प्रोजेरिया
परिचय
प्रोजेरिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें शिशु अपने जीवनचक्र के दौरान बाल्यकाल, किशोरावस्था और युवावस्था के चरणों को पार कर वृद्धावस्था की तरफ अग्रसर होने की बजाय दो-तीन साल की उम्र में ही बुढ़ापे की तरफ बढ़ने लगता है और इस बीमारी की चपेट में आने वाले बच्चों का जीवन चक्र महज 13 से 21 साल की उम्र तक ही पूरा हो पाता है।
इतिहास
प्रोजेरिया (Progeria) को 'सैपिड एजिंग' या 'हचिनसन गिलफोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम' या 'हचिंगसन-गिल्फोर्ड सिंड्रोम' भी कहते हैं। प्रोजेरिया नाम ग्रीक भाषा से लिया गया है, 'प्रो' का मतलब होता है पहले और 'जेरास' का मतलब है बुढ़ापा यानी वक्त से पहले बुढ़ापा ( प्री मैच्योरली ओल्ड फेटल ) या कम उम्र के बच्चों में बुढ़ापे के लक्षण दिखना । इसकी कई किस्में होती हैं, लेकिन सबसे कॉमन है हचिनसन गिलफोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम । 1886 में डॉ. जोनाथन हचिनसन और 1897 में डॉ. हटिंग्स डिलफोर्ड ने इस बीमारी की खोज की थी। इसी कारण इसे हचिनसन-गिलफोर्ड प्रोजेरिया सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है।
बीमारी का कारण जीन्स
प्रोजेरिया बहुत ही दुर्लभ और एक आनुवांशिक बीमारी है। प्रोजेरिन नाम के एक प्रोटीन से प्रोजेरिया की बीमारी होती है। यह बीमारी जीन्स और कोशिकाओं में उत्परिवर्तन की स्थिति के चलते होती है। इस रोग का कारण कतिपय लोग हार्मोस की गड़बड़ी मानते हैं लेकिन नवीनतम शोध में इसके लिए लैमिन-ए (एलएमएनए) जींस को जिम्मेदार ठहराया गया है। इस बीमारी से ग्रसित 90 फीसदी बच्चों में इसका कारण लैमिन-ए (एलएमएनए) नामक जीन में म्यूटेशन (आकस्मिक बदलाव) को माना गया है। यह गड़बड़ी अचानक ही हो जाती है। यह प्रोटीन लेमिन-ए जो कोशिका के केंद्रक को होल्ड करता है। यदि जीन में उत्परिवर्तन होने से लेमिन-ए प्रोटीन अस्थिर हो जाए तो कोशिका के केंद्रक का आकार बिगड़ जाता है। इस वजह से कोशिकाओं का आकार भी गड़बड़ा जाता है, और रोगी के जींस में सक्रियता समाप्त हो जाती है। नतीजा प्रोटीन का स्थायित्व प्रभावित हो जाता है। यही वजह है कि रोगी का शारीरिक विकास नहीं हो पाता और बच्चे उम्र के हिसाब से पांच-छह गुना बड़े दिखाई देने लगते हैं।
संख्या
यह बीमारी अचानक ही हो जाती है और 100 में से एक मामले में ही यह बीमारी अगली पीढ़ी तक जाती है। ये एक विरली बीमारी रोग है और इसीलिए करीब 80 लाख में से एक व्यक्ति में पाई जाती है। आज तक चिकित्सा जगत में प्रोजेरिया के करीब 100 मामले सामने आए हैं। फिलहाल पूरी दुनिया में प्रोजेरिया के 53 ज्ञात मामले हैं। ये सभी विदेशी हैं, इनमें से एक भी हिंदुस्तान में नहीं है। लेकिन भारत के मध्य प्रदेश में भी एक बच्चे को इस बीमारी से पीड़ित बताया जाता है।
उम्र
