दिल्ली पर्यटन
पर्यटन
दिल्ली एक आकर्षक पर्यटन स्थल है। दिल्ली में मंदिरों से लेकर मॉल तक, क़िलों से लेकर उद्यान और अनेक ऐतिहासिक इमारतें और हैं जो इतिहास की जीवंत निशानियाँ हैं। प्रतिवर्ष लाखों सैलानी दिल्ली आते हैं और यहाँ की मिश्रित संस्कृति को जानने की कोशिश करते हैं।
लोटस टैंपल
- लोटस टैंपल कालकाजी मंदिर के पीछे स्थित है।
- लोटस टैंपल को बहाई प्रार्थना केंद्र या कमल मंदिर के नाम से जाना जाता है।
जामा मस्जिद
जामा मस्जिद लाल क़िले से 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। जामा मस्जिद भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। सन 1650 ई. में शाहजहां ने इस मस्जिद का निर्माण शुरु करवाया था। जामा मस्जिद को बनने में 6 वर्ष का समय और 10 लाख रुपए लगे थे। जामा मस्जिद बहुआ पत्थर और सफ़ेद संगमरमर से निर्मित है। इस मस्जिद में उत्तर और दक्षिण द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है। जामा मस्जिद का पूर्वी द्वार केवल शुक्रवार को ही खुलता है। इस द्वार के बारे में कहा जाता है कि सुल्तान इसी द्वार का प्रयोग करते थे। जामा मस्जिद का प्रार्थना गृह बहुत ही सुंदर है। इसमें ग्यारह मेहराब हैं जिसमें बीच वाला मेहराब अन्य से कुछ बड़ा है। इसके ऊपर बने गुंबदों को सफ़ेद और काले संगमरमर से सजाया गया है जो निजामुद्दीन दरगाह की याद दिलाते हैं।
लाल क़िला
लाल किले की नींव शाहजहां के शासन काल में पड़ी थी। इसे पूरा होने में 9 साल का समय लगा। अधिकांश इस्लामिक इमारतों की तरह यह किला भी अष्टभुजाकार है। उत्तर में यह किला सलीमगढ़ किले से जुड़ा हुआ है। लाहौरी गेट के अलावा यहां प्रवेश का दूसरा द्वार हाथीपोल है। इसके बारे में माना जाता है कि यहां पर राजा और उनके मेहमान हाथी से उतरते थे। लाल किले के अन्य प्रमुख आकर्षण हैं मुमताज महल, रंग महल, खास महल, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, हमाम और शाह बुर्ज। यह किला भारत की शान है। इसी किले पर स्वतंत्रता दिवस के दिन भारत के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं और भाषण देते हैं।
हुमायूँ का मक़बरा
हुंमायूं एक महान मुगल बादशाह था जिसकी मृत्यु शेर मंडल पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिर कर हुई थी। हुमायूं का मकबरा उनकी पत्नी हाजी बेगम ने हुमायूं की याद में बनवाया था। 1562-1572 के बीच बना यह मकबरा आज दिल्ली के प्रमुख पर्यटक स्थलों में एक है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। इसके फारसी वास्तुकार मिरक मिर्जा गियायुथ की छाप इस इमारत पर साफ देखी जा सकती है। यह मकबरा यमुना नदी के किनारे संत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास स्थित है। यहां पर हमीदा बेगम (अकबर की मां), दारा शिकोह (शाहजहां का बेटा) और बहादुर शाह जफर द्वितीय (अंतिम मुगल शासक) का मकबरा भी है। इस मकबरे का प्रभाव ताजमहल पर भी देखा जा सकता है। यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा दिया है। इस मकबरे की देखरेख भारतीय पुरातत्व विभाग करता है।
पुराना क़िला
इस किले का निर्माण सूर वंश के संस्थापक शेर शाह सूरी ने 16वीं में करवाया था। 1539-40 में शेर शाह सूरी ने अपने चिर प्रतिद्वंद्वी मुगल बादशाह हुमायूं को हराकर दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया। 1545 में उनकी मृत्यु के बाद हुमायूं ने पुन: दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया था। शेर शाह सूरी द्वारा बनवाई गई लाल पत्थरों की इमारत शेर मंडल में हुमायूं ने अपना पुस्तकालय बनाया। इतिहासकारों के अनुसार इसी इमारत से गिरने की वजह से हुमायूं की मृत्यु हुई थी। यह किला केवल देशी-विदेशी पर्यटकों को ही आकर्षित नहीं करता बल्कि इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं को भी लुभाता है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस स्थान पर पुराना किला बना है उस स्थान पर इंद्रप्रस्थ बसा हुआ था इंद्रप्रस्थ को पुराणों में महाभारत काल का नगर माना जाता है। इसमें प्रवेश करने के तीन दरवाजे हैं- हुमायूं दरवाजा, तलकी दरवाजा और बड़ा दरवाजा। लेकिन आजकल केवल बड़ा दरवाजा की प्रयोग में लाया जाता है। सभी
