बाल दिवस

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
चाचा नेहरू बच्चों के साथ

भारत में प्रत्येक 14 नवंबर को पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस को ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। ‘बाल दिवस’ पर जगह-जगह समाराहों का आयोजन किया जाता है। पं. जवाहर लाल नेहरू को ‘चाचा नेहरू’ कहा जाता था और उन्हें बच्चों से बहुत प्यार था। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए ‘बाल दिवस’ स्कूलों तथा अन्य संस्थाओं में धूमधाम से मनाया जाता है।[1]

नेहरूजी का बाल प्रेम

चाचा नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री थे और तीन मूर्ति भवन प्रधानमंत्री का सरकारी निवास था। एक दिन तीन मूर्ति भवन के बगीचे में लगे पेड़-पौधों के बीच से गुज़रते हुए घुमावदार रास्ते पर नेहरू जी टहल रहे थे। उनका ध्यान पौधों पर था। वे पौधों पर छाई बहार देखकर खुशी से निहाल हो ही रहे थे तभी उन्हें एक छोटे बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी। नेहरू जी ने आसपास देखा तो उन्हें पेड़ों के बीच एक-दो माह का बच्चा दिखाई दिया जो दहाड़ मारकर रो रहा था। नेहरूजी ने मन ही मन सोचा- इसकी माँ कहाँ होगी? उन्होंने इधर-उधर देखा। वह कहीं भी नजर नहीं आ रही थी। चाचा ने सोचा शायद वह बगीचे में ही कहीं माली के साथ काम कर रही होगी। नेहरूजी यह सोच ही रहे थे कि बच्चे ने रोना तेज कर दिया। इस पर उन्होंने उस बच्चे की माँ की भूमिका निभाने का मन बना लिया।

पंडित जवाहरलाल नेहरू

नेहरूजी ने बच्चे को उठाकर अपनी बाँहों में लेकर उसे थपकियाँ दीं, झुलाया तो बच्चा चुप हो गया और मुस्कुराने लगा। बच्चे को मुस्कुराते देख चाचा खुश हो गए और बच्चे के साथ खेलने लगे। जब बच्चे की माँ दौड़ते वहाँ पहुँची तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। उसका बच्चा नेहरूजी की गोद में मंद-मंद मुस्कुरा रहा था। ऐसे ही एक बार जब पंडित नेहरू तमिलनाडु के दौरे पर गए तब जिस सड़क से वे गुज़र रहे थे वहाँ वे लोग साइकिलों पर खड़े होकर तो कहीं दीवारों पर चढ़कर नेताजी को निहार रहे थे। प्रधानमंत्री की एक झलक पाने के लिए हर आदमी इतना उत्सुक था कि जिसे जहाँ समझ आया वहाँ खड़े होकर नेहरू को निहारने लगा। इस भीड़भरे इलाके में नेहरूजी ने देखा कि दूर खड़ा एक गुब्बारे वाला पंजों के बल खड़ा डगमगा रहा था। ऐसा लग रहा था कि उसके हाथों के तरह-तरह के रंग-बिरंगी गुब्बारे मानो पंडितजी को देखने के लिए डोल रहे हो। जैसे वे कह रहे हों हम तुम्हारा तमिलनाडु में स्वागत करते है। नेहरूजी की गाड़ी जब गुब्बारे वाले तक पहुँची तो गाड़ी से उतरकर वे गुब्बारे ख़रीदने के लिए आगे बढ़े तो गुब्बारे वाला हक्का-बक्का-सा रह गया।

नेहरूजी ने अपने तमिल जानने वाले सचिव से कहकर सारे गुब्बारे ख़रीदवाए और वहाँ उपस्थित सारे बच्चों को वे गुब्बारे बँटवा दिए। ऐसे प्यारे चाचा नेहरू को बच्चों के प्रति बहुत लगाव था। नेहरूजी के मन में बच्चों के प्रति विशेष प्रेम और सहानुभूति देखकर लोग उन्हें चाचा नेहरू के नाम से संबोधित करने लगे और जैसे-जैसे गुब्बारे बच्चों के हाथों तक पहुँचे बच्चों ने चाचा नेहरू-चाचा नेहरू की तेज आवाज़ से वहाँ का वातावरण उल्लासित कर दिया। तभी से वे चाचा नेहरू के नाम से प्रसिद्ध हो गए।[2]