पीडि़त बच्चों के उम्र के शारीरिक लक्षण 5-6 गुना तेजी से दिखाई देते हैं। यानी 2 साल के बच्चे के शारीरिक लक्षण 10-12 साल के बच्चे जैसे होते हैं। हालांकि उनका मानसिक विकास किसी सामान्य बच्चे जैसा होता है । इस बीमारी से ग्रसित अधिकतर बच्चे 13 साल की उम्र तक ही दम तोड़ देते हैं, उम्र के शारीरिक लक्षणों के कारण इस उम्र तक आते-आते उनकी मौत हो जाती है, जबकि कुछ बच्चे 20-21 साल तक जीते हैं। प्रोजेरिया पीड़ितों की अधिकतम उम्र 8 से 24 साल मानी गई है। 13 वर्ष की उम्र में ऎसे बच्चे 70-80 वर्ष तक के नजर आते हैं। लड़के और लड़कियों दोनों में इस बीमारी का रिस्क समान रूप से है।
लक्षण
प्रोजेरिया एक जन्मजात बीमारी और इसमें खास ध्यान देने वाली बात यह है कि जैसे बुढ़ापे में ट्यूमर होता है, इसमें वह नहीं होता है। ज्यादातर बदलाव त्वचा, धमनी और माँसपेशियों में ही रहते हैं। इससे पीड़ित बच्चा आम बच्चों के मुकाबले तीन गुना तेजी से बुढ़ापे की ओर बढ़ता है। जन्म के समय ही ऐसे बच्चों में इस बीमारी की पहचान सम्भव है। जन्म के वक्त वह बिल्कुल नॉर्मल होता है, मगर उनकी नाक तराशी हुई होती है, चमड़ी के अंदर त्वचा जगह-जगह से मोटी व खुरदरी होती है। लेकिन डेढ़-दो साल की उम्र में इसके लक्षण नजर आने लगते हैं। दो साल की उम्र पूरी करने के बाद प्रोजेरिया पीड़ित के शरीर से वसा का क्षय ( चमड़ी के नीचे का फेट गायब ) होने लगता है। अंगों का विकास कम हो जाता है। जो धीरे-धीरे पूरी तरह खत्म ( ग्रोथ फेलियर ) हो जाती है। शरीर ढीला पड़ जाता है और नसें उभरकर त्वचा पर साफ दिखाई देती हैं। बच्चे की स्किन का रंग पीला पड़ जाता है और वह काफी पतली हो जाती है, जिस पर असमय झुरिर्यां दिखने लगती हैं। चेहरे पर झुर्रियां पड़नी शुरू हो जाती हैं । झुर्रियां इस कदर बढ़ती हैं कि रोगी का चेहरा चिड़ियों जैसा दिखने लगता है। शरीर में मोटे तौर पर हड्डियां और स्किन ही बाकी रह जाती है। सिर शरीर से अनुपात में काफी बड़ा हो जाता है और बाल उड़ जाते हैं। वह वृद्ध और काल्पनिक एलियन (दूसरे ग्रह के प्राणी) जैसा दिखने लगता है। मुंह के अंदर कई गुना ज्यादा दांत आ जाते हैं व आंखों के आसपास गड्ढे हो जाते हैं। लैंगिक विकास नहीं होना, जोड़ों में दर्द, जोडों में कड़ापन रहना और हिप डिस्लोकेशन हो जाते हैं। इतना ही नहीं जिस हृदय रोग को 35 वर्ष के बाद की व्याधि माना जाता है उसके दौरे भी शुरू हो जाते हैं। अक्सर हृदयाघात ( स्ट्रोक्स ) की ही वजह से प्रोजेरिया पीड़ित की मौत होती है।
शोध और इलाज
दुनिया भर के वैज्ञानिक और बाल रोग विशेषज्ञ अत्यंत दुर्लभ बीमारी प्रोजेरिया का तोड़ ढूँढ़ने में लगे हैं, लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें अब तक सफलता नहीं मिल पाई है और अभी तक कोई उपचार उपलब्ध नहीं है। इस बारे में अभी तक प्रयोग के आधार पर जो भी कोशिश हो रही हैं उनका मकसद इनमें कोलेस्ट्रोल को कम करना है ताकि उनके जीवन को लंबा किया जा सके। चिकित्सक इस रोग के उपचार के बजाय इसकी वजह से होने वाली शारीरिक बीमारियों का इलाज करते हैं ताकि बच्चा ज्यादा से ज्यादा समय तक जिन्दा रह सके। ऐसे बच्चों की मौत ज्यादातर बुढ़ापे में होने वाली बीमारियों से होती है। प्रोजेरिया में वे सभी लक्षण दिखते हैं जो आपको बुढापे की तरफ ले जाते हैं। यदि प्रोजेरिया की जड़ पकड़ में आ गई तो न सिर्फ बीमारी का इलाज ढूंढ़ने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे मनुष्य के बूढ़े होने की प्रक्रिया के भी कई राज खुलेंगे। भारत में इस बीमारी पर काफी समय से शोध चल रहा है।