दरवाजे दो-मंजिला हैं। ये विशाल द्वार लाल पत्थर से बनाए गए हैं। कई शासकों का शासन देख चुका पुराना किला अनेक उतार-चढ़ावों का साक्षी रहा है। वर्तमान में यहां एक बोट क्लब है जहां नौकायन का आनंद लिया जा सकता है। पास ही चिडि़याघर भी है।
जंतर मंतर
इसका निर्माण सवाई जय सिंह द्वितीय ने 1724 में करवाया था। यह इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है। जय सिंह ने ऐसी वेधशालाओं का निर्माण जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में भी किया था। दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है। मोहम्मद शाह के शासन काल में हिन्दु और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थित को लेकिर बहस छिड़ गई थी। इसे खत्म करने के लिए सवाई जय सिंह ने जंतर-मंतर का निर्माण करवाया।ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं। सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से वक्त और ग्रहों की स्थिति की जानकारी देता है। मिस्र यंत्र वर्ष के सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन को नाप सकता है। राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है।
कुतुब मीनार
कुतुब मीनार का निर्माण कुतुब-उद-दीन ऐबक ने शुरु 1199 में शुरु करवाया था और इल्तुमिश ने 1368 में इसे पूरा कराया। इस इमारत का नाम ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर रखा गया। ऐसा माना जाता है कि इसका प्रयोग पास बनी मस्जिद की मीनार के रूप में होता था और यहां से अजान दी जाती थी। लाल और हल्के पीले पत्थर से बनी इस इमारत पर कुरान की आयतें लिखी हैं। कुतुबमीनार मूल रूप्ा से सात मंजिल का था लेकिन अब यह पांच मंजिल का ही रह गया है। कुतुब मीनार की कुल ऊंचाई 72.5 मी. है और इसमें 379 सीढ़ियां हैं। समय-समय पर इसकी मरम्मत भी हुई हैं। जिन बादशाहों ने इसकी मरम्मत कराई उनका उल्लेख इसकी दीवारों पर मिलता है। कुतुब मीनार परिसर में और भी कई इमारते हैं। भारत की पहली कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, अलई दरवाजा और इल्तुमिश का मकबरा भी यहां बना हुआ है। मस्जिद के पास ही चौथी शताब्दी में बना लौहस्तंभ भी है जो पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है
इंडिया गेट
राजपथ पर स्थित इंडिया गेट का निर्माण प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्ध में मारे गए 90000 भारतीय सैनिकों की याद में कराया गया था। 160 फीट ऊंचा इंडिया गेट दिल्ली का पहला दरवाजा माना जाता है। जिन सैनिकों की याद में यह बनाया गया था उनके नाम इस इमारत पर खुदे हुए हैं। इसके अंदर अखंड अमर जवान ज्योति भी जलती रहती है। इसकी नींव 1921 में ड्यूक ऑफ कनॉट ने रखी थी और इसे कुछ साल बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इर्विन ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था। अमर जवान ज्योति की स्थापना 1971 के भारत-पाक युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों की याद में की गई थी। इंडिया गेट दिल्ली की महत्वपूर्ण इमारत है। दिल्ली आने वाले पर्यटक यहां अवश्य आते हैं।
राजघाट
