प्रोजेरिया
परिचय
प्रोजेरिया (Progeria) को 'सैपिड एजिंग' या 'हचिनसन गिलफोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम' या 'हचिंगसन-गिल्फोर्ड सिंड्रोम' भी कहते हैं। प्रोजेरिया नाम ग्रीक भाषा से लिया गया है, 'प्रो' का मतलब होता है पहले और 'जेरास' का मतलब है बुढ़ापा यानी वक्त से पहले बुढ़ापा ( प्री मैच्योरली ओल्ड फेटल ) या कम उम्र के बच्चों में बुढ़ापे के लक्षण दिखना । इसकी कई किस्में होती हैं, लेकिन सबसे कॉमन है हचिनसन गिलफोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम । 1886 में डॉ. जोनाथन हचिनसन और 1897 में डॉ. हटिंग्स डिलफोर्ड ने इस बीमारी की खोज की थी। इसी कारण इसे हचिनसन-गिलफोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है।
प्रोजेरिया बहुत ही दुर्लभ और एक आनुवांशिक बीमारी है। यह बीमारी जीन्स और कोशिकाओं में उत्परिवर्तन की स्थिति के चलते होती है। इस रोग का कारण कतिपय लोग हार्मोस की गड़बड़ी मानते हैं लेकिन नवीनतम शोध में इसके लिए लैमिन-ए (एलएमएनए) जींस को जिम्मेदार ठहराया गया है। इस बीमारी से ग्रसित 90 फीसदी बच्चों में इसका कारण लैमिन-ए (एलएमएनए) नामक जीन में म्यूटेशन (आकस्मिक बदलाव) को माना गया है। यह गड़बड़ी अचानक ही हो जाती है। यह प्रोटीन लेमिन-ए जो कोशिका के केंद्रक को होल्ड करता है। यदि जीन में उत्परिवर्तन होने से लेमिन-ए प्रोटीन अस्थिर हो जाए तो कोशिका के केंद्रक का आकार बिगड़ जाता है। इस वजह से कोशिकाओं का आकार भी गड़बड़ा जाता है, और रोगी के जींस में सक्रियता समाप्त हो जाती है। नतीजा प्रोटीन का स्थायित्व प्रभावित हो जाता है। यही वजह है कि रोगी का शारीरिक विकास नहीं हो पाता और बच्चे उम्र के हिसाब से पांच-छह गुना बड़े दिखाई देने लगते हैं।
यह बीमारी अचानक ही हो जाती है और 100 में से एक मामले में ही यह बीमारी अगली पीढ़ी तक जाती है। ये एक विरली बीमारी रोग है और इसीलिए करीब 80 लाख में से एक व्यक्ति में पाई जाती है। आज तक चिकित्सा जगत में प्रोजेरिया के करीब 100 मामले सामने आए हैं। फिलहाल पूरी दुनिया में प्रोजेरिया के 53 ज्ञात मामले हैं। ये सभी विदेशी हैं, इनमें से एक भी हिंदुस्तान में नहीं है। लेकिन भारत के मध्य प्रदेश में भी एक बच्चे को इस बीमारी से पीड़ित बताया जाता है।
बाहरी कड़ियाँ
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