अमिताभ बच्चन का 'पा' फिल्म
'पा' फिल्म में औरो की केंद्रीय भूमिका निभा रहे हिंदी फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन ने एक ऐसे व्यक्ति की भूमिका निभाई है जो प्रोजेरिया नामक बीमारी से पीड़ित है। बकौल अमिताभ इसमें उनकी मानसिक उम्र तो जस के तस रहती है लेकिन शारीरिक उम्र तेजी से बढ़ती जाती है। पहले लोग इस बीमारी से ज्यादा परिचित नहीं थे, लेकिन बहुचर्चित फिल्म 'पा' ने प्रोजेरिया रोग के प्रति आमजन ही नहीं चिकित्सा क्षेत्र के लोगों की भी जिज्ञासा बढ़ा दी है।
पा फिल्म में प्रोजेरिया पीड़ित दिखने के लिए अमिताभ को मेकअप में काफी मशक्कत करनी पड़ी। इसके लिए उन्हें प्रोस्थेटिक मेकअप का सहारा लेना पड़ा। हर दिन शूंटिंग से पहले उन्हें अपने शरीर पर फोम, जिलेटिन, लेटेक्स और सिलिकान की परतें चढ़वानी पड़ती थीं। इसमें उन्हें चार से पांच घंटे लग जाते थे। शूंटिंग के बाद मेकअप उतारने में दो घंटे लगते थे।
प्रोजेरिया से पीडि़त पांच भाई-बहन
प्रोजेरिया बीमारी से पीडि़त बच्चे आमतौर पर 17 साल से ज्यादा जी नहीं पाते। लेकिन कुछ अपवाद भी मिलते हैं। आमतौर पर किसी परिवार के एक सदस्य को यह बीमारी होने के बाद बाकी इससे बचे रहते हैं लेकिन बिहार में छपरा जिले से करीब 20 किलोमीटर दूर मांझी प्रखंड के डुमरी गांव निवासी शमशुद्दीन और रजिया सुल्तान के आठ बेटे और बेटियों में से पांच प्रोजेरिया से पीड़ित थे लेकिन उनमें से अब दो बेटे 23 साल के इकरामुल खान और 11 साल के अली हसन ही जीवित बचे हैं। दोनों का इलाज कोलकाता में चल रहा है। प्रोजेरिया से पीड़ित इन बच्चों की तीन बहनें 17 साल की गुड़िया, 24 साल की रेहाना और 13 साल की रोबिना की भी प्रोजेरिया के कारण मृत्यु हो चुकी है। अब इनके माता-पिता को इन बच्चों को भी खो देने का डर दिन रात सता रहा है। ये सभी डेढ़ वर्ष की उम्र तक स्वस्थ थे परंतु उसके बाद उन्हें यह बीमारी हो गई थी। उनके अन्य बच्चे पूरी तरह स्वस्थ हैं। सात वर्ष पहले महानगर की एक चैरिटी संस्था इन दोनों को कोलकाता ले आई, तब से वे यहीं रहते हैं । आसपास के लोग इन बच्चों को एलियंस के नाम से पुकारते थे, इकरामुल और अली हसन आम लोगों की तरह बातचीत करते हैं, घूमते हैं, खेलते हैं और नाचते भी हैं परंतु उनका मानसिक और शारीरिक विकास नहीं हो पाया है। इकरामुल अपना नाम-लिख पढ़ लेते हैं। वह काफी खुश मिजाज हैं। पहले इनकी जबान भी साफ नहीं थी लेकिन अब ये साफ बोलते हैं। गाना भी गाते हैं। बच्चों को होनेवाली छोटी-मोटी बीमारियों के अलावा बुजुर्गो को होनेवाली बीमारियां भी इन्हें घेर लेती हैं। खाने में दिक्कत के अलावा सोने और उठने-बैठने में भी परेशानी होती है। झुक नहीं पाने की वजह से ये बिस्तर पर सीधे ही गिरते हैं और उठते भी सीधे-सीधे ही हैं। सोते वक्त भी इनकी आंखें खुली रहती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी वजह माता-पिता के जीन्स में इस बीमारी का मौजूद होना बताते हैं। ये पति-पत्नी चचेरे भाई-बहन हैं।