बाल शोषण

आज भी चाचा नेहरू के इस देश में लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं। जो चाय की दुकानों पर नौकरों के रूप में, फैक्ट्रियों में मजदूरों के रूप में या फिर सड़कों पर भटकते भिखारी के रूप में नजर आ ही जाते हैं। इनमें से कुछेक ही बच्चे ऐसे हैं, जिनका उदाहरण देकर हमारी सरकार सीना ठोककर देश की प्रगति के दावे को सच होता बताती है। यही नहीं आज देश के लगभग 53.22 प्रतिशत बच्चे शोषण का शिकार है। इनमें से अधिकांश बच्चे अपने रिश्तेदारों या मित्रों के यौन शोषण का शिकार है। अपने अधिकारों के प्रति अनभिज्ञता व अज्ञानता के कारण ये बच्चे शोषण का शिकार होकर जाने-अनजाने कई अपराधों में लिप्त होकर अपने भविष्य को अंधकारमय कर रहे हैं।[3] बचपन आज भी भोला और भावुक ही होता है लेकिन हम उन पर ऐसे-ऐसे तनाव और दबाव का बोझ डाल रहे हैं कि वे कुम्हला रहे हैं। उनकी खनकती-खिलखिलाती किलकारियाँ बरकरार रहें इसके ईमानदार प्रयास हमें ही तो करने हैं। देश के ये गुलाबी नवांकुर कोमल बचपन की यादें सहेजें, इसके लिए जरूरी है कि हम उन्हें कठोर और क्रूर नहीं बल्कि मयूरपंख सा लहलहाता बचपन दें।[4] चाचा नेहरू को दो बातें बहुत पसंद थी पहली वे अपनी शेरवानी की जेब में रोज गुलाब का फूल रखते थे और दूसरी वे बच्चों के प्रति बहुत ही मानवीय और प्रेमपूर्ण थे। यह दोनों ही बातें उनमें कोमल हृदय है इस बात की सूचना देते हैं। बच्चों को वैसे ही लोग प्रिय है, जो गुलाब या कमल के समान हो।[5]

चाचा नेहरू बच्चों के साथ

समारोह

हर वर्ष बचपन की यादों को ताजा करने के लिए बाल दिवस का आयोजन किया जाता है। यह दिन हमें सिखाता है कि एक निर्दोष और जिज्ञासु बच्चे की तरह हमें सदैव खुश रहना चाहिए और हमेशा सीखने की कोशिश करते हुए मुस्कुराते रहना चाहिए। यह बच्चों के लिए उल्लास में डूब जाने का दिन है। स्कूलों में भी यह दिन बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। संपूर्ण भारत में इस दिन स्कूलों में प्रश्नोतरी, फैंसी परिधान प्रतियोगिता और बच्चों की कला प्रदर्शनियों जैसे कई विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। हाल के वर्षों में विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक और कॉरपोरेट संस्थाओं ने सभी पृष्ठभूमि के बच्चों के लिए विशेष समारोह और प्रतियोगिताओं का आयोजन शुरू किया है। इस तरह के आयोजन देश के हर कोने में लोकप्रिय हुए हैं। अब टेलीविश्ज़न और अन्य मीडिया नेटवर्क समाज के प्रत्येक स्तर पर 14 नवंबर को बच्चों के लिए खास कार्यक्रम बना रहे हैं।[6]