यमुना नदी के पश्चिमी किनारे पर महात्मा गांधी की समाधि स्थित है। काले संगमरमर से बनी इस समाधि पर उनके अंतिम शब्द हे राम उद्धृत हैं। अब यह एक खूबसूरत बाग का रूप ले चुका है। यहां पर खूबसूरत फव्वारे और अनेक प्रकार के पेड़ लगे हुए हैं। यहां पास ही शांति वन में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की समाधि भी है। भारत आने वाले विदेशी उच्चाधिकारी महात्मा गांधी को श्रद्धांजली देने के लिए राजघाट अवश्य आते हैं।
मुगल गार्डन
मुगल गार्डन राष्ट्रपति भवन में स्थित है और देशी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। इसका डिजाइन सर एडविन लुटियंस ने लेडी हार्डिग के लिए बनाया था। 13 एकड़ में फैले इस गार्डन में मुगल और ब्रिटिश शैली का मिश्रण दिखाई देता है। यहां कई छोटे-बड़े बगीचे हैं जैसे पर्ल (मोती) गार्डन, बटरफ्लाय (तितली) गार्डन और सकरुलर (वृताकार) गार्डन। बटरफ्लाय गार्डन में फूलों के पौधों की बहुत सी पंक्तियां लगी हुई हैं। यह माना जाता है कि तितलियों को देखने के लिए यह जगह सर्वोत्तम है। मुगल गार्डन में अनेक प्रकार के फूल देखे जा सकते हैं जिसमें गुलाब,गेंदा,स्वीट विलियम आदि शामिल हैं। इस बाग में फूलों के साथ-साथ जड़ी-बूटियां और औषधियां भी उगाई जाती हैं। मुगल गार्डन फरवरी में पर्यटकों के लिए खुलता है।
चिड़ियाघर या राष्ट्रीय जैविक उद्यान
दिल्ली का चिड़ियाघर एशिया के सबसे अच्छे चिड़ियाघरों में एक है। यह पुराने किले के पास ही स्थित है। 1959 में बने इस चिड़ियाघर का डिजाइन श्रीलंका के मेजर वाइनमेन और पश्चिम जर्मनी के कार्ल हेगलबेक ने बनाया था। 214 एकड़ में फैले इस जैविक उद्यान में जानवरों और पक्षियों की 22000 प्रजातियां और 200 प्रकार के पेड़ हैं। यहां पर ऑस्टेलिया, अफ्रीका, अमेरिका और एशिया से लाए गए पशु-पक्षी भी देखे जा सकते हैं। चिड़ियाघर में एक पुस्तकालय भी है जहां से पेड़,पौधों,पशु-पक्षियों के बारे में जानकारी ली जा सकती है।
समय: गर्मियां में सुबह 8-शाम 6 बजे तक, सर्दियों में सुबह 9-शाम 5 बजे तक शुक्रवार को बंद रहता है और खाने पीने की चीजें लाना मना है
क्राफ्ट संग्रहालय
क्राफ्ट म्यूजियम प्रगति मैदान में स्थित दिल्ली का प्रमुख पर्यटक स्थल है। इस संग्रहालय में भारत की समृद्ध हस्तशिल्प परंपरा को प्रदर्शित किया गया है। देश के विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक झलक यहां देखी जा सकती है। इस जगह देश के विभिन्न भागों से आए शिल्पकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इस संग्रहालय में देशभर से लाए गए दुर्लभ कला और हस्त शिल्प का विस्तृत संग्रह है। यहां आदिवासी और ग्रामीण शिल्प,कपड़ों आदि से संबंधित अलग-अलग दीर्घाएं हैं। क्राफ्ट म्यूजियम में क्राफ्ट म्यूजियम शॉप भी है। संग्रहालय और शिल्पकारों से पूजा का सामान, गहने, शॉल और किताबें खरीदी जा सकती हैं। समय: जुलाई से सितंबर सुबह 9.30-शाम 5 बजे तक अक्टूबर से जून सुबह 9.30-शाम 6 बजे तक, सोमवार और राष्ट्रीय अवकाश के दिन बंद
राष्ट्रीय संग्रहालय
1960 में निर्मित इस संग्रहालय में भारतीय सभ्यता के विकास से संबंधित चीजों को प्रदर्शित किया गया है। इसमें से कुछ चीजें प्रागेतिहासिक काल की हैं। यहां चोल काल के पत्थर और कांसे से बनी मूर्तियां रखी हुई हैं। यहां विश्व के सर्वाधिक लघु चित्रों का संग्रह है। इसके अलावा घर की सजावट और गहनों का प्रदर्शित करती दीर्घाएं भी यहां हैं। इस राष्ट्रीय संग्रहालय में एक संरक्षण प्रयोगशाला है। इस प्रयोगशाला में अनेक कलाकृतियों को संभाल कर रखा जाता है और छात्रों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
भारतीय रेल संग्रहालय