राजस्थान का अमित
राजस्थान में सिनसिया (झुंझुनूं) का रहने वाला अमित चार वर्ष है, लेकिन शक्ल-सूरत अधेड़ जैसी दिखती है। जिसमें बच्चे की उम्र के हिसाब से कद-काठी नहीं है। वह प्रोजेरिया बीमारी से ग्रसित है। इस बीमारी से बेखबर उसके माता-पिता अब तक उसका इलाज त्वचा रोग विशेषज्ञ से करा रहे थे, क्योंकि उसकी त्वचा मोटी, खुरदुरी, झुर्रीदार और असामान्य होने लगी थी। उसे कुछ समय पहले लकवा भी हो गया था। झुंझुनूं के डॉक्टरों ने बच्चे को जयपुर में दिखाने को कहा तो पिता राजपाल सिंह उसे जयपुर के जेके लोन अस्पताल में ले आए। यहां उसे मेडिकल यूनिट तीन में रखा गया था। यहां डॉक्टरों ने जांचें कराईं तो प्रोजेरिया का पता चला। उसे जब अस्पताल लेकर आए तो उसकी एमआरआई और एंजियोग्राफी कराई गई जिसमें उसकी दिल की धमनियों में फैट की मोटी परतें पाई गईं और उसकी खून की नसें सिकुड़ गई है। इससे हाथ-पैरों में कमजोरी आ रही थी। उसके खून का दौरा बढ़ाने व खून की नसों को खोलने की दवा दी जा रही है। शरीर का विकास कम होने के कारण उसे अस्पताल के मैलन्यूट्रीशन सेंटर में रखा गया, जिसमें एमएनडीटी के तहत विशेष खुराक दी गई। घर पर भी उसे ऐसी ही खुराक देने की सलाह दी गई है ताकि उसका वजन बढ़ सके। इसका वजन भी औसत वजन से काफी कम था। इस बच्चे की आंखें अंदर तक धंसी हुई हैं और चेहरे से भौंहें गायब हो चुकी हैं। नाखूनों का आकार भी बुजुर्गो की तरह हो गया है। त्वचा पर झुर्रियां आ गई हैं। उसका वजन भी इस उम्र के औसत वजन से काफी कम है तथा लंबाई भी सामान्य लंबाई के मुकाबले कम है। डॉक्टर बताते हैं कि ऎसे बच्चों का मानसिक विकास प्रभावित नहीं होता लेकिन लैंगिक विकास नहीं हो पाता है। अमित के पिता राजपाल सिंह टैक्सी ड्राइवर हैं। उसकी मां अनीता हैं। अनीता का कहना है कि उनका छोटा बेटा पूरी तरह स्वस्थ है, मगर अमित में दो साल की उम्र से इस बीमारी के लक्षण दिखाई देने लगे थे। चार साल का अमित उम्र से पांच गुना बड़ा दिखता है। जेकेलोन अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ.अशोक गुप्ता ने बताया कि इस बालक का वल्र्ड प्रोजेरिया रजिस्टर्ड में रजिस्ट्रेशन कराया जाएगा। इस बालक में मिले लक्षणों व अन्य सभी बातों को उसमें दिया जाएगा। ताकि भविष्य में यह शोध के रूप में काम आ सके।
बाहरी कड़ियाँ
- प्रोजेरिया:बुढ़ापे की जकड़न में बचपन
- प्रोजेरिया: बचपन में बुढ़ापा (वेबदुनिया)
- तसल्ली : काशी में पा के औरो का वजूद नहीं
- बचपन में बुढ़ा'पा'! अब तक नहीं मिला प्रोजेरिया का तोड़
- "ऑरो" सा अमित
- वो कहानी, ये हकीकत
- बिग बी से मिलना चाहते हैं बिहार के दो 'ऑरो'
- फिल्म पा के नायक से मुलाकात का इंतजार है असली बीमारों को
- छत्तीसगढ़ का अमिताभ बच्चन उर्फ़ "पा" असल नाम "कुलजीत"
- प्रोजेरिया यानी बचपन को घेरता बुढ़ापा
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