राष्ट्रपति सहभागिता

हर वर्ष राष्ट्रपति भवन में देश भर से आए चुनिंदा बच्चों से भारत के राष्ट्रपति मुलाकात करते हैं। बाल दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति बच्चों का मनोबल बढ़ाते हैं और उन्हें उत्कृष्ठ कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं। बच्चे भी इस मौके पर देश के प्रति अपने विश्वास और भविष्य में चुनौतियों का सामना करने की भावना को व्यक्त करते हैं।

राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल का मानना है कि देश के विकास में बच्चों की शिक्षा तथा अनुशासन का अमूल्य योगदान होता है। उन्होंने देश के शिक्षकों एवं छात्रों की प्रशंसा करते हुए कहा था कि इनकी कड़ी मेहनत तथा संस्कृति ने दुनियाभर में देश का नाम रोशन किया है। देश के 11वें राष्ट्रपति - (भूतपूर्व) डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम भी देश के विकास के लिए बच्चों का विकास आवश्यक मानते हैं। उन्होंने पद पर रहते हुए तथा बाद में भी कई मौकों पर यह संदेश दिया है कि देश का विकास बच्चों के हाथों में ही है। उन्होंने कहा था कि आज के साथ समझौता करने पर ही हम देश के बच्चों के लिए बेहतर कल दे सकेंगे। बच्चों के साथ उनके सवाल-जवाब पूरे देश में काफ़ी लोकप्रिय हैं। [6]

बाल दिवस पर नृत्य करते बच्चे

बाल भवन केंद्र

सरकार ने बच्चों के लिए बाल भवन नामक विशेष संस्थानों की स्थापना की है। इन संस्थानों का गठन बच्चों को विभिन्न गतिविधियों, अवसरों एवं आम बातचीत, प्रयोग करने और प्रदर्शन करने के लिए एक मंच उपलब्ध कराकर उनकी रचनात्मक क्षमता को बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया है। पंडित जवाहर लाल नेहरू के द्वारा बाल भवन केन्द्र के विचार की कल्पना की गई। उनका मानना था कि औपचारिक शिक्षा व्यवस्था से बच्चों के व्यक्तित्व के समग्र विकास की गुंजाइश काफ़ी कम है और बाल भवन एक ऐसी जगह है जो बच्चे के संपूर्ण विकास का वातावरण पेश करके इस अंतर को कम कर सकता है।

संविधान में बाल अधिकार

भारत का संविधान, संयुक्त राष्ट्र की योजनाओं के ही अनुरूप बच्चों के संरक्षण एवं अधिकारों की रक्षा के लिए कई सुविधाएं देता है। संविधान हर तरह से देश में बच्चों के कल्याण तथा उनकी शिक्षा एवं बालश्रम से मुक्ति के लिए प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से उन्मूलन के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है।

  • अनुच्छेद 15(3): राज्य को बच्चों एवं महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 21ए: राज्य को 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य तथा मुफ्त शिक्षा देना कानूनी रूप से बाध्यकारी है।
  • अनुच्छेद 24: बालश्रम को प्रतिबंधित तथा गैरकानूनी कहा गया है।
  • अनुच्छेद 39(ई): बच्चों के स्वास्थ्य और रक्षा के लिए व्यवस्था करने के लिए राज्य कानूनी रूप से बाध्य है।
  • अनुच्छेद 39(एफ): बच्चों को गरियामय रूप से विकास करने के लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराना राज्य की नैतिक जिम्मेदारी है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आज ‘बाल दिवस’ है! (हिन्दी) जोश 18। अभिगमन तिथि: 9 नवंबर, 2010
  2. चाचा नेहरू का बाल प्रेम (हिन्दी) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 9 नवंबर, 2010
  3. सही मायने में बाल दिवस (हिन्दी) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 9 नवंबर, 2010
  4. मीठा बचपन-सौंधा बचपन (हिन्दी) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 9 नवंबर, 2010
  5. आँखों के तारे को संभालें (हिन्दी) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 9 नवंबर, 2010
  6. 6.0 6.1 बाल दिवस (हिन्दी) bharat.gov.in। अभिगमन तिथि: 9 नवंबर, 2010

बाहरी कड़ियाँ