दक्षिण दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में स्थित रल संग्रहालय भारतीय रेल के 140 साल के इतिहास की ालक प्रस्तुत करता है। विभिन्न प्रकार के रेल इंजनों को देखने के लिए देश भर से लाखों पर्यटक यहां आते हैं। यहां पर रेल इंजनों के अनेक मॉडल और कोच हैं जिसमें भारत की पहली रेल का मॉडल और इंजन भी शामिल हैं। इसका निर्माण ब्रिटिश वास्तुकार एम जी सेटो ने 1957 में किया था। 10 एकड़ में फैले इस संग्रहालय में एक टॉय रेल भी है जहां सैर का आनंद लिया जा सकता है। इसके अलावा यहां रेस्टोरेंट और बुक स्टॉल है। तिब्बती हस्तशिल्प का प्रदर्शन भी यहां किया गया है। समय: गर्मियों में सुबह 9.30-शाम 7 बजे तक, सर्दियों में सुबह 9.30-शाम 5 बजे तक
डॉल संग्रहालय
इस संग्रहालय की स्थापना मशहूर कार्टूनिस्ट के.शंकर पिल्लई ने की थी। यहां विभिन्न परिधानों में सजी गुडि़यां का संग्रह विश्व के सबसे बड़े संग्रहों में से एक है। यह संग्रहालय बहादुर शाह जफर मार्ग पर चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट की बिल्डिंग में स्थित है। यह संग्रहालय दो हिस्सों में बंटा है। एक हिस्से में यूरोपियन देशों, इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, राष्ट्रमंडल देशों की गुडि़यां रखी गई हैं। दूसरे भाग में एशियाई देशों, मध्य पूर्व, अफ्रीका और भारत की गुडि़यां प्रदर्शित की गई हैं। वर्तमान समय में यहां 85 देशों की करीब 6500 गुडि़यों का संग्रह देखा जा सकता है। समय: सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक, सोमवार को बंद
चाँदनी चौक
दिल्ली आने वाले किसी भी व्यक्ति की यात्रा तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक वह चांदनी चौक न जाए। यह दिल्ली के थोक व्यापार का प्रमुख केंद्र है। पुराने समय में तुर्की, चीन और हॉलैंड के व्यापारी यहां व्यापार करने आते थे। यह मुगल काल में प्रमुख व्यवसायिक केंद्र था। इसका डिजाइन शाहजहां की पुत्री जहांआरा बेगम ने बनाया था। यहां की गलियां संकरी हैं। इसलिए यहां गाड़ी लेकर न आने की सलाह दी जाती है।
कनॉट प्लेस
कनॉट प्लेस दिल्ली का प्रमुख व्यवसायिक केंद्र है। इसका नाम ब्रिटेन के शाही परिवार के सदस्य ड्यूक ऑफ कनॉट के नाम पर रखा गया था। इस मार्केट का डिजाइन डब्ल्यू एच निकोल और टॉर रसेल ने बनाया था। यह मार्केट अपने समय की भारत की सबसे बड़ी मार्केट थी। अपनी स्थापना के 65 साल बाद भी यह दिल्ली में खरीदारी का प्रमुख केंद्र है। यहां के इनर सर्किल में लगभग सभी अंतर्राष्ट्रीय ब्रैंड के कपड़ों के शोरूम, रेस्टोरेंट और बार हैं। यहां किताबों की दुकानें भी हैं जहां आपको भारत के बारे में जानकारी देने वाली बहुत अच्छी किताबें मिल जाएंगी।
जनपथ और पालिका बाजार
बंटवारे के बाद यहां आए शरणार्थियों और तिब्बती शरणार्थियों ने यहां अपनी दुकानें बनाकर इस मार्केट को बसाया। यहां आपको सस्ते कपड़े मिल जाएंगे लेकिन इसके लिए मोल भाव करना आना चाहिए। जनपथ में सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज एंपोरियम है। इसके पास ही जवाहर व्यापार भवन है जहां भारतीय हस्तशिल्प का सामान देखा और खरीदा जा सकता है। पालिका बाजार भूमिगत बाजार है। यहां करीब 400 दुकानें हैं जहां कम कीमत पर कपड़े और बिजली का सामान मिल जाता है लेकिन यहां भी बहुत मोल भाव करना पड़ता है।
दिल्ली हाट
दिल्ली हाट एम्स से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। यहां पर आकर संपूर्ण भारत के एक साथ दर्शन हो जाते हैं। यहां पर भारत के विभिन्न प्रांतों के हस्तशिल्प को प्रदर्शित करती दुकानें हैं। दक्षिण भारतीय व्यंजन से लेकर सुदूर उत्तर पूर्व के खाने के स्टॉल भी यहां मिल जाते हैं। यहां समय समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। यहां आप नृत्य और संगीत का भी आनंद उठा सकते हैं।
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