्यां पयऽओषधीषु, पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्। -18.36
- पिण्डदाता निम्नांकित मन्त्रांश को दुहराएँ- ॐ दुग्धम्। दुग्धम्। दुग्धम्। तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्॥
- निम्नांकित मन्त्र से पिण्ड पर दही चढ़ाएँ-
ॐ दधिक्राव्णे ऽअकारिषं, जिष्णोरश्वस्य वाजिनः। सुरभि नो मुखाकरत्प्रण, आयु षि तारिषत्। -23.32
- पिण्डदाता निम्नांकित मन्त्रांश दुहराएँ-
ॐ दधि। दधि। दधि। तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्।
- नीचे लिखे मन्त्रों साथ पिण्डों पर शहद चढ़ाएँ-
ॐ मधुवाताऽऋतायते, मधु क्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीनर्: सन्त्वोषधीः।
ॐ मधु नक्तमुतोषसो, मधुमत्पाथिर्व रजः। मधु द्यौरस्तु नः पिता।
ॐ मधुमान्नो वनस्पतिर, मधुमाँ२ऽ अस्तु सूयर्:। माध्वीगार्वो भवन्तु नः। -13.27-29
- पिण्डदानकर्त्ता निम्नांकित मन्त्रांश को दुहराएँ-
ॐ मधु। मधु। मधु। तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्
- ↑ वैदिक जगत डॉट कॉम (हिन्दी) (एचटीएमएल)। । अभिगमन तिथि: 3 अक्टूबर, 2010।